गिरिडीह कॉलेज में प्रेमचंद जयंती पर संगोष्ठी का आयोजन
प्रेमचंद जयंती के मौके पर गुरुवार को गिरिडीह कॉलेज के हिंदी विभाग ने संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम का विषय था प्रेमचंद साहित्य में बचपन. इसमें साहित्य, समाज और बाल मन पर चर्चा की गयी. संगोष्ठी में गिरिडीह के अलग-अलग कॉलेज के शिक्षकों और छात्रों ने भाग लिया. मुख्य वक्ता आरके महिला कॉलेज की सहायक प्राध्यापिका डॉ दीपिका कुमारी ने ईदगाह, गुल्ली डंडा और बड़े भाई साहब जैसी कहानियों के उदाहरण से यह बताया कि प्रेमचंद का बाल चरित्र किसी कल्पना से नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत से गढ़ा गया है. कहा कि प्रेमचंद बच्चों के मनोविज्ञान को समझते थे और समाज की आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों का असर बच्चों पर कैसे पड़ता है, यह उनके लेखन में साफ दिखाई देता है.प्रेमचंद के बाल पात्र केवल किरदार नहीं, समाज के दस्तावेज हैं
गिरिडीह कॉलेज के उर्दू विभाग के सहायक प्राध्यापक प्रो गुलाम समदानी ने प्रेमचंद की द्विभाषी लेखनी की चर्चा करते हुए कहा कि वे हिंदी और उर्दू दोनों में लिखते थे, ताकि उनका विचार ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे. कहा कि प्रेमचंद के बाल पात्र केवल कहानी के किरदार नहीं हैं, वे समाज के दस्तावेज हैं. हिंदी विभाग के डॉ बालेंदु शेखर त्रिपाठी ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में यह सवाल लगातार उठता है कि क्या हमारा समाज बच्चों के प्रति संवेदनशील है. जाति और वर्ग के आधार पर बच्चों के साथ होने वाले भेदभाव को उन्होंने कहानी की तहों में बखूबी उजागर किया. धर्मेंद्र कुमार वर्मा ने प्रेमचंद के बचपन की चर्चा की. संगोष्ठी में कॉलेज के छात्र अमित और नीलेश ने भी अपने विचार रखे. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ अनुज कुमार ने बूढ़ी काकी कहानी का उल्लेख किया. कहा कि इसमें एक छोटी बच्ची का चरित्र प्रेमचंद की करुणा और मानवीय दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण है. कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ बलभद्र ने किया.
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