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Giridih News : भाजपा नेताओं को आदिवासियों के हितों से कोई सरोकार नहीं : सुदिव्य

Giridih News : आदिवासी/सरना धर्म कोड लागू करने को लेकर झामुमो का धरना

Giridih News : झामुमो जिला समिति की ओर से मंगलवार को आदिवासी/सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर शहरी क्षेत्र के जेपी चौक के समक्ष धरना कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसकी अध्यक्षता अध्यक्षीय मंडली गोपीन मुर्मू, अजीत कुमार पप्पू व शहनवाज अंसारी ने संयुक्त रूप से की, जबकि संचालन दिलीप मंडल एवं कोलेश्वर सोरेन ने की. इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में नगर विकास मंत्री सह गिरिडीह विधायक सुदिव्य कुमार सोनू मौजूद थे.

अपने संबोधन में नगर विकास मंत्री श्री सोनू ने कहा कि 1972 में हक की लड़ाई के लिए दिशोम गुरू शिबू सोरेन ने जब आह्वान किया था कि झारखंडियों का हक अलग झारखंड राज्य है. उस समय लोगों ने मजाक उड़ाया था. परंतु 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड अलग हुआ तो पूरा देश देखता रह गया. उन्होंने कहा कि अगर दिशोम गुरू ने कहा है कि सरना धर्म कोड लागू करना होगा, तो मैं यह कहता हूं कि झारखंड का बच्चा-बच्चा और देश का 12 करोड़ आदिवासी एक साथ सरना धर्म कोड को लागू करने का आवाज बुलंद करेगा. कहा कि झामुमो का संघर्षों की बड़ी लंबी परंपरा, बलिदानों की अनगिनत कहानियां रही है. इन संघर्षों के बूते अलग झारखंड राज्य लिया. झामुमो संघर्ष के बूते अपने अधिकारों को लिया है. कहा कि सरना धर्म कोड को लागू करना होगा. श्री सोनू ने कहा कि मैं दिल्ली से आने वाले उन नेताओं से पूछना चाहता हूं जब वह धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के चरणों में झुकते हैं, संथाल हूल के महानायक सिद्धो-कान्हू के चरणों में जाकर झुकते हैं, लेकिन सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग पर चुप रहते हैं. उन्होंने कहा कि मैं यह मानता हूं कि भाजपा के आदिवासी नेताओं को आदिवासियों के हितों से कोई सरोकार नहीं है. उन्होंने भाजपा नेताओं से कहा कि भगवान बिरसा मुंडा के चरणों में झुकने का नाटक मत करो. कहा कि भाजपा के आदिवासी नेता जब आदिवासियों के नहीं हुए तो दुनियां में किसी के भी नहीं होंगे. कहा कि भाजपा के नेता आदिवासियों के हमदर्द होने की बात करते हैं, लेकिन आदिवासियों के सवाल पर उनके मुंह में दही जमा होता है. जुबां से एक आवाज नहीं निकलती है. कहा कि झामुमो ने बड़ी लड़ाई का आगाज किया है. कई लड़ाईयों को संघर्ष के बूते जीता है. श्री सोनू ने कहा कि दिशोम गुरू शिबू सोरेन और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह ठान लिया है कि आदिवासियों को उनका हक मिले तो लंबी लड़ाई फिर से लड़ने के लिए सबों को तैयार होना होगा.

सरना धर्म कोड लागू करना होगा : केदार

पूर्व विधायक सह झामुमो नेता केदार हाजरा ने कहा कि केंद्र सरकार को सरना धर्म कोड लागू करना होगा. कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरना धर्म कोड लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन तेज है. कहा कि विधानसभा में सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड लागू करने का विधेयक पारित हुआ था. लेकिन केंद्र सरकार इसे लागू नहीं कर रही है. इस मामले में भाजपा का दोहरा चरित्र देखने को मिल रहा है. कहा कि भाजपा के कद्दावार नेता इसी जिले के हैं, लेकिन वह इस मामले में चुप्पी साध रखे हैं.

ये थे मौजूद : धरना कार्यक्रम में इनके अलावे प्रणव वर्मा, बबली मरांडी, प्रमिला मेहरा, ज्योति सोरेन, नुनुराम किस्कू, प्रधान मुर्मू, हरिलाल मरांडी, बिरजू मरांडी, राकेश सिंह रॉकी, अभय सिंह, योगेन्द्र सिंह, राकेश सिंह टुन्ना, शिवम आजाद, सुमित कुमार, दिलीप रजक, कृष्ण मुरारी शर्मा, अनिल राम, महावीर मुर्मू, प्रदोष कुमार, नूर अहमद अंसारी, हसनैन अली, मो. जाकीर, हरगौरी साव छक्कू, विजय सिंह, सन्नी रईन, पप्पू रजक, हरि मोहन कंधवे, नरेश कोल, मो. असदउल्लाह आदि मौजूद थे.

झामुमो शिष्टमंडल ने राष्ट्रपति के नाम डीसी को सौंपा ज्ञापन :

झामुमो शिष्टमंडल ने सरना धर्म कोड/आदिवासी धर्म कोड को मान्यता दिये बिना जनगणना नहीं करवाने से संबंधित एक ज्ञापन राष्ट्रपति के नाम डीसी को सौंपा. शिष्टमंडल में पूर्व विधायक केदार हाजरा, प्रणव वर्मा, अजीत कुमार पप्पू, शहनवाज अंसारी, बबली मरांडी, दिलीप मंडल, कोलेश्वर सोरेन शामिल थे. ज्ञापन में कहा गया है कि भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा पूरे देश में जातिगत जनगणना करवाने का निर्णय लिया गया है. झारखंड सरकार द्वारा सरना धर्म कोड/आदिवासी धर्म कोड विधेयक को झारखंड विस से 11 नवंबर 2020 को एक विशेष सत्र आयोजित कर सर्वसम्मति से पारित किया था. झारखंड विस से उक्त प्रस्ताव को पारित कर राज्यपाल के माध्यम से केंद्र के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया था, परंतु आज लगभग पांच वर्ष उपरांत भी सरना/आदिवासी अस्मिता और पहचान से जुड़े इस विधेयक पर केंद्र सरकार द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया. ज्ञापन में कहा गया है कि सरना धर्म कोड के प्रस्ताव का उद्देश्य 2021 की जनगणना में सरना/आदिवासी धर्म को एक अलग धार्मिक पहचान के रूप में मान्यता दिलाना है. ज्ञापन में कहा गया है कि इस प्रस्ताव को पारित करने के बाद इसे केंद्र सरकार को भेजा गया ताकि जनगणना में सरना/आदिवासी धर्म के लिए एक अलग कॉलम शामिल किया जा सके. लेकिन जब पहचान ही नहीं रहेगी तो जातीय जनगणना कराने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा. ज्ञापन में कहा गया कि यह स्थिति आदिवासी समुदाय के प्रति भाजपा की मानसिकता को उजागर करती है. राष्ट्रपति से मांग किया है कि सरना धर्म कोड/आदिवासी धर्म कोड विधेयक के लागू होने तक जनगणना को रोका जाय, जिससे आदिवासी समुदायों के अस्मिता और पहचान की रक्षा हो सके.

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