गुमला. कोरवा जनजाति के लोगों को सरकारी योजना का लाभ देने में प्रशासन काफी पीछे हैं. कोरवा जनजाति के गांव में न बिजली है, न शौचालय और न पक्का घर है. जबकि बिरसा आवास उन्हीं विलुप्त प्राय: आदिम जनजाति लोगों के लिए है. दुर्भाग्य की बात है कि गुमला जिला ओडीएफ घोषित है. कागजों में प्रशासन हर गांव में शौचालय बनाने का दावा करता है. परंतु कोरवा जनजाति के गांव प्रशासन के दावों को झुठला रहा है. हम बात कर रहे हैं चैनपुर प्रखंड की बारडीह पंचायत स्थित हल्दी कोना गांव की. गांव में कोरवा जनजाति के लोग रहते हैं. परंतु इस गांव में सरकारी योजना महज कागजों पर चल रहा है.
बंद हो गया है नक्सलियों का आवागमन, अब विकास चाहते हैं लोग
हल्दी कोना गांव एक समय घोर नक्सल प्रभावित था, जहां भाकपा माओवादी के नक्सली हथियार टांगे पहुंच जाते थे. इस गांव से सटे जंगलों की कच्ची सड़कों पर नक्सलियों ने कई जगह बम बिछा रखे थे. हालांकि, पुलिस ने बम को बरामद कर उसे नष्ट कर इस गांव के लोगों को सुरक्षित जंगलों में विचरण करने में मदद की है. जब तक नक्सली आते-जाते रहे. गांव के लोग चुपचाप रहते थे. कभी गांव के विकास की बात नहीं की. परंतु अब नक्सलवाद खत्म हुआ है, तो ग्रामीण चाहते हैं कि गांव का विकास हो. पानी, बिजली, सड़क, शौचालय व पक्का घर बने. हालांकि प्रशासन इस गांव तक जाने के लिए पीएम जन-मन ग्रामीण योजना के तहत पक्की सड़क बनवा रही है. फिलहाल सड़क पर पत्थर बिछाया गया है. वहीं गांव में जलमीनार भी बैठायी गयी है. परंतु आज भी गांव में बिजली नहीं पहुंची है और न ही किसी के घर में शौचालय हैं. कच्ची मिट्टी के घर होने के कारण लोगों को परेशानी होती है. गांव के अंदर की सड़क कच्ची है, जिससे बरसात में परेशानी होती है. हल्दीकोना गांव के मेघनाथ कोरवा व मांगा कोरवा ने कहा है कि हमारे गांव के विकास पर प्रशासन ध्यान दें. अधूरी सड़क बनवा दें. हर घर में शौचालय बनाया जाये. क्योंकि अभी गांव के लोग खुले खेत या जंगल में शौच करने जाते हैं. सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को होती है. बिरसा आवास योजना से सभी का पक्का घर बने. गांव में बिजली पोल लगे हैं, परंतु, बिजली तार अब तक जोड़ा नहीं गया है. आजादी के बाद से हमलोग अपने गांव में बिजली जलने का इंतजार कर रहे हैं.पेंशन नहीं मिलती, भीख मांगती हूं : तीजू
केवना गांव के तीजू कोरवा (80) ने कहा कि लाठी के सहारे कहीं आती-जाती हूं. सप्ताह में दो से तीन दिन गुमला आकर कचहरी मोड़ के समीप बैठ कर भीख मांगती हूं. भीख से जो पैसा मिलता है, उससे पेट भरती हूं. तीजू कोरवा ने कहा कि उसे वृद्धा पेंशन नहीं मिलती, जबकि उसने कई बार आवेदन दिया. परंतु अधिकारी कहते हैं कि पेंशन स्वीकृत हो गया है, पर पेंशन का पैसा कहां जा रहा है, मुझे पता नहीं है. तीजू ने कहा कि अगर पेंशन मिल जाती, तो मुझे जीने का सहारा मिल जाता.गांव के विकास पर ध्यान दे प्रशासन : लालू
लालू कोरवा ने कहा कि अभी एक साल पहले जलमीनार बनी है, जिससे पानी पी रहे हैं. इससे पहले दाड़ी कुआं का पानी पीते थे. सरकारी सुविधा के नाम पर गांव में सिर्फ खानापूर्ति हो रही है. प्रशासन से अनुरोध है कि हमारे गांव के विकास पर प्रशासन ध्यान दे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है