Positive Story: गुमला जिले का वो नक्सल प्रभावित इलाका, जहां आये दिन भाकपा माओवादी हथियार के साथ टहलते नजर आते थे, आज आम की खुशबू से सराबोर हो चुका है. शायद किसी ने सोचा नहीं होगा कि कभी ऐसा बदलाव आयेगा, परंतु समय बदला. नक्सल के बादल छंटे और नक्सल प्रभावित इलाके को आम की खेती ने एक अलग पहचान दी. जहां कभी फिजाओं में बारूद के धुएं तैरते थे, अब वहां आम की सुगंध फैल चुकी है.
हर साल हो रहा करीब 3 करोड़ रुपये का व्यवसाय
जिले के रायडीह व घाघरा प्रखंड में किसान बृहद पैमाने पर आम की खेती कर रहे हैं, जिससे गुमला जिला धीरे-धीरे आम की खेती का हब बनते जा रहा है. यहां 100 से अधिक गांवों में 600 से ज्यादा किसान बड़े पैमाने पर आम्रपाली, मल्लिका, मालदा व दशहरी आम की खेती कर रहे हैं. किसानों की मानें तो, यहां हर साल करीब 3 करोड़ रुपये का आम का व्यवसाय होता है. एक किसान को हर साल 50 हजार रुपये से 1 लाख रुपये की आमदनी हो रही है.
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पड़ोसी राज्यों की मंडियों में बिक रहा आम
गुमला से यह आम राजधानी रांची समेत छत्तीसगढ़, ओड़िशा और बंगाल जैसे पड़ोसी राज्यों की मंडियों तक भी पहुंच रहा है. कई व्यापारी खुद गांव आकर थोक के भाव में किसानों से आम खरीद कर ले जाते हैं. वहीं कुछ किसान खुद ही स्थानीय बाजारों में जाकर आम बेचते हैं.
नक्सलियों के गढ़ में फैली आम की सुगंध
रायडीह प्रखंड का परसा पंचायत घोर नक्सल इलाका माना जाता था. भाकपा माओवादी हथियार टांग कर इस क्षेत्र में अक्सर आते-जाते रहते हैं. वर्ष 2000 से 2010 तक इस क्षेत्र में नक्सल गतिविधि उफान पर रही. परंतु समय के साथ धीरे-धीरे नक्सल गतिविधियां कम हुई. और किसान बागवानी की ओर कदम बढ़ाने लगे. वर्ष 2010 से किसानों ने आम्रपाली, मालदा व मल्लिका आम के पौधे लगाये. अब ये पौधे पेड़ बन गये, जिससे किसानों की तकदीर व तस्वीर दोनों बदलने लगी है.
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