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Sohrai 2022: गुमला के कामडारा में महुआ खूंटा लगाने की परंपरा, खेत का पहला अन्न पशुओं को खिलाया जाता

गुमला में सोहराय पर्व को लेकर आदिवासी समुदाय में काफी उत्साह है. महिलाएं घरों की रंग-रोगन में लगी है. वहीं, दीपावली के दूसरे दिन गौशाला और पशुओं की पूजा की जाती है. इस दौरान महुआ खूंटा के अलावा खेतों के पहले अन्न को पशुओं को खिलाने की परंपरा आज भी जारी है.

Sohrai 2022: गुमला जिला अंतर्गत कामडारा और चैनपुर प्रखंड में सोहराय पर्व मनाने की अलग-अलग परंपरा है. कामडारा प्रखंड में कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन सोहराय पर्व मनाने की परंपरा है. इस दिन गौशाला और मवेशियों की पूजा की जाती है. नये सूप में मवेशियों को कोहड़ा युक्त उरद का दाना खिलाया जाता है और पशुपालक परिवार के सभी सदस्या इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं. मवेशी की देखभाल करने वाले को नया वस्त्र दिया जाता है.

सोहराय के दिन मवेशियों को नये सूप से खिलाया जाता है अन्न

इस संबंध में वृद्ध शल्य कुमार साहू ने बताया कि वर्तमान में अब सोहराय पर्व की महता कम हो गयी है. 70 के दशक तक यह त्योहार आदिवासी मूलवासियों का प्रमुख त्योहार माना जाता था. अब धीरे-धीरे किसानों में मवेशी पालने का रुझान कम होता गया. अब मशीनी युग आ गया है. हल और बैल की जगह ट्रैक्टर से काम चल रहा है. सोहराय के दिन विशेष कर मवेशियों को नये सूप में अन्न खिलाया जाता है.

महुआ खूंटा लगाने की परंपरा आज भी जीवित

वहीं, गोशाला में महुआ डाली का खूंटा लगाने की परंपरा आज भी देखा जाता है. खूंटा की पूजा भी की जाती है. बुका तोपनो ने बताया कि गोशाला में महुआ खूंटा लगाने का रिवाज है जो सदियों से होता आ रहा है. प्राचीन कथा है. मवेशी और किसान में किसी बात को लेकर मनमुटाव हो गया था. मवेशी महुआ पेड़ के नीचे बैठ गया. गोशाला में नहीं आने लगा. तब किसान महुआ पेड़ के नीचे बैठे मवेशियों के पास जाकर मिन्नतें करने लगा. तब मवेशियों ने कहा कि अन्न उपजाने में हमारा सभी का सहयोग रहता है. इसलिए उस अन्न पर पहला अधिकार हमलोग का है. यही मान्यता है कि सोहराय में मवेशियों को अन्न खिलाया जाता है और महुआ लकड़ी का खूंटा लगाया जाता है.

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सोहराय में गौहाल घर की परंपरा

वहीं, चैनपुर प्रखंड में सोहराय का पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व कार्तिक अमावस्या के दूसरे दिन मनाया जाता है. इस दिन पूरे क्षेत्र की जनता अपने-अपने परंपरा के अनुसार गौशाला की लीपीपोती कर स्वच्छ एवं सुंदर बनाते हैं. इसके बाद किसान अपने मवेशियों को लेकर चराने जाते हैं और घर की महिलाएं घर में प्रसाद के रूप में मवेशियों को खिलाने के लिए विभिन्न प्रकार के नये अनाज जैसे चना, मकई, उड़द सभी को मिलाकर और उबाल कर गुड़ के साथ प्रसाद तैयार करती हैं. दोपहर बाद जब मवेशी घर लौटते हैं, तो उन्हें सजा हुआ चौक, खुद के निशानों से बने माला, सिंग में तेल और सिंदूर लगाकर उनकी पूजा करते हैं. वहीं, गौ माता को प्रणाम कर घर की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है. मवेशी चराने वालों को नये वस्त्र और पैसे प्रदान दिये जाते हैं. इस दिन मवेशियों को नये खूंटा में बांधा जाता है.

रिपोर्ट : जन्मजय/कौशलेंद्र, कामडारा/चैनपुर, गुमला.

Samir Ranjan
Samir Ranjan
Senior Journalist with more than 20 years of reporting and desk work experience in print, tv and digital media

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