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गुमला: LED बल्ब निर्माण यूनिट की स्थापना कर व्यापारी उद्यमी के रूप में खुद को स्थापित करने में जुटा है सुधन

बिशुनपुर का हेलता गांव एक समय में उग्रवाद प्रभावित था. इस क्षेत्र में नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता था. युवा वर्ग कब भटक जायेंगे. यह चिंता माता-पिता को सताती थी.

मन में विश्वास व लगन हो, तो कोई काम मुश्किल नहीं. ऐसे ही शख्स बिशुनपुर प्रखंड के हेलता गांव निवासी सुधन चीक बड़ाइक हैं. सुधन ने एलइडी बल्ब निर्माण यूनिट की स्थापना की है. इससे सुधन न खुद को व्यापारी उद्यमी के रूप में अपने को स्थापित किया है. उसने खुद एलइडी बल्ब बनाने के अलावा दूसरे युवकों को भी प्रशिक्षण दे रहा है,

जिससे गांव के बेरोजगार युवक एलइडी बल्ब बनाने व मरम्मत के व्यवसाय से जुड़ कर खुद के पैरों पर खड़ा हो सकें. बता दें कि बिशुनपुर का हेलता गांव एक समय में उग्रवाद प्रभावित था. इस क्षेत्र में नक्सलियों का आना-जाना लगा रहता था. युवा वर्ग कब भटक जायेंगे. यह चिंता माता-पिता को सताती थी. परंतु, उग्रवाद का बादल छंटे, तो अब सुधन जैसे उद्यमी सामने आने लगे हैं.

सुधन की सोच ने उसे आगे बढ़ने के लिए किया प्रेरित :

चीक बड़ाइक की सोच कुछ अलग है. वह अपनी सोच को खुद को साबित करने व एक सफल व्यवसायी बनाने में लगाया. उसकी यही सोच का नतीजा है कि वर्तमान समय में उनके पास अपना एलइडी बल्ब निर्माण यूनिट है. इस बिजनेस को शुरू करने के लिए सुधन ने रेस लीड्स परियोजना की मदद ली.

शुरुआती दौर में सुधन ने टेक्निकल यूथ प्रशिक्षण लिया. रेस लिड्स परियोजना ने सुधन की फाइनेंशियल मदद कर नया बिजनेस शुरू करने में सहायता की. रेस परियोजना के डीपीएम योगेश राय ने बताया कि सुधन के मन में बिजनेस उद्यमी बनने का ख्याल आया. इसलिए आज वह सफल उद्यमी बन गया है.

शुरू में बनाया 50 बल्ब, अब बना रहा है हजारों बल्ब

कुछ ही प्रयास के बाद सुधन एलइडी बल्ब बनाने में सफल हो गया. वह 50 एलइडी बल्ब बना कर लोकल स्तर पर बेचने लगा. साथ ही पुराने बल्ब की भी मरम्मत करने लगा. धीरे-धीरे यह कारवां इतना बढ़ा कि हजारों कि संख्या में उनके पास खराब बल्ब मरम्मत के लिए आने लगे. इससे उनका मनोबल और बढ़ गया. इसके बाद रेस लीड्स ने सुधन को अपना टेक्निकल मास्टर ट्रेनर बना कर और भी लोगों को प्रशिक्षण देकर बिजनेस उद्यमी बनाने में मदद करने लगा. लीड्स के तहत बिशुनपुर में अब तक छह एंटरप्रेन्योरशिप को खड़ा किया गया है

घर के एक खराब बल्ब ने बना दिया इंजीनियर

सुधन ने बताया कि एक बार उनके कमरे की एलइडी बल्ब खराब हो गया. दूसरी एलइडी लेने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान उनके गांव से 15 किमी दूर है. इसके बाद उन्होंने निश्चय किया कि वह बल्ब बनाने का प्रशिक्षण लेगा और खुद अपने गांव में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट खोलेगा. तब उसने जिज्ञासावश रेस लीड्स द्वारा तीन दिनी आवासीय प्रशिक्षण लिया. सुधन बताता है कि एलइडी बल्ब में अधिक कंपोनेंट नहीं था.

ऐसे में बल्ब को जलाने में उनकी भूमिका को समझना और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया था. ड्राइवर, कैब, चिप व बॉडी ही इसके प्रमुख तत्व थे. सबकी अलग-अलग भूमिका थी. किसी भी कंपोनेंट को प्रोसेस की जरूरत ही नहीं थी. लेकिन उनको असेंबल के दौरान काफी सावधानी बरतनी जरूरी था. शुरुआत में सुधन के पास सभी संसाधन नहीं थे. स्थानीय स्तर पर उन्हें उपलब्ध कराने रेस लीड्स ने अहम भूमिका निभायी.

Prabhat Khabar News Desk
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