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सावन माह पर विशेष : वासुदेव कोना मंदिर शाश्वत है, भगवान विश्वकर्मा ने तराशा है

गुमला से 15 किमी दूरी पर स्थित रायडीह प्रखंड में वासुदेव कोना मंदिर है

: हजारों साल पुराना है यह मंदिर, हर मनोकामना करते होती है पूरी. : वासुदेव कोना मंदिर रायडीह प्रखंड से तीन किमी की दूरी पर है. : 6वीं व 7वीं में पत्थरों के ऊपर पत्थर रखकर बनाया गया मंदिर. : मंदिर के अंदर प्राचीन शिवलिंग है और दरवाजे के पास नंदी है. : सावन माह में यहां छत्तीसगढ़ व झारखंड राज्य के श्रद्धालु आते हैं. 20 गुम 16 में रायडीह प्रखंड का वासुदेव कोना मंदिर 20 गुम 17 में प्राचीन मंदिर, जिसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है 20 गुम 18 में मंदिर में स्थापित प्राचीन शिवलिंग दुर्जय पासवान, गुमला गुमला से 15 किमी दूरी पर स्थित रायडीह प्रखंड में वासुदेव कोना मंदिर है. यह मंदिर स्वतंत्रता सेनानी बख्तर साय के गांव जाने के रास्ते पर वासुदेव कोना गांव में है. जहां प्राचीन शिव मंदिर है. मंदिर व शिवलिंग की स्थापना कब हुई. इसका कोई प्रमाण नहीं है. परंतु मंदिर के पुजारी के अनुसार वासुदेव कोना मंदिर की स्थापना छठवीं व सातवीं शताब्दी के आसपास या उससे पहले हुई होगी. पुजारी के अनुसार मंदिर की जो बनावट है. इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है. मंदिर में किसी प्रकार के सीमेंट, चूना, मिटटी या बालू का उपयोग नहीं हुआ है. पत्थर से मंदिर का निर्माण किया गया है. हजारों साल पुराना मंदिर होने के कारण यहां से श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है. स्थानीय लोग कहते हैं. दिल से मांगी मुराद जरूर पूरी होती है. यहां तक कि भगवान शिव के कारण ही वासुदेव कोना व आसपास के इलाके आपदा से सुरक्षित है. हालांकि एक बार शिवलिंग की चोरी कर ली गयी थी. बाद में थाली के माध्यम से शिवलिंग की खोज की गयी थी. उस समय गांव में आपदा का खतरा बढ़ गया था. इसलिए अब कोई भी शिवलिंग को अपने निर्धारित स्थल से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. दरवाजे पर बिराजे हैं भगवान नंदी भगवान शिव मंदिर के अंदर बैठे हुए हैं. जबकि भगवान नंदी दरवाजे के पास हैं. पत्थर की आकृति का नंदी भगवान भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. शिवलिंग में पूजा के बाद नंदी की पूजा जरूर लोग करते हैं. नंदी की बनावट प्राचीन है. प्राचीन समय के पत्थर से नंदी बना है. पुजारी के अनुसार नंदी स्वयं मंदिर के दरवाजे के पास हजारों साल पहले प्रकट हुए और पत्थर के रूप में बिराजे हुए हैं. टांगीनाथ से भी पुराना है वासुदेव कोना मंदिर पुजारी ने कहा कि वासुदेव कोना का मंदिर टांगीनाथ धाम से भी पुराना है. उन्होंने कहा कि डुमरी प्रखंड के टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर है, जो आज भी साक्षात है. यहां की कलाकृतियां व नक्कासी, देवकाल की कहानी बयां करती है. जिसपर से आज तक परदा नहीं उठ सका है. कई ऐसे स्रोत हैं, जो 7वीं व 9वीं शताब्दी में ले जाता है. टांगीनाथ धाम में साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं. टांगीनाथ धाम में यत्र तत्र सैंकड़ों की संख्या में शिवलिंग है. बताया जाता है कि यह मंदिर शाश्वत है. स्वयं विश्वकर्मा भगवान ने टांगीनाथ धाम की रचना किये. यहां की बनावट, शिवलिंग व अन्य स्रोतों को देखने से स्पष्ट होता है, कि इस आम आदमी नहीं बना सकता है. उसी प्रकार वासुदेव कोना मंदिर है. जो शाश्वत है और इसे भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है. भगवान पीठ पर बैठे तो हाथी उठ नहीं सका वासुदेव कोना में भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु का भी वास है. पुजारी ने बताया कि पालकोट के राजा को वासुदेव कोना स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति पसंद आ गयी थी. उन्होंने मूर्ति को उठाकर लाने के लिए हाथी भेजा था. महावत हाथी लेकर वासुदेव कोना पहुंचा. मूर्ति को हाथी की पीठ पर बैठाया गया. परंतु मूर्ति हाथी की पीठ पर बैठने के बाद हाथी खड़ा नहीं हो सका. काफी प्रयास किया गया था. जब हाथी मूर्ति को अपनी पीठ पर बैठा नहीं सका तो पालकोट के राजा ने मूर्ति को वासुदेव कोना में ही छोड़ दिये. आज भी यह मूर्ति गांव में साक्षात है. भगवान विष्णु की इस मूर्ति की स्थापना भी स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किये थे.

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