गुमला. रायडीह प्रखंड के जंगल व पहाड़ों के बीच बसे मुरूमकेला व लालमाटी गांव से नक्सल के बादल छटे, तो अब इस क्षेत्र के लोग लाह के उत्पादन की ओर बढ़ रहे हैं. इसमें वन विभाग गुमला मदद कर रहा है, ताकि इस क्षेत्र के किसान लाह का उत्पादन कर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सके. वन विभाग द्वारा रायडीह प्रखंड अंतर्गत मुरूमकेला व लालमाटी में ग्रामीणों से करायी गयी लाह की खेती का डीएफओ अहमद बेलाल अनवर ने निरीक्षण किया. वन विभाग मुरूमकेला व लालमाटी में लाह की खेती में दोनों गांवों के करीब 300 परिवारों को जोड़ा है. 300 परिवारों ने दोनों गांवों में जंगल के करीब 100 कुसुम के पेड़ों पर लाह बीज लगाया गया है. लाह की खेती कराने के लिए वन विभाग द्वारा करीब 12 लाख रुपये खर्च किये गये हैं. अनुमान है कि 100 पेड़ों से तकरीबन एक करोड़ रुपये का आठ हजार किलोग्राम लाह का उत्पादन होगा. निरीक्षण के क्रम में डीएफओ ने लाभुक परिवारों से मुलाकात कर कुसुम पेड़ों पर तैयार हो रहे लाह का जायजा लिया. उम्दा किस्म के तैयार हो रहे लाह को देख कर डीएफओ ने प्रसन्नता व्यक्त की. साथ ही ग्रामीणों लाह तैयार होने तक उसकी सुरक्षा करने की बात कही.
जून-जुलाई माह में पूरी तरह से तैयार हो जायेगा लाह : डीएफओ
डीएफओ ने बताया कि मुरूमकेला व लालमाटी गांव के लोग खुश हैं. क्योंकि लाह से उनकी तकदीर बदलने वाली है. जून-जुलाई माह में लाह पूरी तरह से तैयार हो जायेगा. लाह की खेती कराने में करीब 12 लाख रुपये खर्च किये गये है. अनुमान है कि सभी पेड़ों में जितना लाह का उत्पादन होगा, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये होगी. उक्त राशि सभी लाभुक परिवारों का होगी. सभी परिवार लाह को बेच कर आर्थिक रूप से मजबूत होंगे. डीएफओ ने कहा कि लाह की खेती से गांव के लोगों को तो आर्थिक लाभ होगा ही. साथ ही इससे जंगल को लाभ मिल रहा है. इस साल पहली बार ऐसा हुआ है कि मुरूमकेला व लालमाटी जंगल में आग लगने की घटना नहीं हुई है. ऐसा इसलिए क्योंकि गांव के लोग जंगल के कुसुम पेड़ों पर लाह की खेती कर रहे हैं. बीते साल तक महुआ के सीजन में महुआ चुनने के लिए आग लगा दी जाती थी. कई बार तो प्राकृतिक कारणवश आग लग जाती थी. लेकिन इस साल जंगल के कुसुम पेड़ों पर लाह लगाये जाने के कारण ग्रामीणों द्वारा आग नहीं लगायी गयी. जंगल में यदि आग लगती, तो लाह खराब हो जाता. ग्रामीणों ने लाह के माध्यम से अपनी आर्थिक उन्नति को ध्यान में रखते हुए जंगल व जंगली जीवों के सुरक्षा व संरक्षण करने का संकल्प लिया है. डीएफओ ने कहा कि आनेवाले समय में अन्य जंगलों में भी स्थानीय ग्रामीणों के माध्यम से लाह की खेती करायी जायेगी, ताकि जंगल में आग लगने की घटना नहीं हो.
डीएफओ ने बताया कि मुरूमकेला व लालमाटी गांव के लोग खुश हैं. क्योंकि लाह से उनकी तकदीर बदलने वाली है. जून-जुलाई माह में लाह पूरी तरह से तैयार हो जायेगा. लाह की खेती कराने में करीब 12 लाख रुपये खर्च किये गये है. अनुमान है कि सभी पेड़ों में जितना लाह का उत्पादन होगा, जिसकी कीमत करीब एक करोड़ रुपये होगी. उक्त राशि सभी लाभुक परिवारों का होगी. सभी परिवार लाह को बेच कर आर्थिक रूप से मजबूत होंगे. डीएफओ ने कहा कि लाह की खेती से गांव के लोगों को तो आर्थिक लाभ होगा ही. साथ ही इससे जंगल को लाभ मिल रहा है. इस साल पहली बार ऐसा हुआ है कि मुरूमकेला व लालमाटी जंगल में आग लगने की घटना नहीं हुई है. ऐसा इसलिए क्योंकि गांव के लोग जंगल के कुसुम पेड़ों पर लाह की खेती कर रहे हैं. बीते साल तक महुआ के सीजन में महुआ चुनने के लिए आग लगा दी जाती थी. कई बार तो प्राकृतिक कारणवश आग लग जाती थी. लेकिन इस साल जंगल के कुसुम पेड़ों पर लाह लगाये जाने के कारण ग्रामीणों द्वारा आग नहीं लगायी गयी. जंगल में यदि आग लगती, तो लाह खराब हो जाता. ग्रामीणों ने लाह के माध्यम से अपनी आर्थिक उन्नति को ध्यान में रखते हुए जंगल व जंगली जीवों के सुरक्षा व संरक्षण करने का संकल्प लिया है. डीएफओ ने कहा कि आनेवाले समय में अन्य जंगलों में भी स्थानीय ग्रामीणों के माध्यम से लाह की खेती करायी जायेगी, ताकि जंगल में आग लगने की घटना नहीं हो.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है