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जो बात हमें स्वयं अच्छी नहीं लगती, वह दूसरे से न कहें : नितिन देव महाराज

कहा कि व्यास जी ने भागवत कथा लिखी थी. इस दौरान उन्होंने 17 पुराण लिखे थे. जब मन को संतुष्टि नहीं हुई तब उन्होंने 18वें पुराण में श्रीमद् भागवत पुराण की रचना की थी. भागवत कथा पुराणों का सार है.

कुंडहित. प्रखंड के खाजूरी गांव स्थित बजरंगबली मंदिर परिसर में चल रहे सात दिवसीय भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक वृंदावन के नितिन देव महाराज के द्वारा नारदजी के षष्टी वर्णन, धुंधकारी की कथा, गोकर्ण की कथा तथा भागवत कथा की महिमा आदि के बारे में विस्तार से कथा सुनायी गयी. उन्होंने कहा कि भागवत कथा सात दिनों की क्या परंपरा है. भागवत कथा सबसे पहले सनकादिजी ने नारदजी को सुनायी थी. बाद में सुखदेवजी ने राजा परीक्षित को सुनायी, तब जब राजा परीक्षित की सर्पदंशन से मृत्यु होने वाली थी. उन्होंने कहा कि व्यास जी ने भागवत कथा लिखी थी. इस दौरान उन्होंने 17 पुराण लिखे थे. जब मन को संतुष्टि नहीं हुई तब उन्होंने 18वें पुराण में श्रीमद् भागवत पुराण की रचना की थी. भागवत कथा पुराणों का सार है. उन्होंने कहा कि यह कलयुग है. इसमें नाम ही सार है, कीर्तन और सत्संग से जुड़कर जीवन में शांति समृद्धि मिलेगी. भगवान की प्राप्ति होगी. हम लोग इस संसार में आए हैं भगवान प्राप्ति के लिए. लेकिन आने के बाद हम लोग भटक जाते थे. फिर भी कथाओं के माध्यम से संदेश दिया गया कीर्तन सत्संग भगवान के गुणगान से ही जीवन का कल्याण होगा. कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों का साथ देकर विजय दिलायी थी. कृष्ण पांडव सत्य धर्म के पथ पर थे. धर्म की जय होती है. अधर्म का नाश होता है. इसलिए धर्म और सत्य के पथ पर इंसान को चलना चहिए. उन्होंने कहा कि सारे धर्म का एक ही मर्म है कि जो बात हमें स्वयं अच्छी नहीं लगती है, वह दूसरे से न कहें, यही सबसे बड़ा धर्म है.

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