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श्रीकृष्ण की जन्म लीला की कथा सुन भावविभोर हुए भक्त

श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कुलदीप कृष्ण महाराज ने सुनाये कई प्रसंग. राम-सीता विवाह प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए.

बिंदापाथर. लायबनी गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन कथावाचक पंडित कुलदीप कृष्ण महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की जन्म लीला का मधुर वर्णन किया. कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था. कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ. कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल पहुंचाने जा रहा था. रास्ते में आकाशवाणी हुई – ””””””””हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है. इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा.”””””””” यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ. तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा – ””””””””मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी. बहनोई को मारने से क्या लाभ है?”””””””” कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया. उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया. वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला. अब आठवां बच्चा होने वाला था. कारागार में उन पर कड़े पहरे बैठा दिए गए. उसी समय नंद की पत्नी यशोदा को भी बच्चा होने वाला था. उन्होंने वसुदेव-देवकी के दुखी जीवन को देख आठवें बच्चे की रक्षा का उपाय रचा. जिस समय वसुदेव-देवकी को पुत्र पैदा हुआ, उसी समय संयोग से यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ जो और कुछ नहीं सिर्फ ””””””””माया”””””””” थी. भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि की घनघोर अंधेरी आधी रात को रोहिणी नक्षत्र में मथुरा के कारागार में वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया. कथा के अंतर्गत “प्रभु राम-माता सीता विवाह कथा का मधुर वर्णन किया. राम-सीता विवाह प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए. इस हृदयस्पर्शी प्रसंग में कथावाचक ने कहा कि राजा जनक के दरबार में भगवान शिव का धनुष रखा हुआ था. एक दिन सीता ने घर की सफाई करते हुए उसे उठाकर दूसरी जगह रख दिया. उसे देख राजा जनक को आश्चर्य हुआ, क्योंकि धनुष किसी से उठता नहीं था. राजा ने प्रतिज्ञा की कि जो इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता का विवाह होगा. उन्होंने स्वयंवर की तिथि निर्धारित कर सभी राजा- महाराजा को विवाह के लिए निमंत्रण भेजा. वहां आए सभी लोगों ने एक-एक कर धनुष को उठाने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी इसमें सफलता नहीं मिली. गुरु की आज्ञा से श्री राम धनुष उठा प्रत्यंचा चढ़ाने लगे तो वह टूट गया. इसके बाद धूमधाम से सीता व राम का विवाह हुआ.

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