Shibu Soren Raas Mela News| जामताड़ा, उमेश कुमार : जामताड़ा भी दिशोम गुरु शिबू सोरेन की कर्मस्थली रही. महाजनी प्रथा के खिलाफ उन्होंने यहां रहकर रणनीतियां बनायीं. गुरुजी जब जामताड़ा आते, तो वह कंचनबेड़ा गांव में कर्णेश्वर नाथ हांसदा के घर रहते थे. वह एक-डेढ़ महीने तक रहते थे और आंदोलन की रूपरेखा तैयार करते थे. लोगों से उस पर चर्चा करते थे.
1974 में कंचनबेड़ा गांव आये थे शिबू सोरेन
कर्णेश्वर हांसदा के बेटे बासुकिनाथ हांसदा ने बताया कि वर्ष 1974 में शिबू सोरेन कंचनबेड़ा गांव आये थे. उस दौरान उन्होंने देखा कि राजा के यहां राजबाड़ी में रास मेला का आयोजन हो रहा है. इस मेले में आदिवासी बहू-बेटियों पर अत्याचार होते थे. शिबू सोरेन ने उसे खत्म करने का निश्चय किया.
आदिवासियों के लिए अलग रास मेला की शुरुआत की
शिबू सोरेन ने ग्रामीणों के साथ बैठक की और उनसे कहा कि वे राजबाड़ी के रास लीला में न जायें. कंचनबेड़ा में आदिवासी समाज का अपना रास मेला शुरू करें. इसके बाद कंचनबेड़ा गांव में अगहन के महीने में मेला की शुरुआत हुई. आज भी अगहन के महीने में 2 दिन का मेला यहां लगता है.
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राजा का मेला खत्म हो गया, आज भी लगता है रास मेला
शिबू सोरेन के द्वारा शुरू किये गये रास मेला की लोकप्रियता बढ़ती गयी. धीरे-धीरे राजबाड़ी में चलने वाला रास मेला बंद हो गया, लेकिन गुरुजी के द्वारा शुरू किया गया रास मेला अब भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.
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शिबू सोरेन के आह्वान पर आदिवासियों ने छोड़ा नशापान
बासुकिनाथ हांसदा ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com)को बताया कि शिबू सोरेन ने आदिवासियों को हड़िया-दारू के खिलाफ जागरूक किया. उनके आह्वान पर बड़ी संख्या में आदिवासी नशे से दूर हो गये.
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