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अवैध खनन के कारण गुम हो रही हरियाली, बिगड़ रहा पर्यावरण संतुलन

पौधराेपण जरूरी, पर्यावरण असंतुलित होने से मानव जीवन पर पड़ा रहा प्रतिकूल असर

साहिबगंज.5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था. पर्यावरणीय मुद्दों पर लोगों को हर साल जागरूक किया जा रहा है. कैसे पर्यावरण पर संतुलन बनाया जा सके. पर्यावरण को संरक्षित रखा जा सके, इस पर विचार-विमर्श किया जाता है. साहिबगंज भी पर्यावरण के दुष्प्रभाव से अछूता नहीं है. यहां पर भी बड़े पैमाने पर पहाड़ व वनों के अस्तित्व पर संकट है. अंधाधुंध पेड़ों की कटाई होती रही है. यहां का पर्यावरण संतुलन बिगड़ गया है. इससे हवा-पानी को लेकर बड़ी परेशानी हो रही है. जिले में वन का क्षेत्रफल 2276 हेक्टेयर है. जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 में 572.35 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगल था, जो 2023 में 574.47 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैल गया. यह आंकड़ा इंडिया फॉरेस्ट सर्वे देहरादून की रिपोर्ट के अनुसार है. 22 दिसंबर 1855 को संथाल पर परगना क्षेत्र के अलग जिला बनने के बाद लंबे समय तक यह क्षेत्र घने जंगलों से आच्छादित रहा, ऊंची पहाड़ी व घने जंगलों से घिरे होने के साथ ही मां गंगा किनारे बसे होने के चलते ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने इलाके को अपना बसेरा बनाया. आगमन की सुविधा के लिए कंपनी ने 1863 के आसपास हावड़ा से मुगलसराय तक 2924 वाया साहिब मंदिर की दूसरी सबसे लंबी रेल लाइन बिछाने का काम किया. रेल पटरी बिछाने के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों को काटा गया, तब तक यह क्षेत्र करीब 86.80 फीसदी खनिज जंगलों से घिरा था.

गुम हो रही राजमहल पहाड़ियों की हरियाली, बिहार व पश्चिम बंगाल में खपायी जाती हैं अवैध लकड़ियां :

साहिबगंज जिले में फैली राजमहल की पहाड़ियां इन दिनों लकड़ी तस्करों के लिए स्वर्ग बना हुआ है. इससे पहाड़ की हरियाली गायब हो रही है. प्रत्येक दिन पहाड़ों से लकड़ी काट कर तस्कर जंगलों में छुपा देते हैं और सूख जाने पर बिहार व पश्चिम बंगाल तक खपा देते हैं. इसे रोकने का प्रयास भी होता है, लेकिन यह नाकाफी है. वहीं उधवा पक्षी आश्रयणी जिले में पतौड़ा झील के 155 एवं बरहेट झील के 410 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है. झील में गंगा का पानी नहरों के माध्यम से आता है. साल के नौ महीने उधवा पक्षी आश्रयणी में पानी भरा रहता है. गर्मी के मौसम में पानी बहुत कम हो जाता है. वहीं संपूर्ण पक्षी आश्रयणी पहाड़ी के आसपास जहां धीरे-धीरे आबादी बढ़ती जा रही है, इस कारण हरियाली गायब होती जा रही है. साहिबगंज जिले में लकड़ी माफिया की सक्रियता बढ़ गयी है.

जिले में हरियाली लौटाने की हो रही पहल :

जिले में हरियाली लौटाने के लिए पहल की जा रही है. नमामि गंगे के तहत 90 हजार से अधिक पौधे लगाने हैं. जिले में वन विभाग की ओर से गंगा तट के 78 गांवों में पौधरोपण करना है. इसके तहत सागवान, शीशम, महोगनी के पौधे लगाये जा रहे हैं. इसके अलावा गंगा किनारे औषधीय पौधे भी लगाये जायेंगे.

जिले में उड़ायी जा रही पर्यावरण नियमों की धज्जियां :

जिला प्रशासन के तमाम प्रयासों के बाद भी जिले के तालझारी, पतना, बोरियो व मंडरो अंचल के पहाड़ों पर अवैध खनन हो रहा है. तालझारी व मंडरो अंचल में दर्जनों पत्थर खदान व क्रशर नियमों को ताक पर रखकर चल रहे हैं. पर्यावरण नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. पहले से कई मामलों को लेकर गदवा से लेकर महादेवगंज के क्रशर व खदान चर्चा में रहे हैं.

बोटिंग व वन कुटीर से उधवा पक्षी अभ्यारण्य में इको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा :

साहिबगंज जिले के उधवा प्रखंड में झारखंड राज्य का एक मात्र पक्षी अभ्यारण्य अवस्थित है. जहां ठंड के मौसम में हजारों विदेशी साइबेरियन पक्षी आते हैं. पहले यह पक्षी अभ्यारण्य हजारीबाग वन प्रमंडल के अधीन था, लेकिन वर्तमान समय में उधवा पक्षी अभ्यारण्य साहिबगंज वन प्रमंडल के अधीन आ गया है. उधवा पक्षी अभ्यारण्य को संवारने के लिए साहिबगंज वन प्रमंडल विभाग लगा हुआ है. उधवा झील में पर्यटकों के लिए वन कुटीर का निर्माण कराया गया है. एक वन कुटीर में दो कमरे एवं शौचालय व बाथरूम की व्यवस्था है. झील के चारों और पेवर्स ब्लॉक का निर्माण एवं साइकिलिंग ट्रैक का निर्माण कराया जा रहा है. साथ ही उधवा झील में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए बोटिंग की व्यवस्था की गयी है. इससे उधवा पक्षी अभ्यारण्य में इको टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही आसपास के क्षेत्र के लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी.

पर्व-त्योहार में भी हो रही पर्यावरण सुरक्षा की अनदेखी :

हमारे सांस्कृतिक त्योहार हो या रीति-रिवाज, ये भी पर्यावरण विरोधी हैं. दीपावली और विवाह के मौके पर की जानेवाली आतिशबाजी से प्रदूषण का खतरा पैदा हो रहा है. वाहनों से निकलने वाला धुआं सबसे ज्यादा पर्यावरण को क्षति पहुंचा रहा है. धुआं हमारे स्वास्थ्य को भी खराब करता है. बदलती जलवायु के प्रमुख कारण कार्बन डाइऑक्साइड की अधिक मात्रा से धरती का तापमान दो से तीन डिग्री बढ़ गया है. वह दिन दूर नहीं जब क्षेत्र का तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जायेगा, तापमान का बदलता स्वरूप मानव द्वारा प्रकृति के साथ किये गये निर्मम व निर्दयी व्यवहार का सूचक है. स्वार्थ में अंधा मानव अपने जीवन को सरल बनाने के लिए नयी-नयी खोज कर रहा है. इसका भी दुष्परिणाम सामने आयेगा. तापमान में वृद्धि होने के कारण जल स्तर ज्यादातर खतरे में पड़ गया. पानी के अभाव में सिंचाई का संकट भी गहराने लगा है. जलस्रोत के अभाव में कई प्रजाति की मछलियां विलुप्त होने के कगार पर है. जलाशयों में पानी कम होना खतरे का सूचक है. कटते पेड़ के कारण वातावरण में बेतहाशा गर्मी हो गयी है. गर्मी से जल संकट गहरा जायेगा. वृक्षों के अभाव में मानव जीवन संकट में पड़ जायेगा. सूखते जल स्रोत, सूखती धरती, घटता ऑक्सीजन, बढ़ता प्रदूषण, बढ़ती बीमारियां, प्राकृतिक आपदाएं मानव सभ्यता को समाप्त कर देंगी. बढ़ती जनसंख्या के जरूरतों को पूरा करने के लिए क्षेत्र में जंगलों का अतिक्रमण किया जा रहा है. अभी वक्त है. जनसंख्या पर नियंत्रण कर प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करना होगा.

क्या कहते हैं डीएफओ :

साहिबगंज जिले में वन क्षेत्र 305 वर्ग किमी में फैला है. बीते 6 से 7 सालों में करीब 20 लाख पौधे इस जिले में लगाये गये हैं. विभाग व प्रशासन ने आमलोगों को भी पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया. अवैध जंगल कटाई पर रोक लगाने का हरसंभव प्रयास हुआ. पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सभी को सचेत होने की जरूरत है.

– प्रबल गर्ग, डीएफओ, साहिबगंज

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