Shibu Soren Nemra Village| नेमरा से लौटकर सलाउद्दीन : शिबू सोरेन के पैतृक गांव नेमरा में रहनेवाले संताली परिवार को दिशोम गुरु के लौट आने की उम्मीद थी. यहां के लोगों को उम्मीद थी कि गुरुजी उनके बीच लौटकर आयेंगे. इस गांव के पास में ही चार पहाड़ ऊपर प्रचंड, चंदवा डूंगरी, ढेका कोचा और बाड़े कोचा स्थित हैं. इन पहाड़ों के किनारे से जानेवाला रास्ता गुरुजी की शुरुआती यात्रा के उन पलों का गवाह है, जब वह आंदोलन और नये परिवर्तन के लिए निकल पड़े थे. झारखंड की आवाज बनने के लिए उन्होंने नया रास्ता चुना. उस दौर में उन्होंने लोगों के हित के बारे में सोचा. झारखंड के बारे में सोचा. इस मौके पर रामगढ़ मुख्यालय से करीब 50 किमी गोला प्रखंड के बरलंगा चौक से नेमरा गांव जाकर पैतृक आवास में रह रहे परिजनों और ग्रामीणों से मिला. उनके दिल के हालात से रू-ब-रू हुआ.
खूब पैदल चलते थे दिशोम गुरु
नेमरा के लोगों ज्यादातर खेती से जुड़े हैं. इसी गांव की बहू शिबू सोरेन के छोटे भाई स्व शंकर सोरेन की पत्नी दीपमणी सोरेन और उनकी बेटी रेखा सोरेन से मुलाकात हुई. दीपमणी ने बताया कि शिबू सोरेन पैदल खूब चला करते थे. झारखंड घूमने व आंदोलन के लिए इसी पहाड़ की तराई से निकले थे. पहाड़ के चारों ओर रास्ता था. इसी कछिया रास्ते से शिबू सोरेन ने आंदोलन की शुरुआत का रास्ता तय किया था.
गुरुजी की याद में सबकी आंखें नम थीं
इसी दौरान चक्रवाली गांव से फलेंद्र प्रसाद (65) पहुंचे थे. सभी लोग गुरु जी संग गुजारे गये पलों को यादकर भावुक हो उठते हैं. आंखों में थोड़ी नमी सी आ जाती है. गुरुजी सबके दिलों के करीब थे. रेखा सोरेन कहती हैं-बाबा पिछली बार सोहराय पर्व में घर आये थे. जब से होश संभाली हूं , तब से बाबा हमेशा सोहराय और बाबा पर्व में घर आते रहे हैं. बाबा के आने की सूचना मिलते ही आसपास के नरसेहड़ी, औराडीह, संभलपुर, गोविंदपुर और धोरधोरा समेत अन्य गांव के लोग आकर बाबा से मिलते थे. लोग घंटों इंतजार करते थे, लेकिन बाबा से मिलकर जाते थे.
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पिछले बाहा पर्व में बाबा अस्वस्थ होने से नहीं आ पाये थे
रेखा सोरेन कहती हैं कि पिछली होली के समय बाहा पर्व में बाबा अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ पाये थे. भैया हेमंत सोरेन समेत परिवार के हर सदस्य की मौजूदगी रही थी. हम लोगों ने पीठा बनाया था. पारंपरिक गीतों के साथ नृत्य भी किया था. लेकिन बाबा की अनुपस्थिति सबको खलती रही. वो रौनक नहीं थी, जो उनके आने पर होती थी. इस बार कम से कम उम्मीद थी कि बाबा फिर आ पाते. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. दीपमणी सोरेन पैतृक आवास में रहनेवाली सबसे पुरानी सदस्य हैं. वह कहती हैं कि नेमरा गांव के इस घर में उनके पति शंकर सोरेन और सभी चारों भाई राजाराम सोरेन, शिबू सोरेन, लालू सोरेन और रामू सोरेन का परिवार संयुक्त रूप से रहता था. परिवार के बीच काफी तालमेल था.
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शुरू से सादगी पसंद थे शिबू सोरेन
शिबू सोरेन का जीवन शुरू से ही सादगी भरा रहा था. सादा खाना और शाकाहार भोजन ही उनकी आदत रही. ऊपर प्रचंड पहाड़ के किनारे-किनारे पहले सड़क होती थी, यहां से बरलंगा, सोसोकला, नावाडीह, हारूबेड़ा और गोला तक पैदल ही चले जाते थे. परिवार के लोग गेठी फल को पानी में पकाकर खाते थे. वह अधिकांश समय झारखंड में भ्रमण करते रहते थे. जहेराथान में जब शिबू पूजा करते थे, तो संताली समाज के लोगों की भीड़ लग जाती थी.
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