आज भी पाेस्टकार्ड के माध्यम से आकाशवाणी में आ रहे हैं श्रोताओं की फरमाइश
आकाशवाणी रांची का 68वां स्थापना दिवस आज
रांची. आकाशवाणी रांची न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश में अपनी सशक्त प्रसारण क्षमता और जनसमर्पित कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है. वर्ष 1957 में स्थापित यह केंद्र आज भी मीडियम वेव पर 100 किलोवॉट और एफएम ट्रांसमिशन पर 10 किलोवॉट की क्षमता से श्रोताओं तक प्रसारण पहुंचा रहा है. स्थापना के बाद से ही आकाशवाणी रांची ने सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए समाज के हर वर्ग के लिए विशिष्ट कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू की. ‘किसान वाणी’ किसानों के लिए, ‘श्रमिक लोक’ श्रमिक वर्ग के लिए, ‘गृहलक्ष्मी’ महिलाओं के लिए और ‘युववाणी’ युवाओं के लिए बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम साबित हुए हैं. कई कार्यक्रम अब भी प्रसारित हो रहे हैं, जबकि कुछ कार्यक्रम फिलहाल स्थगित हैं, जिन्हें पुनः प्रारंभ करने की योजना चल रही है.डिजिटल दौर में भी जारी है पोस्टकार्ड से संवाद
तकनीकी विकास के बावजूद श्रोताओं की भावनाएं आज भी रेडियो से उसी आत्मीयता से जुड़ी हैं. रांची केंद्र में प्रत्येक सप्ताह औसतन 150 पोस्टकार्ड प्राप्त होते हैं, जिनमें श्रोता अपने पसंदीदा गीतों की फरमाइशें भेजते हैं. उद्घोषक इन फरमाइशों को ‘आपकी पसंद’ (सुबह 11:30 से 12:00 बजे), ‘आपके गीत’ (विविध भारती पर 11:02 से 11:58 बजे) और ‘मनभावन’ (शाम 6:30 से 7:00 बजे) जैसे कार्यक्रमों में प्रसारित करते हैं. वरिष्ठ उद्घोषक राजेश प्रसाद बताते हैं, “श्रोताओं की पोस्टकार्ड से जुड़ी परंपरा आज भी जीवित है.अब डिजिटल माध्यमों पर भी उपलब्ध है प्रसारण
आकाशवाणी रांची के कार्यक्रम अब एफएम 100.5 मेगाहर्ट, मीडियम वेव और न्यूज ऑन एअर ऐप के माध्यम से देश-दुनिया के किसी भी कोने में सुने जा सकते हैं. कार्यक्रम प्रमुख जेवियर कंडुलना के अनुसार, “कोरोना के बाद कुछ विशेषज्ञ आधारित कार्यक्रम अस्थायी रूप से बंद हैं, परंतु उन्हें शीघ्र ही पुनः प्रारंभ किया जायेगा. वरिष्ठ उद्घोषिका ओली मिंज कहती हैं, न्यूज ऑन एयर ऐप एक क्रांतिकारी माध्यम है, जिससे अब श्रोता देश या विदेश, कहीं से भी अपने क्षेत्रीय कार्यक्रम सुन सकते हैं.क्या कहते हैं वर्षों से आकाशवाणी सुनने वाले श्रोता
बाबूलाल ठाकुर (बड़कागांव), वर्ष 1971 से आकाशवाणी के नियमित श्रोता हैं. वे कहते हैं, मेरे पास आज भी पुराने रेडियो का संग्रह है. दिन की शुरुआत ””वंदे मातरम्”” से होती है. 1996 में मुझे एक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर भी मिला था.भगवान बाबू (तेनुघाट), अंग्रेजी के सेवानिवृत्त शिक्षक, 1985 से रेडियो सुन रहे हैं. कहते हैं कि रेडियो से बेहतर संचार का माध्यम कोई नहीं है. मेरे पास पांच रेडियो हैं, जिनमें से
कुछ अब भी चल रहे हैं. सबसे प्रिय कार्यक्रम है फरमाइशी गीत.
श्रेया श्री (बेंगलुरु), आइटी सेक्टर में कार्यरत और आकाशवाणी की पूर्व बाल कलाकार हैं. वे बताती हैं, आकाशवाणी का वातावरण मेरे घर में बचपन से रहा है. आज भी प्राइवेट एफएम चैनलों की तुलना में आकाशवाणी का संगीत और प्रस्तुति मन को सुकून देती है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है