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मिलिए, बसंती ऑटो वाली से, मुंबई की बाला रांची की सड़क पर भरती है फर्राटा

Basanti Auto Wali: कोकर से बूटी मोड़ के बीच ऑटो चलाती है. बसंती कहती है कि जब वह 3 महीने की थी, तो उसकी मां इस दुनिया से चल बसी. कुछ साल के बाद पिता का भी स्वर्गवास हो गया. माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद जीवन कष्ट में आ गया. धीरे-धीरे मैं बड़ी होती गयी. भाई के साथ किसी तरह जिंदगी बीतती रही. हालांकि, मैंने हिम्मत नहीं हारी.

Basanti Auto Wali| नागेश्वर : कालजयी फिल्म ‘शोले’ की बसंती और उसकी ‘धन्नो’ आज भी सबको याद हैं. मुंबई की बसंती 3 महीने के लिए रांची में है. वह भी यात्रियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती है. अंतर सिर्फ इतना है कि इसके पास तांगा नहीं है. बसंती खुद कहती है, ‘शोले फिल्म में एक बसंती थी. तांगे वाली बसंती. पर मैं तो जीवन में सच्ची की आटो वाली बसंती हूं.’

बारिश का सीजन खत्म होने पर लौट जायेगी मुंबई

बसंती बारिश के सीजन में करीब 3 महीने के लिए झारखंड आ जाती है. रांची में ऑटो चलाती है और जब बारिश का सीजन खत्म हो जाता है, तो वह वापस मुंबई चली जायेगी. फिर वहां सवारी को उसकी मंजिल तक पहुंचायेगी.

कोकर से बूटी मोड़ तक ऑटो चलाती है बसंती

इस मराठी बाला की उम्र 19 साल है. कोकर से बूटी मोड़ के बीच ऑटो चलाती है. बसंती कहती है कि जब वह 3 महीने की थी, तो उसकी मां इस दुनिया से चल बसी. कुछ साल के बाद पिता का भी स्वर्गवास हो गया. माता-पिता का साया सिर से उठने के बाद जीवन कष्ट में आ गया. धीरे-धीरे मैं बड़ी होती गयी. भाई के साथ किसी तरह जिंदगी बीतती रही. हालांकि, मैंने हिम्मत नहीं हारी.

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‘ईश्वर ने जन्म दिया है, तो जीने के लिए ही दिया है’

बसंती कहती है कि उसने सोचा कि ईश्वर ने जन्म दिया है, तो जीवन जीने के लिए ही दिया है. कुछ पढ़ाई-लिखाई भी की. परिवार के कुछ सदस्य महाराष्ट्र के मुंबई मे रहते हैं. कुछ लोग रांची के मोरहाबादी रांची में. वह मुंबई चली गयी. वहां ऑटो चलाना सीखा. इसके बाद यात्रियों को उसकी मंजिल पर ऑटो से पहुंचाने में जुट गयी.

‘मुंबई में जिंदगी मशीन की तरह, झारखंड में सुस्त’

यह पूछने पर कि मुंबई महानगर और रांची में ऑटो चलाने में क्या अंतर है. बसंती कहती है कि दोनों शहरों में बहुत अंतर है. मुंबई में लोगों की जिंदगी मशीन की तरह चलती है. झारखंड में लोग काफी सुस्त हैं.

‘ड्राइवरी के पेशे को कुछ लोगों ने किया है बदनाम’

बसंती को इस बात का भी दुख है कि ड्राइवरों के चाल-चलन और व्यवहार की वजह से अब इस पेशे के लोगों को इज्जत नहीं मिलती. ड्राइवर को लोग ड्राइवर साहब कहकर पुकारते हैं, लेकिन ड्राइवरों ने इस पेशे को बदनाम करना शुरू कर दिया है. इसकी वजह से लोग भी उन्हें शक की निगाह से देखते हैं.

‘फिल्म में बसंती तांगे वाली थी, मैं बसंती ऑटो वाली’

बसंती मुस्कुराते हुए कहती है, ‘मुझे जीवन में कुछ करना है. फिल्म में एक बसंती तांगे वाली थी, पर मैं तो अपने जीवन में सच्ची में ऑटो वाली बंसती हूं. बरसात के तीन महीने रांची में ऑटो चलाउंगी और फिर मुंबई लौट जाऊंगी. इसके साथ ही वह ऑटो स्टार्ट करती है और सवारी लेकर आगे बढ़ जाती है.’

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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