Birsa Munda 125th Death Anniversary| रांची, प्रवीण मुंडा : ‘धरती आबा बिरसा मुंडा’ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक है. आदिवासी अधिकार, अस्मिता और सम्मान के लिए अंग्रेजों के खिलाफ बिरसा का उलगुलान संघर्ष की गौरव गाथा है. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंगलों-पहाड़ों और अपनी माटी की रक्षा के लिए अदम्य साहस से भरी एक ऐसी लड़ाई थी, जो सदियों तक देशवासियों को प्रेरित करेगी. नौ जून को बिरसा मुंडा के 125वें शहादत दिवस पर ‘प्रभात खबर’ धरती आबा के बलिदान और संघर्षों से जुड़ी कड़ियां छाप रहा है.
उलगुलान में झारखंडी महिलाओं की भूमिका के किस्से
पहली कड़ी में बिरसा मुंडा के उलगुलान में झारखंडी महिलाओं की भूमिका पर प्रामाणिक किस्से बता रहे हैं. बिरसा उलगुलान में शामिल और लड़ाई के दौरान शहीद हुई अधिकांश महिलाओं के नाम आज भी गुमनाम है. खूंटी का डोंबारी बुरू अंग्रेजी हुकूमत की बर्बरता की दास्तां कहता है. बिरसा मुंडा के आह्वान युद्ध की रणनीति बनाते हजारों आदिवासियों पर अंग्रेजों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी. इस लड़ाई में आदिवासी विरांगना शहीद हुई. डोंबारी के स्तूप में उन अमर शहीद महिलाओं के पति के नाम दर्ज हैं. ‘प्रभात खबर’ ने पहली बार उन तीन शहीद बेटियों को खोज निकाला है.
धरती आबा के आंदोलन में जुड़ा था पूरा समुदाय
‘धरती आबा’ के आंदोलन में पूरा समुदाय जुड़ा था. इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं. हालांकि, अब भी बहुत कम महिलाओं के बारे में जानकारी उपलब्ध है. डोंबारी में अंग्रेजों की गोली से शहीद होनेवाली 3 महिलाओं के नाम पहली बार सामने आये हैं. जिउरी के ग्राम प्रधान बिनसाय मुंडा के प्रयासों से ये नाम सामने आये हैं. वे पिछले 6-7 वर्षों से इन नामों की खोज में लगे थे. उन्होंने कहा कि शहीद होनेवाली एक महिला लोकोम्बा मुंडा उनकी परदादी थीं.
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बंकन मुंडा की पत्नी तिनगी मुंडा हुईं गोलियों का शिकार
तिनगी मुंडा, बंकन मुंडा की पत्नी थीं. वह अपने पति के साथ बिरसा आंदोलन में जुड़ीं थीं. इनका जन्म खूंटी के मुरहू प्रखंड स्थित जिउरी गांव में हुआ था. वे वर्ष 1895 में आंदोलन से तिनगी मुंडा जुड़ीं. वह लगातार विद्रोह में सक्रिय रहीं. 9 जनवरी 1900 को डोंबारी (सईल रकब) में अपने पति के साथ मौजूद थीं. जब आदिवासियों और अंग्रेजों के बीच संघर्ष हुआ, तो वह अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुई. डोंबारी पहाड़ के नीचे जिन 6 शहीदों के नाम शिलालेख पर अंकित हैं, उनमें तिनगी का नाम नहीं है. शिलापट पर लिखा है- बंकन मुंडा की पत्नी.
माझिया मुंडा की पत्नी लोकोम्बा मुंडा भी हुईं थीं शहीद
जिउरी के माझिया मुंडा की पत्नी लोकोम्बा मुंडा भी डोंबारी में शहीद हुईं थीं. शिलालेख पर उसका भी नाम नहीं है. सिर्फ मझिया मुंडा की पत्नी लिखा है. लोकोम्बा का जन्म चाईबासा जिले के बाड़ कुबे गांव में वर्ष 1884 के लोकोम्बा मुंडा आसपास हुआ था. शादी के बाद वह जिउरी गांव स्थित अपने ससुराल आ गयीं. लोकोम्बा मुंडा भी बिरसा मुंडा की सभा में शामिल होती थीं और विद्रोह की रणनीति में भाग लेतीं थीं. वे महिलाओं को संबोधित करतीं थीं. उनके जुड़वां बच्चे थे. वह डोंबारी पर हुए संघर्ष के दिन पहाड़ पर अपने बच्चों के साथ थीं. लोकोम्बा अपने बच्चों को बचाने की कोशिश में पहाड़ पर ही शहीद हो गयीं. उनके बच्चों के बारे में कहा जाता है कि उनमें से एक को अंग्रेज अपने साथ ले गये. बेटी अपने पिता मझिया मुंडा के साथ ही रही.
जिउरी गांव के डुन्डंग मुंडा की पत्नी थीं तसकीर मुंडा
दसकीर मुंडा जिउरी गांव की निवासी थीं. वह डुन्डंग मुंडा की पत्नी थीं. वर्ष 1900 में बिरसा मुंडा के आंदोलन के दौरान वह भी डोंबारी पहाड़ पर थीं. वह भी अंग्रेजों की गोलियों का शिकार हुईं थीं. शिलालेख पर अंकित है- डुन्डंग मुंडा की पत्नी. इसके अलावा गया मुंडा की पत्नी माकी मुंडा और उसकी 3 बेटियां और 2 बहुओं ने भी बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया. इन लोगों ने लाठी, कुल्हाड़ी और दौली से गया मुंडा को पकड़ने गये अंग्रेज सिपाहियों का सामना किया था. कुमार सुरेश सिंह लिखते हैं- इनमें से 2 महिलाओं ने अपने बायें हाथों में छोटे बच्चों को पकड़ रखा था और दाहिने हाथ से कुल्हाड़ी चला रहीं थीं.
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