Birsa Munda 125th Death Aniversary: रांची-खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड का डोंबारी बुरू अंग्रेजों की क्रूरता का गवाह है. भगवान बिरसा मुंडा के आह्वान पर यहां अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की रणनीति बना रहे हजारों आदिवासियों पर ब्रिटिश हुकूमत ने अंधाधुंध फायरिंग की थी. इसमें सैकड़ों आदिवासी शहीद हो गए थे, जबकि बड़ी संख्या में लोग घायल हो गए थे. वह दिन था नौ जनवरी 1900. डोंबारी बुरू की ये घटना जालियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919) से पहले हुई थी. इन शहीदों की याद में डोंबारी बुरू में हर वर्ष मेला लगता है. नौ जून को बिरसा मुंडा का 125वां शहादत दिवस है. पुण्यतिथि पर पढ़िए प्रभात खबर की यह रिपोर्ट.
बिरसा मुंडा 12 अनुयायियों के साथ कर रहे थे सभा
खूंटी जिले के उलिहातु (भगवान बिरसा मुंडा का जन्म स्थल) के पास स्थित डोंबारी बुरू पर नौ जनवरी 1900 को भगवान बिरसा मुंडा अपने 12 अनुयायियों के साथ सभा कर रहे थे. इस सभा में आसपास के दर्जनों गांवों के लोग शामिल थे. बिरसा मुंडा जल, जंगल और जमीन बचाने के लिए उलगुलान का बिगुल फूंक रहे थे. सभा में बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे भी मौजूद थे. जैसे ही अंग्रेजों को बिरसा मुंडा की इस सभा की भनक मिली, बिना देर किए अंग्रेज सैनिक वहां आ धमके और डोंबारी पहाड़ को चारों तरफ से घेर लिया. जब अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को हथियार डालने के लिए ललकारा, तो बिरसा और उनके समर्थकों ने हथियार डालने के बजाय शहीद होना बेहतर समझा. फिर क्या था अंग्रेज सैनिक आदिवासियों पर कहर बनकर टूट पड़े. बिरसा और उनके समर्थकों ने भी तीर-धनुष और पारंपरिक हथियारों से अंग्रेज सैनिकों का डटकर सामना किया, लेकिन इस संघर्ष में सैकड़ों आदिवासी शहीद हो गए. इसमें सैकड़ों आदिवासी महिला, पुरुष और बच्चों ने अपनी जान गंवा दी थी. हालांकि, बिरसा मुंडा अंग्रेजों को चकमा देकर वहां से निकलने में सफल रहे. शहीदों की याद में यहां हर साल 9 जनवरी को मेला लगता है.
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शहादत की कहानी बयां करता विशाल स्तंभ
खूंटी का डोंबारी बुरू अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है. ये आज भी वीर शहीदों की कहानी बयां करता है. पूर्व राज्यसभा सांसद और अंतरराष्ट्रीय स्तर के भाषाविद्, समाजशास्त्री, आदिवासी बुद्धिजीवी व साहित्यकार डॉ रामदयाल मुंडा ने यहां एक विशाल स्तंभ का निर्माण कराया था. यह विशाल स्तंभ आज भी सैकड़ों आदिवासियों की शहादत की कहानी बयां करता है.
शहीदों में से सिर्फ 6 ही हो सके हैं चिह्नित
डोंबारी बुरू में शहीद हुए सैकड़ों आदिवासियों में से अब तक सभी की पहचान नहीं हो पायी है. शहीद हुए लोगों में मात्र 6 लोगों की ही पहचान हो सकी है. इनमें गुटूहातू के हाथीराम मुंडा, हाड़ी मुंडा, बरटोली के सिंगराय मुंडा, बंकन मुंडा की पत्नी, मझिया मुंडा की पत्नी और डुंगडुंग मुंडा की पत्नी शामिल हैं.
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