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Birsa Munda 125th Death Anniversary|Birsa Munda Tourist Circuit: भगवान बिरसा मुंडा आदिवासियों के आराध्य हैं. उनकी प्रेरणा हैं. उलिहातू में जन्म लेने वाले बिरसा मुंडा की ख्याति देश ही नहीं, विदेश में भी है. वह किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. आदिवासियों के नायक और अमर स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाना शुरू कर दिया है. सरकार ने ऐलान कर दिया है कि धरती आबा की 125वीं पुण्यतिथि (9 जून 2025) और 150वीं जयंती (15 नवंबर 2025) का भव्य आयोजन होगा. राज्य सरकार ने भी बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि और जयंती को अलग और भव्य तरीके से मनाने की घोषणा की है. भगवान बिरसा मुंडा की 12वीं पुण्यतिथि पर पढ़ें, धरती आबा से जुड़े उन जगहों के बारे में, जिन्हें पर्यटन स्थल का दर्जा मिलना चाहिए.
Birsa Munda टूरिस्ट सर्किट के विकास का हो चुका है ऐलान
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने तो भगवान बिरसा से जुड़ी जगहों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का ऐलान तक कर दिया है. झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी बिरसा मुंडा और उनसे जुड़े स्थलों को विकसित करने की तैयारी की है. प्रधानमंत्री ने खुद कहा है कि झारखंड में बिरसा टूरिज्म सर्किट विकसित किया जायेगा. इसमें बिरसा मुंडा से जुड़ी जितनी जगहें हैं, सभी जगहों को विकसित किया जायेगा. ‘बिरसा मुंडा टूरिज्म सर्किट’ को ‘बिरसा उलगुलान स्मृति सर्किट’ का नाम देने की मांग कुछ संगठनों ने की है.

खूंटी के उपायुक्त के प्रस्ताव को मिली केंद्र की मंजूरी
बहरहाल, खूंटी के उपायुक्त ने इससे संबंधित एक प्रस्ताव तैयार करके केंद्र को भेजा है, जिसे भारत सरकार की मंजूरी मिल चुकी है. आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने भगवान बिरसा मुंडा से जुड़ी जगहों के पर्यटन स्थल के रूप में विकास के लिए 40 करोड़ रुपए की योजना को पहले ही स्वीकृति दे दी है. इस राशि से भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू, चलकद, बीरबांकी हाट, डोंबारीबुरु और खूंटी सदर थाना के हाजत का विकास किया जायेगा.
रांची जेल अब बना बिरसा मुंडा स्मृति पार्क

रांची के उस जेल को बिरसा मुंडा स्मृति पार्क का स्वरूप दिया जा चुका है, जहां भगवान बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी. जिस कोठरी में बिरसा मुंडा की मौत हुई थी, उसे संरक्षित करके रखा गया है. उसमें भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा भी लगायी गयी है. इतना ही नहीं, बिरसा मुंडा के सेनापति कहे जाने वाले गया मुंडा के पैतृक गांव एटकेडीह को भी विकसित करने का फैसला किया गया है. यह गांव भी बिरसा मुंडा टूरिज्म सर्किट का हिस्सा होगा.

बिरसा के संग्राम से जुड़े स्थलों का विकास जरूरी
आईए, जानते हैं कि बिरसा मुंडा के जीवन और उनके स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े उन प्रमुख स्थलों के बारे में, जिसे टूरिस्ट स्पॉट के रूप में विकसित किया जा सकता है. इन्हें विकसित करने के लिए क्या-क्या करना होगा. बिरसा मुंडा से जुड़े स्थलों पर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए सड़क, आवास, संग्रहालय और सूचना केंद्र जैसी सुविधाएं विकसित करनी होगी, ताकि पर्यटकों को बिरसा मुंडा के जीवन और आदिवासी संस्कृति से जोड़ा जा सके.
बिरसा की जन्मस्थली उलिहातू

खूंटी जिले का उलिहातू भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली (Birth Place of Birsa Munda) है. इसी गांव में बिरसा मुंडा का जन्म हुआ. उलिहातू ही ‘बिरसा मुंडा टूरिज्म सर्किट’ या ‘बिरसा उलगुलान स्मृति सर्किट’ (सर्किट का जो भी नामकरण हो) का मुख्य केंद्र होगा. यहां पर्यटन सुविधाएं विकसित की जायेंगी. कुछ सुविधाओं को अपग्रेड भी किया जायेगा. यह स्थान बिरसा मुंडा के जीवन और उनके ‘उलगुलान’ (महान विद्रोह) का प्रतीक है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi in Birsa Munda Village), गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भगवान बिरसा मुंडा (Birsa Munda) के गांव का दौरा कर चुके हैं. इसकी वजह से क्षेत्र में कई मूलभूत सुविधाओं का विकास शुरू हो गया है. हालांकि, अभी यहां और भी विकास की जरूरत है.
बिरसा के ‘उलगुलान’ का केंद्र डोंबारी बुरु पहाड़

आदिवासियों के लिए पवित्र स्थल है डोंबारी बुरु
डोंबारी बुरु आदिवासियों के लिए एक पवित्र स्थल बन चुका है, क्योंकि भगवान बिरसा मुंडा (Bhagwan Birsa Munda) और उनके हजारों अनुयायियों ने यहां तीर-धनुष और ईंट-पत्थर के साथ ब्रिटिश सैनिकों की गोलियों की बौछार का सामना किया था. अंग्रेजों की बिरसा मुंडा को यहीं पर पकड़ने या मार डालने की थी, लेकिन बिरसा मुंडा और उनके सेनापति ने अंग्रेजों को चकमा दिया और भगवान बिरसा सुरक्षित निकल गये. हालांकि, इसी जगह उनके सैकड़ों अनुयायियों को अंग्रेजों ने अपनी गोलियों का निशाना बनाया. इसलिए इस घटना को झारखंड का जलियांवाला बाग गोलीकांड भी कहा जाता है. इस आंदोलन के कुछ दिन बाद ही बिरसा मुंडा को एक गद्दार की वजह से गिरफ्तार कर लिया गया. इसलिए उलिहातू के बाद यह दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्थल है, जिसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए. इसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की वजह से ‘बिरसा मुंडा टूरिज्म सर्किट’ में शामिल किया गया है.
बंदगांव का संकरा गांव, जहां छिपकर रहे बिरसा

चाईबासा से 65 किलोमीटर और चक्रधरपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर है बंदगांव प्रखंड का संकरा गांव. एनएच-75 (ई) मुख्य सड़क से पश्चिम की ओर 15 किलोमीटर दूर संकरा गांव घने जंगलों के बीच बसा है. गांव के चारों ओर पहाड़ हैं. घोर नक्सल प्रभावित इलाके में स्थित इस गांव में करीब 350 आदिवासी रहते हैं. 50 फीसदी लोग बिरसाइत धर्म का पालन करते हैं. यही वह गांव है, जहां से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया था. पहाड़ियों से घिरे होने और घने जंगलों की वजह से बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए इस गांव को चुना था. वह यहीं रहकर रणनीति बनाते थे और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते थे. वह साहू मुंडा के घर में रहकर उसके भाई जावरा मुंडा के साथ मिलकर उलगुलान करते थे. 2 फरवरी 1900 को यहां से गिरफ्तार कर लिया गया. इसलिए झारखंड के इतिहास में बंदगांव का संकरा गांव भी अहम है. इस पिछड़े इलाके को अगर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाये, तो क्षेत्र का विकास होगा, लोगों की उन्नति होगी साथ ही नक्सलवाद का खात्मा भी हो जायेगा.
बिरसा का ननिहाल चलकद
चलकद बिरसा मुंडा का ननिहाल है. यानी उनकी मां का मायका. इस गांव से भी उनके बचपन की यादें जुड़ीं हैं. चूंकि, यह गांव बिरसा मुंडा की मां से जुड़ा है, इस गांव को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की जरूरत है, ताकि लोग यहां आकर ‘धरती आबा’ के बारे में, उनके परिवार के बारे में जान सकें.
बिरसा के सेनापति गया मुंडा का गांव एटकेडीह
एटकेडीह एक ऐसा गांव है, जो बिरसा मुंडा के जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण स्थल है. इस गांव की चर्चा आमतौर पर नहीं होती. बिरसा मुंडा के सेनापति गया मुंडा इसी गांव के रहने वाले थे. इसलिए इस गांव को भी पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना है, ताकि बिरसा मुंडा के सेनापति की वीर गाथा से भी आम लोग अवगत हो सकें.
रांची जेल, जहां बिरसा मुंडा की मौत हुई

रांची के जेल मोड़ स्थित रांची जेल को अब बिरसा मुंडा स्मृति पार्क में तब्दील कर दिया गया है. यहां एक तरफ भगवान बिरसा मुंडा की विशाल प्रतिमा लगी है. बगल में जेल है. जेल की वो कोठरी आज भी मौजूद है, जहां भगवान बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी. आज यह पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो चुका है. सैकड़ों लोग इस पार्क में आते हैं.
कोकर का बिरसा स्मृति उद्यान

रांची के कोकर में भगवान बिरसा मुंडा का अंतिम संस्कार किया गया था. डिस्टिलरी पुल के पास उनकी समाधि बनायी गयी है. समाधि स्थल को विकसित तो किया गया है, लेकिन यहां सिर्फ दो दिन ही चहल-पहल रहती है. भगवान बिरसा की जयंती के दिन और उनकी पुण्यतिथि के दिन. बिरसा समाधि स्थल कोकर लालपुर रोड पर है. इसे और विकसित करने की जरूरत है, ताकि यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा न लगे. पर्यटक यहां आयें और सुकून के कुछ पल बिता सकें.
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