रांची. संवाद व झारखंड महिला किसान संगठन के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार से महिला किसान पहचान और भूमि पर अधिकार विषयक सम्मेलन का आयोजन हुआ. एसडीसी सभागार में आयोजित इस दो सम्मेलन में राज्य के विभिन्न जिलों से 108 महिलाएं और पुरुष शामिल हुए. इस अवसर पर महिलाओं को भी जमीन पर अधिकार देने की बात कही गयी. साथ ही किसान के रूप में महिलाओं को भी मान्यता देने पर विमर्श हुआ. संवाद संस्था की शशि बारला ने कहा कि महिलाएं खेत में पुरुषों की बराबरी का काम करती हैं, फिर भी महिलाओं काे किसान का दर्जा नहीं दिया गया है. इसका एक मात्र कारण पितृसत्ता है. किरण ने कहा कि महिलाएं खेत में या ऑफिस में काम करें. उन्हें लौटने पर घर के सारे कामों को करना पड़ता है. महिलाओं को आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक रूप से सशक्त होने की जरूरत है. वंदना टेटे ने कहा कि भूमि पर अधिकार सिर्फ नारे लगाने से नहीं होगा. इसके लिए संघर्ष करना होगा. हमें अपनी पहचान भी खुद ही बनानी है. सचि कुमारी ने कहा कि महिलाओं को सत्ता और संपत्ति में अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि राज्य में एक करोड़ 22 लाख महिलाएं है, जिसमें मात्र 11.3 प्रतिशत महिलाओं का जमीन पर हक है. कुमुद ने कहा कि खेती में मुख्य भूमिका हल चलाना पुरुषों ने अपनी मुट्ठी में रखा है. अगर महिलाओं को किसान के रूप में खुद को देखना है तो हल चलाने के लिए तैयार रहना होगा. आकृति ने कहा महिलाओं को मानव के रूप में नहीं देखा जाता है, इसलिए उन पर हिंसा होती है. सीएनटी एक्ट सिर्फ विवाहित महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है. सम्मेलन में कोर्दूला, बिन्नी ने भी अपने विचार रखें. सम्मेलन के दूसरे सत्र का संचालन एनी टुडू व महजबी परवीन ने किया. इसमें साल्गे मार्डी, शांति संवैया, सुमित्रा कुजूर, रोशनी मिंज, बिलचन मिंज, आलोका, अनिता गाड़ी, दुलारी सुमन, प्रभा देवी, सुनीता कुजूर व घनश्याम ने संबोधित किया.
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