Father Stan Swamy Memorial Day 2025: रांची-फादर स्टेन स्वामी स्मृति दिवस का आयोजन शनिवार को रांची के नामकुम बगइचा में किया गया. इसमें संवैधानिक अधिकार और जमीनी हकीकत पर विमर्श किया गया. झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में आदिवासी समुदाय पर हो रहे उत्पीड़न पर भी चर्चा की गयी. कार्यक्रम की शुरुआत स्टेन स्वामी की मूर्ति पर पुष्पांजलि अर्पित कर की गयी. उसके बाद थियेटर आर्टिस्ट प्रणव मुखर्जी ने एक मोनो एक्ट के जरिए अपनी आवाज बुलंद करने का संदेश दिया. छत्तीसगढ़ की स्थिति सोनी सोरी के वीडियो द्वारा बतायी गयी. इसमे ऑपरेशन कगार पर चिंता व्यक्त की गयी है. चार साल पहले जेल में स्टेन स्वामी का निधन हो गया था.
फर्जी गिरफ्तारी के खिलाफ एकजुट होकर बुलंद करें आवाज
झारखंड की एलिना होरो ने नक्सली बता कर लोगों की फर्जी गिरफ्तारी को लेकर आवाज मुखर की. उन्होंने सभी संगठनों से इसके लिए एकजुट होकर काम करने के लिए आग्रह किया. अलोका कुजूर ने झारखंड में मिलिटाइजेशन, फेक एनकाउंटर और फर्जी गिरफ्तारी की समस्या के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाने की बात कही. ओडिशा के लेनिन ने नियमगिरि की समस्याओं पर प्रकाश डाला. शहीद भगवान सोय की मां सोनी सोय ने कलिंगनगर की समस्याओं को रखा.
जमीन के संघर्ष में युवाओं को भाग लेने के लिए किया प्रोत्साहित
खुले सत्र में प्रवीर पीटर ने उमर खालिद, गुलफ़िशा फातिमा के जेल में होने पर चिंता जाहिर की. बिरसा ब्रिगेड के अर्जुन कुमार पूर्ति ने जमीन के संघर्ष में युवाओं को भाग लेने के प्रोत्साहित किया. जेएनयू के छात्र दीपांकर ने अस्तित्व की बात रखी और ज्योतिबा फुले को याद किया. किरण ने आंदोलन में जेंडर की बात नहीं भूलने के लिए आग्रह किया.
नगाड़ा और मांदर पर गीतों की प्रस्तुति
मांडर के समूह ‘विंग्स ऑफ छोटानागपुर’ ने नगाड़ा और मांदर पर गीतों की प्रस्तुति दी. बैठक की अध्यक्षता भारत भूषण चौधरी ने की. संचालन याकूब कुजूर, सिस्टर लीना, दीप्ति मेरी मिंज और पल्लवी प्रतिभा ने किया. धन्यवाद ज्ञापन पीटर मार्टिन ने किया. कार्यक्रम का आयोजन झारखंड जनाधिकार महासभा और बगइचा की ओर से किया गया था.
कौन थे स्टेन स्वामी?
स्टेन स्वामी ने जीवन के आखिरी क्षण तक आदिवासियों, दलितों और पिछड़ों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया था. न्याय, समानता और मानवता की रक्षा के लिए वह हमेशा संघर्षशील रहे. तमिलनाडु के रहनेवाले स्वामी 1965 में झारखंड आए और यहीं के होकर रह गए थे. झारखंड आने के बाद शुरुआत दिनों में उन्होंने पादरी का काम किया. धीरे-धीरे आदिवासी और वंचित समूह के अधिकारों की आवाज उठाते हुए झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की स्थापना की. साल 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाले फादर आदिवासी अधिकारों के हक की आवाज उठाते रहे.
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