: रांची विवि में भारतीय ज्ञान परंपरा पर दो दिवसीय कार्यशाला शुरू रांची .रांची विवि के प्रभारी कुलपति प्रो डीके सिंह कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग उच्च शिक्षा में बड़ा बदलाव लायेगा. प्रकृति ने भारत को हर तरह के संसाधनों से परिपूर्ण बनाया है. इस कारण हम भारतीय लापरवाह भी हुए हैं. इन संसाधनों का महत्व हमें इजरायल, चीन जैसे देशों को देख कर समझना चाहिए, जहां भारत से बहुत कम संसाधन हैं और वह इसे संरक्षित करने में दिन-रात लगे हुए हैं. देश की जैवविविधता के बारे में स्लाइड शो के माध्यम से देश की कृषि उपज और उन्हें संरक्षित करने की बात कही. उन्होंने कहा कि किसी भी क्षेत्र के वैज्ञानिक और शिक्षक भारतीय ज्ञान परंपरा के वाहक हो सकते हैं. कुलपति सोमवार को आर्यभट्ट सभागार में आइक्वेएसी के तत्वावधान में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे. दिल्ली से आये डॉ अनुराग देशपांडेय ने कहा कि भारत में समृद्ध ज्ञान है, पर हम भारतीयों को ही इसकी जानकारी नहीं है. जबकि विदेशों से लोग हमारी संस्कृति और रहन-सहन देखने आते हैं. दरअसल हमारी शिक्षा व्यवस्था में कभी भी अपने भारतीय ज्ञान परंपरा को जानने सीखने का अवसर ही नहीं मिला. खुशी की बात है कि यूजीसी ने भारतीय ज्ञान परंपरा को वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में समाहित किया है. बेंगलुरू से आये डॉ विनायक रजत भट्ट ने कहा कि जो संस्कृत भाषा जानता है, वह वेद जान लेगा, यह भ्रम है. डॉ कुशाग्र राजेंद्र, डॉ भरत दास ने भी अपने विचार रखे. संचालन भारतीय ज्ञान परंपरा की यूजीसी की राष्ट्रीय मास्टर ट्रेनर सह आयोजन सचिव डॉ स्मृति सिंह ने किया. उन्होंने कार्यशाला की उपयोगिता पर प्रकाश डाला. मानविकी डीन डॉ अर्चना दुबे ने गणेश वंदना कर कार्यक्रम की शुरुआत की. डीएसडबल्यू डॉ सुदेश कुमार साहू ने आगंतुकों का स्वागत किया. पीएफए के विद्यार्थियों ने राष्ट्रगान गाया.
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