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RIP Shibu Soren: 81 में से 17 सीटें जीतकर दिशोम गुरु कैसे बन गए थे 10 दिन के CM? जानिए झारखंड में 2005 की सियासी उठापटक की पूरी कहानी

RIP Shibu Soren: साल 2005 में सिर्फ 17 सीटें मिलने के बावजूद शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री कैसे बने? क्या हुआ था उस समय के राजनीतिक समीकरणों में? जानिए 10 दिन की इस सरकार की पूरी कहानी और झारखंड की राजनीति में हुए बड़े उलटफेर

RIP Shibu Soren: 2005 में झारखंड की सियासत में ऐसा उलटफेर हुआ कि 81 में से सिर्फ 17 सीटें जीतने वाली पार्टी के नेता शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बन गए. और फिर सिर्फ 10 दिन में उन्हें कुर्सी छोड़नीपड़ी. जी हां, हम बात कर रहे हैं झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की उस ऐतिहासिक ‘10 दिन की सरकार’ की, जिसने पूरे देश में संवैधानिक मर्यादाओं और राज्यपाल की भूमिका पर बहस छेड़ दी थी. आखिर ऐसा क्या हुआ था कि बीजेपी जैसी सबसे बड़ी पार्टी को किनारे कर राजभवन ने शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री बना डाला? जानिए 2005 की उस जबरदस्त सियासी उठापटक की पूरी कहानी.

स्टोरी हाइलाइट्स

  • झारखंड विधानसभा में कुल सीटें: 81
  • बहुमत के लिए जरूरी: 41 सीटें
  • शिबू सोरेन की पार्टी JMM को मिली थीं सिर्फ 17 सीटें
  • फिर भी शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री बन गए
  • लेकिन सिर्फ 10 दिन में ही देना पड़ा इस्तीफा
  • जानें कैसे हुआ था यह सियासी ड्रामा.

क्या हुआ था झारखंड में 2005 में?

वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में झारखंड की राजनीति पूरी तरह उलझ गई थी. किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. तब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के नेता शिबू सोरेन को सिर्फ 17 सीटें मिली थीं. इसके बावजूद वे मुख्यमंत्री बन गए, लेकिन मात्र 10 दिनों में उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. यह घटना भारत के राजनीतिक इतिहास में एक अनोखा अध्याय बन गई.

2005 झारखंड विधानसभा चुनाव – चुनाव परिणाम

पार्टी सीटें
BJP+ (NDA) 36
JMM+ (UPA) 26
अन्य 19
2005 झारखंड विधानसभा चुनाव – चुनाव परिणाम

NDA के पास 36 सीटें थीं, लेकिन बहुमत से 5 सीटें दूर थे. वहीं UPA गठबंधन के पास 26 सीटें थीं. JMM ने कांग्रेस, RJD और कुछ निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाने की कवायद शुरू कर दी.

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राजभवन की भूमिका और सियासी जोड़तोड़

तत्कालीन राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने यह मानते हुए कि शिबू सोरेन के पास जरूरी समर्थन है, उन्हें सरकार बनाने का न्यौता दे दिया. मालूम हो कि तब देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए की सरकार थी और गुरुजी शिबू सोरेन की पार्टी झामुमो भी यूपीए का हिस्सा थी. यह फैसला विवादित रहा क्योंकि BJP+ के पास अधिक सीटें थीं. शिबू सोरेन ने 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. लेकिन जब 10 मार्च को बहुमत साबित करने की बारी आई, तो उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं थी.

10 दिन की सरकार का अंत

बहुमत साबित करने से पहले ही सियासी समीकरण बदलने लगे

कई निर्दलीय और छोटे दल BJP के साथ हो गए

अंततः शिबू सोरेन को बहुमत साबित करने से पहले 10 मार्च 2005 को इस्तीफा देना पड़ा.

BJP के अर्जुन मुंडा ने इसके बाद सरकार बनाई.

तो 17 सीटों के बावजूद मुख्यमंत्री कैसे बने?

शिबू सोरेन ने दावा किया कि उन्हें कांग्रेस, RJD और अन्य निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त है

राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने उनके समर्थन के दावे को स्वीकार कर लिया

लेकिन यह समर्थन कागजों पर था, विधानसभा के फ्लोर पर नहीं टिक पाया.

भारतीय राजनीति की चर्चित घटना

यह मामला भारतीय राजनीति में “राजभवन बनाम बहुमत” की बहस का बड़ा उदाहरण बना

राज्यपाल की भूमिका को लेकर सवाल उठे कि क्या वे निष्पक्ष थे?

सुप्रीम कोर्ट ने बाद में यह तय किया कि बहुमत का निर्णय केवल विधानसभा में ही हो सकता है, राजभवन में नहीं.

2005 में शिबू सोरेन का 10 दिन का मुख्यमंत्री कार्यकाल झारखंड की राजनीति में एक ऐतिहासिक सियासी घटनाक्रम के रूप में दर्ज है, जहां सियासी उठापटक, समर्थन-पत्र और राजभवन की भूमिका ने लोकतंत्र की परीक्षा ली.

Shibu Soren Political Career: समाज सुधारक से सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री, ऐसी रही शिबू सोरेन की जीवन यात्रा

Rajeev Kumar
Rajeev Kumar
राजीव, 14 वर्षों से मल्टीमीडिया जर्नलिज्म में एक्टिव हैं. टेक्नोलॉजी में खास इंटरेस्ट है. इन्होंने एआई, एमएल, आईओटी, टेलीकॉम, गैजेट्स, सहित तकनीक की बदलती दुनिया को नजदीक से देखा, समझा और यूजर्स के लिए उसे आसान भाषा में पेश किया है. वर्तमान में ये टेक-मैटर्स पर रिपोर्ट, रिव्यू, एनालिसिस और एक्सप्लेनर लिखते हैं. ये किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसकी परतें उधेड़ने का हुनर रखते हैं. इनकी कलम का संतुलन, कंटेंट को एसईओ फ्रेंडली बनाता और पाठकों के दिलों में उतारता है. जुड़िए [email protected] पर

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