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‘बुकर के बाद अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में अनुवाद’ पर जेरी पिंटो, अदिति माहेश्वरी गोयल व ममता कालिया ने कही ये बात

प्रसिद्ध लेखक व अनुवादक जेरी पिंटो ने कहा कि यह समय लेखन के साथ-साथ अनुवाद का भी है. उन्होंने कहा कि पढ़ना लाइफ है. जिंदगी को महसूस करना है. अपने दिमाग को खोलना है. इंसानियत को जिंदा रखना है. अगर आप धीरे-धीरे पढ़ते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है.

रांची: रांची के ऑड्रे हाउस में आयोजित टाटा स्टील झारखंड लिटरेरी मीट के तीसरे और अंतिम दिन रविवार को बुकर के बाद अंतरराष्ट्रीय संदर्भ में अनुवाद-क्या हिंदी क्लासिक्स के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय बाजार है? पर विशेष परिचर्चा हुई. इसमें प्रभात खबर के फीचर एडिटर विनय भूषण ने प्रसिद्ध लेखक व अनुवादक जेरी पिंटो, वाणी प्रकाशन समूह की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल और प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया से बातचीत की. उन्होंने इनसे जानने की कोशिश की कि जब आप किसी किताब को चुनते हैं तो कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखते हैं. दर्शकों ने भी इनसे कई सवाल किए. इस दौरान अतिथियों ने सभी के सवालों के सहजता से जवाब दिए.

किताबें खरीदिए और पढ़िए भी

प्रसिद्ध लेखक व अनुवादक जेरी पिंटो ने कहा कि अनुवाद को ऐसे सामने आना चाहिए जैसे प्ले बैक सिंगर को. यह समय लेखन के साथ-साथ अनुवाद का भी है. उन्होंने कहा कि पढ़ना लाइफ है. जिंदगी को महसूस करना है. अपने दिमाग को खोलना है. इंसानियत को जिंदा रखना है. अगर आप धीरे-धीरे पढ़ते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है और अगर आप कॉफी और अन्य चीजों की जगह एक किताब खरीदते हैं तो ज्यादा बेहतर है क्योंकि कॉफी दूसरे दिन आपको याद भी नहीं रहती, पर किताब आपके पास हमेशा होगी. इसके साथ ही आप अपने बच्चों को भी किताब दें और खुद भी पढ़ाई करें. अगर आप नहीं पढ़ेंगे तो आपके बच्चे भी नहीं पढ़ेंगे क्योंकि वे आपसे ही सीखते हैं. अगर आपने पिछले दस दिनों में कोई किताब नहीं ली है तो आपका किसी साहित्य मीट में जाना जहां किताबें, साहित्य व कविताओं की बातें होती हैं, बेकार है.

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लेखक के पीछे छिपे होते हैं अनुवादक

जेरी पिंटो ने कहा कि कोई बुक लिखने के कई साल लगा देता है और आप कुछ घंटे देकर उसे पढ़ नहीं सकते. जितने भी अनुवादक हैं वे लेखक के पीछे छिपे हैं. सही हिंदी अनुवाद ट्रांसलेशन नहीं होता. इसलिए हिंदी साहित्यों को इंग्लिश में भी किया जाना चाहिए क्योंकि पढ़ाई की भी बात है ताकि जिन बच्चों के लिए इंग्लिश में पढ़ना आसान है बाकी भाषा से वे इंतजार करते हैं कि उनकी भाषा में वह किताब आए तो वे उसे पढ़ें और हम इसलिए भी अपने बच्चो को इंग्लिश मीडियम में भेजते हैं ताकि वे इंग्लिश भी सीखें.

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हिंदी में हो रहे काफी अनुवाद

वाणी प्रकाशन समूह की कार्यकारी निदेशक अदिति माहेश्वरी गोयल ने कहा कि मैं उस पीढ़ी की हूं, जहां हिंदी में बहुत अनुवाद हो रहे हैं लेकिन जब अंग्रेजों का समय था तब केवल इंग्लिश में ही अनुवाद होते थे. मुझे बहुत दुख होता है जब कहीं बुक लॉन्च होती है और मैं वहां मौजूद होती हूं तो कई बच्चे ऐसे आते हैं जो कहते हैं कि यह बुक इंग्लिश में कब आएगी? तब मुझे यह महसूस होता है कि भारत के बच्चे अपनी भाषा नहीं समझते.

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चर्चा में रहा है हिंदी से अंग्रेजी का अनुवाद

अदिति माहेश्वरी गोयल ने कहा कि हिंदी से इंग्लिश में जो अनुवाद हुआ है, वो चर्चा में रहा. जबसे गीतांजलि श्री की रेत समाधि को बुकर मिला, तब से यह ज्यादा चर्चा में आया है और रचनाकार चाहता है कि उसकी रचना का हर भाषा में अनुवाद हो. रेत समाधि के आने से देश के सभी लेखक को ये लगने लगा कि उनकी रचना दूसरे देशों में भी पहुंच सकती है. मैं उस प्रकाशन की हूं, जिसने लंदन में इस बात पर जोर दिया कि अनुवादकों का नाम फ्रंट कवर में जाए. मैं चाहती हूं कि भारतीय भाषाओं के अनुवादों को भी पूरी जगह फ्रंट में मिले.

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पहले अनुवादक का नाम लेना भी ठीक नहीं समझते थे

प्रसिद्ध साहित्यकार ममता कालिया कहती हैं कि अनुवाद की बात करें तो गीतांजलि श्री को बुकर अवार्ड मिलने से पहले यह बहुत बेचारी सी बात थी. जब भी अनुवाद की बात उठती थी तो अनुवादक का नाम भी लेना लोग ठीक नहीं समझते थे. जैसे अमृता प्रीतम, जिनकी सारी किताबें हिंदी में अनुवाद हुईं, पर आज तक उनके अनुवादक का नाम किसी को नहीं पता. इसी बीच उन्होंने हंसते-हंसते कहा कि अनुवाद की बात करें तो अगर जेरी पिंटो जैसे अनुवादक मिल जाएं तो क्या बात है! हर लेखक अब खुद को महान समझता है चाहे वो किसी पिछड़े प्रकाशन से ही क्यों न अपनी किताब छपवाता हो.

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अनुवाद की मदद से ही पढ़ीं कई किताबें

ममता कालिया ने कहा कि एक जमाने में बहुत खराब किताबों के अनुवाद होते थे और वो कितना भी खराब अनुवाद हो हम उसे छुप छुप कर पढ़ते थे. हमने इतने भारतीय साहित्य जो पढ़े हैं, अन्य भाषाओं के जिस पर आप गुरूर करते हैं, पर उसे भी आपने अनुवाद की मदद से ही पढ़ा है और मैं कहती हूं कि अनुवादकों को उसी तरह सामने आना चाहिए जैसे प्ले बैक सिंगर.

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Guru Swarup Mishra
Guru Swarup Mishrahttps://www.prabhatkhabar.com/
मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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