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53 वर्ष में शिबू के संघर्ष और हेमंत के कौशल ने झामुमो को बनाया झारखंड की माटी की पार्टी

Jharkhand Mukti Morcha Mahadhiveshan Ranchi: झारखंड में सरकार चला रही पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की 53 साल की यात्रा पूरी हो चुकी है. 53वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी झारखंड की माटी की इस पार्टी का 13वां केंद्रीय महाधिवेशन राजधानी रांची के खेलगांव में चल रहा है. शिबू सोरेन के संघर्ष और हेमंत सोरेन के कौशल ने कैसे इस पार्टी को झारखंड के जन-मन की पार्टी बना दिया, विस्तार से यहां पढ़ें.

Jharkhand Mukti Morcha News| रांची, आनंद मोहन : 4 फरवरी 1972. ऐतिहासिक दिन. बिनोद बिहारी महतो का धनबाद स्थित मकान. झारखंड आंदोलन व सामाजिक चेतना अगुवा बिनोद बिहारी महतो के आवास पर एक बैठक हुई. बैठक में शामिल थे शिबू सोरेन, कॉमरेड एके राय, प्रेम प्रकाश हेम्ब्रम, कतरासगढ़ के राजा पूर्णेंदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो, राजकिशोर महतो और अन्य चुनिंदा नेता. यह दिन खास इसलिए है कि एक छोटी-सी बैठक आने वाले दिनों में झारखंड की इबारत लिखने जा रही थी.

मांझी-महतो गठजोड़ का नया राजनीतिक समीकरण

बैठक झारखंड में मांझी-महतो गठजोड़ के नये राजनीतिक समीकरण की पठकथा लिख रही थी. यह बैठक झारखंड में लाल और हरे झंडे तले एकता की मजबूत नींव थी. वामपंथी नेता एके राय भी बैठक में पहुंचे थे. यह दिन खास इसलिए था, क्योंकि झारखंडी अस्मिता, मान-सम्मान और अबुआ राज के लिए संघर्ष की जमीन तैयार हो रही थी. सदियों के शोषण से मुक्ति का रास्ता निकालने का संकल्प लिया जा रहा था.

अलग-अलग धड़े के 3 नेता एक मंच पर आये

बिनोद बहार महतो, शिबू सोरेन, एके राय सभी अलग-अलग संगठन बनाकर अलग झारखंड राज्य और झारखंड के आदिवासियों-मूलवासियों के लिए आंदोलन कर रहे थे. ये सभी बिखरे हुए संगठन पहली बार एक साथ आये. इन्होंने मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का गठन किया. बिनोद बिहारी महतो झामुमो के पहले अध्यक्ष बने. शिबू सोरेन को महासचिव बनाया गया. उन्होंने संगठन की कमान संभाली. पूर्णेंदु नारायण सिंह उपाध्यक्ष और चूड़ामणि महतो पहले कोषाध्यक्ष बने. अलग झारखंड राज्य की मांग के लिए इस तरह एक पार्टी का गठन हुआ.

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रांची के हरवंश राय टाना भगत स्टेडियम जेएमएम के महाधिवेशन में देश भर से पहुंचे पार्टी के प्रतिनिधि.

5 दशक में झामुमो ने देखे कई उतार-चढ़ाव

वर्ष 2025 में झामुमो ने 53 वर्षों का सफर पूरा किया. झामुमो ने इन 5 दशकों में बड़े उतार-चढ़ाव देखे. आंदोलन को तेवर दिया, तो पार्टी ने हिचकोले भी खाये. शिबू सोरेन के संघर्ष ने इस पार्टी को ऊर्जा और खाद-पानी दिया. संताल परगना और कोल्हान से लेकर छोटानागपुर और पलामू प्रमंडल तक शिबू सोरेन के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने दिल्ली की सत्ता को झकझोर कर रख दिया. झामुमो के अलग राज्य के आंदोलन के साथ झारखंडी भावनाओं का ज्वार चढ़ता ही गया. हरा झंडा झारखंड में रच-बस गया.

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राजनीति की धुरी बन गया झामुमो

झामुमो एकीकृत बिहार से ही राजनीति की धुरी बन गया था. झारखंड के आदिवासी-मूलवासी के स्वर और उसकी अनुगूंज सत्ता-शासन को हिलाती रही. वर्ष 2000 से पहले झामुमो ने 28 वर्षों का लंबा संघर्ष किया. तीर-धनुष झारखंडी अस्मिता, पहचान और हक-अधिकार की रक्षा का प्रतीक बना. शिबू सोरेन झारखंड आंदोलन के नायक बने. हजारों झामुमो कार्यकर्ताओं ने इस लड़ाई में खुद को न्योछावर कर दिया. पुलिस की गोली का निशाना बने. लाठी-डंडे खाये. सैकड़ों लोग शहीद हुए और हजारों लोगों पर मुकदमे हुए.

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शिबू सोरेन के नेतृत्व पर बरकरार रहा लोगों का भरोसा

बावजूद इसके शिबू सोरेन के नेतृत्व पर लोगों का भरोसा बरकरार रहा और झामुमो जंगलों-पहाड़ों, खेत-खलिहानों से होते हुए शहरों-कस्बों तक पहुंची. चुनावी राजनीति में अपनी पकड़ बनायी. 80 के दशक से झामुमो ने संसदीय व्यवस्था में भी अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी. एकीकृत बिहार में झामुमो ने अपनी राजनीतिक धमक शिबू सोरेन के नेतृत्व में बनाये रखी. अलग झारखंड राज्य गठन के बाद झामुमो ने सियासत में गहरी पैठ बनायी.

1973 में पहले स्थापना दिवस पर कड़ाके की ठंड और मस्ती

झामुमो के गठन के एक वर्ष पूरे हुए. चार फरवरी 1973 को पार्टी का पहला स्थापना दिवस था . पार्टी ने धनबाद के गोल्फ मैदान में स्थापना दिवस मनाने का फैसला किया. शिबू सोरेन ने संताल परगना- कोल्हान से लेकर राज्य के अन्य हिस्सों में आदिवासियों को गोलबंद करना शुरू कर दिया था. इससे पहले शिबू सोरेन का आंदोलन खेत-खलिहानों और जंगलों तक ही सीमित था. पार्टी पहली बार या यूं कहें कि शिबू सोरेन ने पहली बार अपनी ताकत दिखायी. पुराने जानकार बताते हैं कि इस सभा में एक लाख लोगों की भीड़ जुटी. कड़ाके की ठंड से बेपरवाह लोग ढोल-नगाड़े के साथ झूमते-गाते धनबाद पहुंचे.

Jmm Foundation Day Celebration 1973
झामुमो के पहले स्थापना दिवस समारोह में ऐसा था लोगों का उत्साह.

परंपरागत हथियार और वेश-भूषा में पहुंचे थे लोग

परंपरागत हथियार और वेश-भूषा में लोग पहुंच रहे थे. झामुमो का रंग आदिवासी-मूलवासी पर चढ़ने लगा था. जानकार बताते हैं कि उस रैली में लोगों का तांता नहीं टूट रहा था. रैली में शामिल होने वाले लोग अनुशासित थे. कतार बनाकर रैली स्थल में प्रवेश कर रहे थे . बिनोद बिहारी महतो के समर्थक और मूलवासी बड़ी संख्या में पहुंचे थे. इस रैली में एके राय भी शामिल थे, इसलिए मजदूरों व मेहनकशों की अच्छी खासी संख्या पहुंची थी . झामुमो की इस रैली ने बता दिया था कि आने वाले दिनों में झामुमो बड़ी ताकत के रूप में उभरेगा. झारखंड की आवाज बनेगा.

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Mithilesh Jha
Mithilesh Jha
प्रभात खबर में दो दशक से अधिक का करियर. कलकत्ता विश्वविद्यालय से कॉमर्स ग्रेजुएट. झारखंड और बंगाल में प्रिंट और डिजिटल में काम करने का अनुभव. राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विषयों के अलावा क्लाइमेट चेंज, नवीकरणीय ऊर्जा (RE) और ग्रामीण पत्रकारिता में विशेष रुचि. प्रभात खबर के सेंट्रल डेस्क और रूरल डेस्क के बाद प्रभात खबर डिजिटल में नेशनल, इंटरनेशनल डेस्क पर काम. वर्तमान में झारखंड हेड के पद पर कार्यरत.

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