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JMM Central Convention: हेमंत सोरेन के हाथों में JMM की कमान, कहा-अभी तय करनी है लंबी यात्रा

JMM Central Convention: झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की कमान संभालने के बाद हेमंत सोरेन ने पार्टी के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन में कहा कि लंबी यात्रा के बाद वे यहां तक पहुंचे हैं. अभी और लंबी यात्रा तय करनी है. झामुमो फिर से लंबी यात्रा के लिए आगे बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन को जनता ने काफी मान-सम्मान दिया. उन्हें जनता ने गुरुजी बना दिया. रांची के खेलगांव में पार्टी के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन का आयोजन किया गया.

JMM Central Convention: रांची-झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की कमान अब हेमंत सोरेन के हाथों में है. आज पार्टी के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन में उन्हें झामुमो के केंद्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गयी. 38 साल बाद केंद्रीय अध्यक्ष से संस्थापक संरक्षक बने शिबू सोरेन ने हेमंत सोरेन को पार्टी की कमान सौंपी. 10 वर्षों तक हेमंत सोरेन ने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में दायित्व निभाया. नए दायित्व पर हेमंत सोरेन ने कहा कि लंबी यात्रा के बाद वे यहां तक पहुंचे हैं. अभी और लंबी यात्रा तय करनी है. झामुमो फिर से लंबी यात्रा के लिए आगे बढ़ेगा. रांची के खेलगांव में पार्टी के 13वें केंद्रीय महाधिवेशन का आयोजन किया गया.

शिबू सोरेन को जनता ने गुरुजी बना दिया-हेमंत सोरेन


हेमंत सोरेन ने कहा कि शिबू सोरेन कभी परिचय के मोहताज नहीं थे. शिबू सोरेन को गुरुजी बना दिया गया. इस राज्य की जनता ने ये किया है. उस मान-सम्मान का कर्ज इन्होंने वापस भी किया. इस राज्य की जनता के लिए इन्होंने अपनी जवानी, बुढ़ापा सब कुर्बान कर दिया. हर वक्त इनके साथ संघर्ष रहा. सीमित संसाधन के साथ राज्य की जनता के हक की लड़ाई लड़ी. सामंती विचारधारा के लोगों के साथ लड़ाई लड़ना, कोई साधारण बात नहीं है. आज के समय में बेहद कम ही ऐसे लोग मिलते हैं, जिनके मन में राज्य के प्रति इतना प्रेम हो. आज सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि पूरा देश इन्हें शिबू सोरेन के नाम से जानता है. हेमंत सोरेन ने कहा कि आज मंच पर कई लोग हैं. इसके अलावा कई अन्य लोग भी हैं जिन्होंने शिबू सोरेन के कदम से कदम मिलाकर चलने का काम किया.

किसान आंदोलन के जरिए केंद्र सरकार पर साधा निशाना


राज्य अलग होने के बाद ये सोने की चिड़िया था, लेकिन अब हालत कुछ और ही है. राज्य में लोग आते रहे और इसका दोहन करते गए. ये बहुत विचित्र स्थिति है कि जो राज्य पूरे देश का पेट भरता हो, उस राज्य में लोग भूख से मरें. यहां किसानों ने आत्महत्या भी की. जब ये स्थिति आ जाए तो काफी सोचने वाली बात है. अगर किसान आत्महत्या करेंगे तो हम खाएंगे क्या? लेकिन आज किसान बेहाल हैं. किसान आंदोलन को देखा और सुना. ऐसा संघर्ष कभी नहीं देखा होगा. आखिरकार केंद्र सरकार को झुकना पड़ा. हक-अधिकार की लड़ाई पूंजीपति नहीं बल्कि गरीब लोग लड़ते हैं. सबसे बड़े लोकतंत्र में आज भी जात-पात और ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म नहीं हुआ है.

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Guru Swarup Mishra
Guru Swarup Mishrahttps://www.prabhatkhabar.com/
मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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