रांची, मनोज सिंह-पंचायती राज व्यवस्था में मुखिया या अन्य जनप्रतिनिधियों के पति की भागीदारी को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है. प्रॉक्सी भागीदारी कम करने के लिए केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने पूर्व खान सचिव सुशील कुमार की अध्यक्षता में कमेटी बनायी थी. कमेटी ने प्रॉक्सी भागीदारी रोकने के लिए कई अनुशंसाएं की हैं. इसे राज्यों को लागू करने का आग्रह किया है. प्रॉक्सी भागीदारी रोकने के लिए पूर्व के प्रयासों को भी बहुत प्रभावी नहीं पाया गया है. केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को पंचायती राज मंत्रालय के भीतर एक समर्पित निगरानी प्रकोष्ठ की स्थापना की अनुशंसा की है. केरल सरकार की तर्ज पर प्रधान या मुखिया पति विरोधी प्रतियोगिता आयोजित करने की अनुशंसा भी की गयी है. इस पर वार्षिक प्रतियोगिता होगी. पुरस्कार भी दिया जायेगा. महिला लोकपाल की नियुक्ति की अनुशंसा की गयी है.
त्रैमासिक और वार्षिक समीक्षा का होगा प्रावधान
कमेटी ने अनुशंसा की है कि पंचायती राज व्यवस्था में हस्तक्षेप की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए त्रैमासिक और वार्षिक समीक्षा होगी. इसकी नियमित निगरानी और रिपोर्टिंग भी होगी. अनुशंसा के सुधारों के प्रभाव और प्रभावशीलता का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए तीसरे पक्ष से मूल्यांकन कराया जायेगा.
जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जायेगा
कमेटी ने अनुशंसा की है कि महिला जन प्रतिनिधियों को बढ़ावा देने के लिए मीडिया अभियान भी चलाया जा सकता है. ऑडियो/वीडियो के माध्यम से महिला अधिकार बताया जा सकता है. टेलीविजन और रेडियो पर महिला नेतृत्व पर लघु वीडियो, टॉक शो और साक्षात्कार कराया जा सकता है. सोशल मीडिया पर लिंग-संवेदनशील शासन को बढ़ावा देने के लिए वीडियो, इन्फोग्राफिक्स और प्रशंसा पत्र साझा करने के लिए एक्स, फेसबुक, व्हाट्सऐप और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों का लाभ उठाने की अनुशंसा की गयी है. स्थानीय शासन में अग्रणी योगदान देने वाली महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियां साझा की जा सकती है. लिंग समानता का समर्थन करने वाले पुरुष रोल मॉडल की विशेषता वाले लघु वीडियो या साक्षात्कार प्रकाशित किया जा सकता है.
क्या पाया था कमेटी ने
प्रॉक्सी भागीदारी को लेकर गठित कमेटी ने पाया कि महिला जन प्रतिनिधि में राजनीतिक नेतृत्व का अभाव या अपर्याप्त अनुभव है. लिंग आधारित भेदभाव भी है. प्रचलित पितृसत्तात्मक मानदंड और प्रथाएं अभी भी बरकरार हैं. राजनीतिक दबाव भी है. अपने सार्वजनिक जीवन को घरेलू जिम्मेदारियों के साथ संतुलित करने का दबाव भी महिला जन प्रतिनिधियों पर है. सीटों के रोटेशनल आरक्षण के सिद्धांत को भी कारण माना गया है, जिसके तहत महिला प्रतिनिधियों को केवल पांच साल का कार्यकाल दिया जाना भी शामिल है. कमेटी ने पाया कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारणों के साथ-साथ शिक्षा और अनुभव की कमी और परिवारों में सौंपी गयी सहायक भागीदार भूमिकाओं के कारण महिला जन प्रतिनिधि स्वतंत्र रूप से वित्तीय निर्णय लेने में हिचकिचाती हैं.
झारखंड में ग्राम प्रधान की भूमिका सराहनीय
कमेटी ने झारखंड में ग्राम प्रधान की भूमिका की इस मामले में सराहना की है. कमेटी ने पाया है कि ग्राम प्रधानों के मेंटरशिप से महिला जन प्रतिनिधियों को सशक्तीकरण मिला है. यही स्थिति दूसरे राज्यों में भी है. कमेटी ने पश्चिम बंगाल में ग्राम सभा की मीटिंग की वीडियो रिकार्डिंग्स और मिनट्स को सार्वजनिक करने सहित महिला ग्रामसभाओं में भी भागीदारी को अच्छा माना है.
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