रांची. प्रेमचंद ऐसे कथाकार हैं, जिन्हें लोग प्राथमिक विद्यालय से पढ़ना शुरू करते हैं तो बड़े होने तक उनका साथ नहीं छूटता. बच्चों से लेकर बूढ़े तक यानी हर उम्र के लोग उनके पाठक हैं. प्रेमचंद को इस दुनिया से रुखसत हुए लगभग नौ दशक होने जा रहे हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता में थोड़ी मात्र भी कमी नहीं आई है. आखिर प्रेमचंद की रचनाओं में वे कौन-सी बातें हैं, जो उन्हें आज भी प्रासंगिक बनाये हुए हैं. राजधानी रांची के जाने-माने लेखक और साहित्यकार उनकी रचनाओं से प्रेरणा लेते हैं और बता रहे हैं कुछ खास बातें.
प्रेमचंद की प्रमुख रचनाएं
कहानियां : कफन, ईदगाह, बड़े भाई साहब, पूस की रात, ठाकुर का कुआं, सद्गति, नमक का दारोगा, पंच परमेश्वर.उपन्यास : गोदान, गबन, निर्मला, सेवासदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, वरदान, प्रतिज्ञा, निर्मला, रूठी रानी, चरणदास.करबला : शहादत और बलिदान पर आधारित, उर्दू में लिखा गया एकमात्र नाटक.
प्रेमचंद के जीवन से जुड़ी रोचक जानकारियां
मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक जीवन में लगभग 300 कहानियां और 15 उपन्यास लिखे थे. इसके अलावा उन्होंने निबंध, लेख, संपादकीय, रेडियो के लिए स्क्रिप्ट, और एक नाटक भी लिखा.-असली नाम और उपनाम : उनका असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था. उन्होंने पहले नवाब राय के उपनाम से लिखना शुरू किया, फिर प्रेमचंद नाम अपनाया. मुंशी की उपाधि उन्हें पाठकों द्वारा सम्मान के रूप में दी गयी थी.-उर्दू से हिंदी की ओर : उन्हें हिंदी के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है. लेकिन, उन्होंने अपना साहित्यिक जीवन उर्दू में शुरू किया था.
– शिक्षा और नौकरी : उन्होंने वर्ष 1898 में अपनी हाई स्कूल की परीक्षा पास की और 1899 में 18 रुपये प्रति माह के वेतन पर एक स्कूल शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया. वर्ष 1919 में बीए की डिग्री प्राप्त की.-साहित्य के प्रति समर्पण : वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह से साहित्य सृजन में लग गये.- अधूरी रचना : उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र अधूरा रह गया, क्योंकि बीमारी के कारण उनका निधन हो गया.
– फिल्मों से जुड़ाव : उन्होंने मुंबई में मोहन दयाराम भवनानी की अजंता सिनेटोन कंपनी में कथा-लेखक की नौकरी भी की. 1934 में प्रदर्शित फिल्म मजदूर की कहानी उन्होंने ही लिखी थी.आज भी मुंशी जी की रचनाएं हैं प्रासंगिक
प्रेमचंद कृषि प्रधान, संयुक्त परिवार, जातीय संरचना वाले भारतीय समाज के विवेचक और विश्लेषक रचनाकार हैं. जिन्होंने आम जनमानस की पक्षधरता में अपनी स्याही से अर्थ उकेरे हैं. अपने संघर्ष से मनुष्यता की अंतिम संभावना बचा लेने का प्रयास करते उनके पात्र, पाठकों के लिए चरित्र बन जाते हैं. कई बार उनके संघर्ष इतने बड़े हो जाते हैं कि यथास्थिति बनी रह कर अकर्मण्यता में बदल जाती है. पाठकों की सहानुभूति बनी रहती है. लगाव बना रहता है. उनका हृदय मनुष्य के हृदय में बदलकर करुणा से भर जाता है. वर्तमान युग युद्धों का युग है. इसमें कई स्तर पर युद्ध हो रहे हैं, वैश्विक, आत्मिक, नैतिक और मानसिक. ऐसे समय में उनकी रचनाएं निदान का मार्ग दिखाती हैं.प्रो रत्नेश विष्वक्सेन, अध्यक्ष, हिंदी विभाग
कलम से किये सामाजिक क्रांति
प्रेमचंद का नाम हिंदी साहित्य की तरह उर्दू दुनिया में भी अत्यंत सम्मान के साथ लिया जाता है. उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत उर्दू भाषा में लेखन से की और कालांतर में देवनागरी लिपि को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया. प्रेमचंद ने भारत की दोनों प्रमुख भाषाओं हिंदी और उर्दू में उत्कृष्ट कथात्मक साहित्य की रचना की. उन्होंने उर्दू में कई उपन्यास और कहानियां लिखीं. उनकी प्रसिद्ध रचना सोज ए वतन (1908), जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया था. उर्दू भाषा और साहित्य में प्रेमचंद का स्थान अत्यंत विशिष्ट है. प्रमाण यह है कि उन्हें उर्दू का प्रथम कहानीकार माना जाता है. उन्होंने जो कुछ भी लिखा, निर्भीकता से लिखा. चाहे वह गरीबों की समस्याएं हो या सामाजिक विकृति, जमींदारों का अत्याचार हो या वर्गीय विभाजन.डॉ अब्दुल बासीत, अस्सिटेंट प्रोफेसर, गोस्सनर कॉलेज
समाज के दबे कुचले लोगों को कहानियों में बनाया नायक
प्रेमचंद हिंदी के उन लेखकों में हैं, जिन्होंने समाज के दबे कुचले लोगों को अपनी कहानियों व उपन्यासों में नायक बनाया. गोदान का होरी और रंगभूमि का सूरदास इसके उदाहरण है. प्रेमचंद का साहित्य सर्वहारा का साहित्य है. प्रेमचंद आज भी उतने ही प्रांसगिक हैं. जितने अपने दौर में रहे हैं. किसान जीवन की उनकी पकड़ और समझ को देखते हुए उनकी प्रांसगिकता आज के दौर में और बढ़ जाती है. उनकी रचनाओं में गरीब श्रमिक, किसान, स्त्री जीवन का सशक्त चित्रण उनके दर्जनों कहानियों व उपन्यासों में हुआ है. सदगति प्रसंग, पूस की रात, गोदान उनकी महत्वपूर्ण कृति है. प्रेमचंद का साहित्य सामाजिक सरोकार से प्रतिबद्ध है.डॉ विनोद कुमार, साहित्यकार
बेमिसाल कहानीकार थे मुंशी जी
मानव मूल्यों पर चोट करने वाले हर अशुभ शक्ति से प्रेमचंद की लड़ाई थी. अपनी छोटी आयु में हंस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने जो ऐतिहासिक अवदान दिया है वह अचरज में डालता है. नि:संदेह वह बेजोड़ कथा शिल्पी थे और उसी स्तर के पत्रकार भी थे. उनकी पत्रकारिता में कहीं उनका विवेक कमजोर नहीं दिखायी पड़ता है. हंस के विशेषांक में साहित्य संस्कृति से इतर समाज उपयोगी दूसरे विषयों पर भी उन्होंने लिखा. साहित्य प्रेमचंद का धर्म रहा तो पत्रकारिता उनका आपद धर्म. ऐसे सहज, सरल, विवेकी व्यक्तित्व के प्रेम में होना मेरे लिए सुखद है. रचनाओं को बार-बार पढ़कर आत्म संतुष्ठी होती है. ऐसा लगता है कि मानो आसपास वैसी घटनाएं हो रही हैं.अनामिका प्रिया, कवयित्री
प्रेमचंद की रचनाएं खेतों, खलिहानों, गांवों की गलियों तक पहुंची
प्रेमचंद की कलम में शब्द नहीं, समाज रचता बसता था. धनपतराय ने धन को छोड़ प्रेम को अपनाया. प्रेमचंद की रचनाएं किताबों तक सीमित नहीं थी, वे खेतों, खलिहानों, गांवों, गलियों सर्वत्र जा पहुंची. हिंदी और उर्दू में माहिर प्रेमचंद की लेखनी ने किसानों के आंसू, मजदूरों की भूख, असहायों की चीख, जातिवाद, शोषण के दंश से उत्पन्न सामाजिक कराह और नारी की पीड़ा को मुखरित किया. प्रेमचंद ने कहानियां, उपन्यास नहीं लिखे, संपूर्ण समाज को लिखा, उनका संपूर्ण साहित्य तत्कालीन समय और समाज का मुखर दस्तावेज है. प्रेमचंद की रचनाओं में संघर्ष है. उन्होंने अपने रचनाओं के माध्यम से मुख्यघारा से छूटे हुए लोगों के साथ खड़े रहे.
डॉ. कमल बोस, साहित्यकारB
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