रांची.
अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा पहाड़ी मंदिर परिसर अतिक्रमण का भी शिकार हो चुका है. लगभग 27 एकड़ में फैली रांची पहाड़ी के लगभग 10 एकड़ पर अतिक्रमण हो चुका है. कई बार इसे खाली कराने का प्रयास किया गया, लेकिन अब तक कामयाबी नहीं मिली. पहाड़ी मंदिर के पिछले हिस्से में एक ओर जहां झोपड़ियों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वहीं सरकारी बिल्डिंग भी खड़ी हो गयी है. यहां पानी की टंकी, नगर निगम चिकित्सालय सहित कई सरकारी भवन बन गये हैं.मापदंडों का उल्लंघन कर लगीं दुकानें
इधर, पहाड़ी मंदिर के मुख्य द्वार (जहां से श्रद्धालु पहाड़ी पर चढ़ाई शुरू करते हैं) के दोनों ओर करीब 35-40 दुकानें सजी हुई हैं. ज्यादातर दुकानें नगर निगम के मापदंडों का उल्लंघन कर लगायी जा रही हैं. दुकानदारों ने दुकान के आगे 15-20 फीट तक अतिक्रमण कर रखा है. निर्धारित स्थान के बजाय शेड के अंदर दुकानें लगायी जा रही हैं. वहीं, दुकान को कमरे के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है. कई बार नगर निगम की ओर से अतिक्रमण भी हटाया गया, लेकिन कुछ दिनों बाद फिर वही स्थिति हो जाती है.
मंदिर के पास लगता है ट्रक, सावन में श्रद्धालुओं को होती है परेशानी
मंदिर के मुख्य द्वार की बायीं ओर सुबह से ही ट्रक लगे रहते हैं, जिससे लोगों के आवागमन में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. वहां गोदाम होने की वजह से यह स्थिति बनती है. वहीं, सावन में 100 से ज्यादा नयी दुकानें सज जाती हैं, जिससे पहाड़ी के बाहर परिसर में अनावश्यक भीड़ हो जाती है. शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां शिव भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. सावन के महीने में शिव पर जलार्पण करने के लिए यहां कई किलोमीटर तक शिव भक्तों की कतार लगती है. सावन के लिए तो महीने भर पहले से ही तैयारी भी शुरू हो जाती है. अतिक्रमण और तंग सड़क के कारण पुलिस-प्रशासन को यहां भीड़ को नियंत्रित करने में काफी परेशानी होती है.
वाहन लगाना सबसे बड़ी चुनौती
सावन व शिवरात्रि में शिवभक्तों को वाहन लगाना सबसे बड़ी चुनौती होती है. वाहन लगाने के लिए जगह नहीं मिलती है. इसकी खास वजह है कि पहाड़ी मंदिर का अपना पार्किंग स्थल नहीं है. पहाड़ी मंदिर की बायीं ओर पार्किंग स्थल बनाये गये थे लेकिन, बताया गया कि उस पार्किंग स्थल का इस्तेमाल तिरुपति मंदिर समिति के लोग करते हैं. कहा जाता है कि पहाड़ी मंदिर प्रबंधन ने उन्हें दे दिया है.वर्ष 1951 से अब तक तीन मीटर तक मिट्टी बह गयी
वर्ष 1957 में पूरी पहाड़ी की कंटूरिंग की गयी. बड़ी मात्रा में पेड़ लगाये गये. वर्ष 1951 से अब तक करीब तीन मीटर तक मिट्टी बह गया. फ्लैग पोल लगाने के दौरान काफी संख्या में पेड़ काटे गये और कई पेड़ मिट्टी कटाव की वजह से गिर गये.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है