Rath Yatra: झारखंड की राजधानी रांची के धुर्वा स्थित जगन्नाथ मंदिर से हर साल भव्य रथ यात्रा निकलती है. प्रभु जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र के साथ रथ पर सवार होकर मौसीबाड़ी आते हैं. इस साल भगवान जगन्नाथ की अलौकिक रथ यात्रा 27 जून से शुरु होने वाली है. इसे लेकर तैयारियां चल रही हैं. हर साल लाखों की संख्या में भक्तों की भीड़ मेले में उमड़ती है. विशेषकर रथ यात्रा के पहले और आखिरी दिन (घुरती रथ) हजारों की संख्या में श्रद्धालु भगवान का रथ खींचने जगन्नाथ मंदिर पहुंचते हैं. तो आइए जानते हैं कि आखिर कैसे रांची में भगवान जगन्नाथ के धाम की स्थापना हुई.
कैसे हुई मंदिर की स्थापना
रांची में स्थित जगन्नाथ मंदिर की स्थापना की कहानी काफी रोचक है. जानकारों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण निर्माण वर्ष 1691 में नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने किया था. ऐसा कहा जाता है कि एक दिन राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने ओड़िशा के पुरी शहर जाने का मन बनाया. वह अपने एक नौकर और कर्मचारियों के साथ पुरी के लिए निकले. यहां पहुंचने पर उन्होंने भगवान जगन्नाथ की कहानी सुनी. प्रभु की कहानी सुनते ही राजा का नौकर उनका भक्त हो गया. अब सोते-जागते उसकी जुबान पर प्रभु जगन्नाथ का ही नाम रहता था.

एक रात जब राजा और सभी कर्मचारी सो रहे थे, तभी नौकर को भूख लगी. भूख से व्याकुल नौकर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. ऐसे में उसने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की. भगवान अब आप ही मेरी भूख मिटाइए. कहते हैं कि महाप्रभु जगन्नाथ भेष बदलकर नौकर के पास आये और उन्होंने राजा के नौकर को अपनी भोगथाली में भोजन लाकर दिया. इस तरह नौकर की भूख मिटी.
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सुबह उठकर नौकर ने यह कहानी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव को सुनाई. राजा को नौकर की बात सुनकर हैरत हुई. फिर रात हुई. रात में भगवान जगन्नाथ राजा एनीनाथ के सपने में आये. भगवान ने राजा से कहा कि हे राजन, यहां से लौटने के बाद तुम अपने राज्य में भी मेरे विग्रह की स्थापना कर पूजा-अर्चना करो. इसके बाद राजा ने संकल्प लिया की ओड़िशा से लौटते ही वह अपने राज्य में भगवान जगन्नाथ के मंदिर की स्थापना करेंगे. पुरी से लौटने के बाद एनीनाथ शाहदेव ने सभी समाज के लोगों को बुलाया और मंदिर का निर्माण कराया. इस तरह रांची में भी पुरी की ही तरह भगवान जगन्नाथ के धाम की स्थापना हुई.
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