Shibu Soren Stories: शिबू सोरेन, जिन्हें ‘दिशोम गुरु’ के नाम से जाना जाता है, झारखंड के एक दिग्गज नेता और झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक थे. उनके जीवन से जुड़ी कई कहानियां उनकी सादगी, संघर्ष और आदिवासी हितों के लिए समर्पण को दर्शाती हैं. आईए, आपको शिबू सोरेन की वो 5 कहानियां बताते हैं, जो किसी को भी प्रेरित करती हैं. इन कहानियों में आपको दिशोम गुरु के जीवन और व्यक्तित्व की झलक भी मिलेगी.
पिता की हत्या के बाद संघर्ष की शुरुआत
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को तत्कालीन हजारीबाग जिले के नेमरा गांव में हुआ था. नेमरा गांव अब रामगढ़ जिले में आता है. उनके पिता शोबरन सोरेन शिक्षक थे. 1960 के दशक में महाजनों ने उनकी हत्या करवा दी. युवा शिबू को इससे गहरा आघात पहुंचा. इस घटना ने आदिवासियों पर हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए उनको प्रेरित किया. पिता की हत्या के बाद, शिबू ने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ ‘धनकटनी आंदोलन’ शुरू कर दिया. इस आंदोलन ने आदिवासियों को अपने हक के लिए एकजुट कर दिया. इसी आंदोलन ने शिबू सोरेन के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल दी. इसके साथ ही अलग झारखंड राज्य के आंदोलन की नींव भी पड़ गयी.

Shibu Soren Stories: झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना
वर्ष 1973 में शिबू सोरेन ने धनबाद के एडवोकेट बिनोद बिहारी महतो और जाने-माने श्रमिक नेता एके राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की. उनका लक्ष्य था आदिवासियों और मूलवासियों के लिए एक अलग झारखंड राज्य का गठन करना. इस आंदोलन के दौरान, शिबू सोरेन को कई बार जेल जाना पड़ा. पुलिस की यातनाएं सहनी पड़ीं. उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ गयी कि उनकी अगुवाई में लाखों लोग सड़कों पर उतर आते थे. यही वजह रही कि वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बना. यह कहानी उनके दृढ़ संकल्प और नेतृत्व की मिसाल है.
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गंवई अंदाज और जनता से जुड़ाव
शिबू सोरेन को ‘गुरुजी’ कहा जाता था. उनकी सादगी उनकी पहचान थी. एक बार जब वे झारखंड के मुख्यमंत्री थे, वे रांची में अपने गांव के दोस्तों के साथ सड़क किनारे चाय की दुकान पर बैठकर बातें करते देखे गये. उनकी यह सादगी और आम लोगों से सीधा जुड़ाव ने ही उन्हें जनता का प्रिय नेता बनाया. एक अन्य घटना में, उन्होंने अपने गांव में आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ सामान्य जीवन जीने की मिसाल कायम की, जो उनकी जड़ों से गहरे जुड़ाव को दिखाता है.

चिरूडीह हत्याकांड और विवाद
शिबू सोरेन का जीवन विवादों से भी खाली नहीं रहा. वर्ष 1975 के चिरूडीह हत्याकांड में उनका नाम सामने आया, जिसमें उनके समर्थकों पर 10 लोगों की हत्या का आरोप लगा. इस मामले में वर्ष 2006 में उन्हें सजा हुई, लेकिन बाद में वे बरी हो गये. इस दौरान उन्होंने कठिन समय का सामना किया, लेकिन अपने समर्थकों का भरोसा नहीं खोया. यह कहानी उनके जीवन के उतार-चढ़ाव और उनकी दृढ़ता को दर्शाती है, क्योंकि उन्होंने इस विवाद के बाद भी JMM को मजबूत रखा.
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Shibu Soren Stories: झारखंड के लिए आजीवन समर्पण
शिबू सोरेन ने अपने पूरे जीवन को झारखंड और यहां के लोगों के लिए समर्पित कर दिया. एक बार, जब वे कोयला मंत्री थे, उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में खनन के कारण हो रहे विस्थापन के खिलाफ आवाज उठायी थी. उन्होंने हमेशा यह सुनिश्चित किया कि आदिवासी समुदाय की आवाज राष्ट्रीय मंचों पर सुनी जाये. उनकी यह लड़ाई तब भी जारी रही, जब वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे. उनकी यह कहानी उनके अटूट समर्पण और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है.

झारखंड की जनता के प्रेरणास्रोत बने रहेंगे शिबू सोरेन
ये वो कहानियां हैं, जो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के जीवन के विभिन्न पहलुओं, उनके संघर्षों, सादगी, नेतृत्व और विवादों के बावजूद अडिग रहने की क्षमता को उजागर करती हैं. ‘दिशोम गुरु’ अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनकी ये कहानियां झारखंड की जनता को हमेशा प्रेरणा देती रहेंगी.
गुरुजी ने सादा जीवन उच्च विचार का सदैव पालन किया
शिबू सोरेन का सबसे बड़ा गुण यह था कि वह मांस-मदिरा से दूर रहते थे. आदिवासियों के साथ-साथ आम लोगों से भी कहते थे कि वे हड़िया-दारू का सेवन न करें. स्कूल जायें. पढ़ाई करें, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके. शिबू सोरेन खुद शाकाहारी थे और अपने समर्थकों से भी कहते थे कि वे शाकाहार का पालन करें. उन्होंने सदैव सादा जीवन उच्च विचार का पालन किया.
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