Jharkhand HC: झारखंड हाइकोर्ट में दो जजों की बेंच ने एक अजीबोगरीब फैसला दिया, जो चर्चा का विषय बन गया. बेंच के दो जजों ने पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार की हत्या के मामले में अलग-अलग फैसला सुनाया है. एक ने आरोपी को बरी कर दिया है, जबकि दूसरे ने उसकी फांसी की सजा बरकरार रखी है.
दोनों जजों के फैसले अलग-अलग
जानकारी के अनुसार, जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने दोनों सजायाफ्ताओं की फांसी की सजा के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुए उन्हें फांसी की सजा से बरी कर दिया. वहीं, जस्टिस संजय प्रसाद ने राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए सजायाफ्ताओं की फांसी की सजा बरकरार रखी और निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया.
चीफ जस्टिस के पास जायेगा मामला
इस मामले में अपीलकर्ताओं के अधिवक्ता जितेंद्र शंकर सिंह ने बताया कि हाईकोर्ट की खंडपीठ के दोनों न्यायाधीशों के विभाजित होने से यह मामला अब चीफ जस्टिस के पास जायेगा. जहां इस मामले की सुनवाई के लिए दूसरी बेंच गठित की जायेगी. इधर, मामले में फांसी की सजा पाने वाले सुखलाल मुर्मू व सनातन बास्की की ओर से अधिवक्ता जितेंद्र शंकर सिंह ने पैरवी की. जबकि राज्य सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक विनीत कुमार वशिष्ठ ने पक्ष रखा था.
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राज्य सरकार की क्या है अपील
उक्त मामले में फांसी की सजा पाने वाले दो हार्डकोर नक्सलियों सुखलाल उर्फ प्रवीर मुर्मू व सनातन बास्की उर्फ ताला दा ने क्रिमनल अपील याचिका दायर कर फांसी की सजा को चुनौती दी थी. इधर, सजा सुनिश्चित करने को लेकर राज्य सरकार ने भी अपील की थी. जस्टिस संजय प्रसाद ने माना है कि यह मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि ड्यूटी पर तैनात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की दिनदहाड़े निर्मम व लक्षित हत्या राज्य के विरुद्ध एक गंभीर अपराध है.
फैसला रखा था सुरक्षित
इससे पहले खंडपीठ ने तीन फरवरी 2022 को सुनवाई पूरी होने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ज्ञात हो कि 2013 में नक्सलियों के हमले में पाकुड़ के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार सहित छह पुलिसकर्मियों की मौत हो गयी थी. दुमका के चतुर्थ जिला एवं सत्र न्यायाधीश तौफीकुल हसन की विशेष अदालत ने मामले में प्रवीर दा उर्फ सुखलाल मुर्मू व सनातन बास्की उर्फ ताला दा को फांसी की सजा सुनायी थी.
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क्या है जस्टिस संजय प्रसाद का फैसला
जस्टिस संजय प्रसाद ने फांसी की सजा कायम रखते हुए तत्कालीन एसपी के पारिवारिक सदस्यों को दो करोड़ मुआवजा और पुत्र या पुत्री को डीएसपी या डिप्टी कलेक्टर की नौकरी देने का आदेश दिया है. घटना में मारे गये पांचों पुलिसकर्मियों के परिवार के सदस्यों को भी 50-50 लाख मुआवजा और शैक्षणिक योग्यता के अनुसार उनके एक-एक आश्रित को चतुर्थ वर्गीय पदों पर नौकरी देने का आदेश दिया है.
जस्टिस मुखोपाध्याय ने किया आरोपियों को बरी
जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय ने अपने फैसले में दोनों अपीलकर्ताओं की फांसी की सजा निरस्त कर दी. जस्टिस ने वर्ष 2013 में हुई नक्सली घटना में तत्कालीन एसपी के ड्राइवर और बॉडीगार्ड को महत्वपूर्ण गवाह माना है. क्योंकि एसपी जिस गाड़ी में बैठे थे, उसे ड्राइवर धर्मराज मारिया चला रहा था.
एसपी ड्राइवर की बगल की सीट पर बायीं तरफ बैठे थे. बॉडीगार्ड लेबेनियस मरांडी पिछली सीट पर बैठा था. दोनों ही नक्सली घटना के चश्मदीद थे. जस्टिस मुखोपाध्याय ने इन दोनों महत्वपूर्ण चश्मदीद गवाहों के बयान में विरोधाभास पाया. संदेह का लाभ देते हुए दोनों को बरी करने का फैसला सुनाया.
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