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झारखंड की राजधानी रांची के पास मौजूद हैं भगवान राम-लक्ष्मण के पदचिन्ह? जानें सच

झारखंड की राजधानी रांची के पास के किसी इलाके में प्रभु श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण के पदचिन्ह होने का दावा किया जा रहा है. ग्रामीण इन पदचिन्हों की पूजा भी करते हैं. ग्रामीणों को मानना है कि भगवान राम और लक्ष्मण पंपापुर (वर्तमान में पालकोट) जाते वक्त यहां रुके थे. आइए जानते हैं इसके पीछे का सच -

देश रामधुन में डूबा है, पूरा माहौल राममय हो गया है. हर ओर जय श्री राम के नारे गूंज रहे हैं. कारण सबको पता है, भगवान राम की जन्मभूमि, अयोध्या में मंदिर का निर्माण. मंदिर में विराजे रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर लोगों में उल्लास और उमंग देखते बन रही है. अयोध्या के अलावा देशभर के सभी छोटे-बड़े राम मंदिरों में भी इस खास दिन को भव्य तरीके से मनाया जा रहा है. यूं कहें तो पूरे देश में दिवाली मनाई जा रही है. इस बीच सभी राम मंदिरों की चर्चा हो रही है. कहते हैं प्रभु श्रीराम के चरण देश के जिन हिस्सों में भी पड़े हैं, वो धार्मिक आस्था के प्रमुख केंद्र हैं. ऐसे ही कुछ प्रमुख तीर्थस्थलों को केंद्र सरकार ने ‘रामायण सर्किट’ के रूप में चिह्नित किया है. इस बीच झारखंड की राजधानी रांची के पास के किसी इलाके में प्रभु श्रीराम और उनके अनुज लक्ष्मण के पदचिन्ह होने का दावा किया जा रहा है. आज के इस लेख में हम इसी रहस्य को जानेंगे कि क्या सच में झारखंड में राम-लक्ष्मण के पदचिन्ह हैं?

कैसे मिली राम-लक्ष्मण के पदचिन्हों की जानकारी

राज्य में राम-लक्षमण के पदचिन्ह से जुड़े रहस्य को जानने के लिए हमने झारखंड के जाने माने भूवैज्ञानिक नीतीश प्रियदर्शी का रिसर्च देखा. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि वे अपने जिओलॉजिकल रिसर्च को दौरान रांची के आसपास के जंगलों और पहाड़ों पर चट्टानों को समझने के लिए अक्सर निकलते हैं. इसी खोज में कभी-कभी ऐसी आकृति के चट्टान दिखते हैं, मानों वह सांप, जानवर या मनुष्य की खोपड़ी की आकृति हो. कहीं-कहीं तो चट्टानों पर हथेली के छाप भी दिखते हैं. कुछ चट्टान बड़े पलंग की बनावट की तरह दिखते हैं. उन्होंने बताया कि रांची शहर के बीच में चट्टान पर लिखा हुआ एक आलेख भी दिखा, जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं पाया है. इसी खोज के बीच उन्हें सूचना मिली कि, रांची के पास एक चट्टान पर मानव के पैरों के निशान हैं. जिसके बाद भूवैज्ञानिक नीतीश प्रियदर्शी उस पदचिन्ह को देखने निकल पड़े.

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रांची से करीब 45 किलोमीटर पश्चिम में हैं पदचिन्ह

नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि रांची से करीब 45 किलोमीटर पश्चिम में एक खेत है, जहां एक चट्टान मौजूद है. उस चट्टान में वास्तव में दो जोड़े पदचिन्ह मिले. वहां के ग्रामीण मानते हैं कि वे पदचिन्ह प्रभु श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण के हैं. ग्रामीण इन पदचिन्हों की पूजा भी करते हैं. ग्रामीणों को मानना है कि भगवान राम और लक्ष्मण पंपापुर (वर्तमान में पालकोट) जाते वक्त यहां रुके थे. ऐसा माना जाता है कि यह क्षेत्र रामायणकाल में किष्किंधा का क्षेत्र था.

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क्या है पदचिन्हों के पीछे का सच

भूवैज्ञानिक बताते हैं कि ये दोनों पदचिन्ह ग्रेनाइट पत्थर पर बने हैं और किसी भी पदचिन्ह को बनने के लिए उस जगह का या मिट्टी का दलदली अवस्था में होना जरूरी होता है, क्योंकि दलदली अवस्था में ही किसी चीज का छाप उभर सकता है. जिस वक्त ये चट्टान ठोस हो रहे थे, उस वक्त पृथ्वी पर कोई आबादी नहीं थी. इससे साफ पता चलता है कि इसे काटकर बनाया गया है. पदचिन्ह को देखकर पता चलता है कि इसके कुछ भाग मिट गए है. इससे अंदाजा लगाया गया कि यह काफी पुराना है.

पदचिन्हों का पूरा आकलन

दोनों पदचिन्हों के आकलन के बाद नीतीश प्रियदर्शी बताते हैं कि इसमें एक जोड़े पदचिन्ह की लंबाई 11 इंच और चौड़ाई 5 इंच है. वहीं दूसरे जोड़े पदचिन्ह की लंबाई 10 इंच और चौड़ाई 4.5 इंच है. बड़े पदचिन्ह को देख अनुमान लगाया गया कि व्यक्ति की लंबाई 6.5 फीट से 7 फीट के हो सकते हैं. वहीं, ये पदचिन्ह खड़ाऊं के हैं. हमारे भारत में खड़ाऊं पहनने की प्रथा ईसा पूर्व से है और पैर व पदचिन्हों की पूजा प्राचीनकाल से हो रही है. इसी तरह के पदचिन्ह यूरोप के स्कॉटलैंड में भी पाए गए हैं. रांची में इस तरह के पदचिन्ह मिलने की यह पहली घटना है.

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पदचिन्हों के पास एक और आकृति

रांची के पास मिले इन पदचिन्हों के पास एक और आकृति मिली है, जो एक उड़नेवाले पक्षी, तितली या अन्य किसी उड़ने वाले जीव की तरह दिखता है, जिसका सिर गोल है. इस तरह के पदचिन्हों की आयु की गणना विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों में पाए गए पदचिन्हों पर की गई है. कहीं इसकी आयु 10 हजार वर्ष से लाख वर्ष पाई गई है. विभिन्न शोधों के अनुसार कहीं-कहीं मनुष्य के पदचिन्ह डायनासोर के पदचिन्ह के साथ भी पाए गए हैंस लेकिन इसपर अब भी शोध जारी है.

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खतरे में इस तरह के पदचिन्ह का अस्तित्व

भूवैज्ञानिक नीतीश प्रियदर्शी ने बताया कि रांची के पास, जहां ये पदचिन्ह पाए गए हैं, वहां चट्टानों को तोड़ा जडा रहा है. ऐसे में इस तरह के पदचिन्ह का अस्तित्व खतरे में हैं. हालांकि, इस क्षेत्र को वहां के ग्रामीणों ने बचाकर रखा है. जरूरत है, इन पदचिन्हों की आयु का पता करना और इसे धरोहर के रूप में बचाकर रखना. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि अगर झारखंड के इन क्षेत्रों को खंगाला जाए, तो इस तरह की आकृति मिलने की प्रबल संभावना है और इन क्षेत्रों को टूरिस्ट क्षेत्र में भी बदला जा सकता है.

(नोट: ये जानकारी हमने भूवैज्ञानिक नीतीश प्रियदर्शी के यूट्यूब चैनल से इकट्ठे किए हैं.)

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Jaya Bharti
Jaya Bharti
This is Jaya Bharti, with more than two years of experience in journalistic field. Currently working as a content writer for Prabhat Khabar Digital in Ranchi but belongs to Dhanbad. She has basic knowledge of video editing and thumbnail designing. She also does voice over and anchoring. In short Jaya can do work as a multimedia producer.

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