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Ranchi News : अृमत तुल्य है मां का दूध

हर वर्ष एक से सात अगस्त के बीच विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है.

(विश्व स्तनपान सप्ताह एक से सात अगस्त तक)

इस वर्ष की थीम स्तनपान को दें प्राथमिकता, ”स्थायी सहायता प्रणाली बनायें” यानी स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बनाना है सशक्त.

रांची. हर वर्ष एक से सात अगस्त के बीच विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है. इसका उद्देश्य नवजात शिशुओं को स्तनपान कराने के प्रति माताओं, परिवारों और समाज को जागरूक करना है. स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो जन्म के एक घंटे के भीतर शिशु को मां का पहला दूध (कोलोस्ट्रम) देना उसके जीवन की एक मजबूत नींव रखता है. यह दूध न केवल संपूर्ण पोषण देता है, बल्कि नवजात के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है. यही कारण है कि इसे शिशु का पहला टीका भी कहा जाता है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार छह महीने से कम उम्र के नवजात की जितनी आबादी होती है उसमें से आधे से भी कम शिशु समय पर स्तनपान कर पाते हैं. पढ़िये मुख्य संवाददाता राजीव पांडेय की रिपोर्ट.

जन्म के एक घंटे के भीतर 21.5 % नवजात ही पीते हैं मां का दूध

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-पांच (एनएफएचएस) वर्ष 2020-21 के आंकड़े की मानें तो झारखंड में जन्म के एक घंटे के भीतर 21.5 फीसदी नवजात ही मां का दूध पी पाते हैं. चिंता इस बात की है कि एनएफएचएस-चार (वर्ष 2020-21) में यह आंकड़ा 33.1 फीसदी था. वहीं, शहरी क्षेत्र में जन्म के एक घंटे के भीतर 22.5 नवजात मां का दूध पीते हैं. हालांकि ग्रामीण क्षेत्र में 21.3 फीसदी बच्चों को मां का दूध पी लेते हैं.

छह महीने के भीतर 76.1% बच्चों को मिलता है मां का दूध

एनएफएचएस-पांच के आंकड़े की मानें तो राज्य में छह महीने के भीतर 76.1 फीसदी शिशु मां का दूध पीते है. वहीं, वर्ष 2020-21 में 64.8 फीसदी बच्चोंं को मां का दूध मिलता था. यानी यह आंकड़ा बढ़ा है. इधर, ग्रामीण इलाकों में छह महीने के भीतर 78.6 फीसदी बच्चों को मां का दूध मिल जाता है. वहीं, शहरी इलाकों में 61.6 फीसदी बच्चों को ही मां का दूध मिल पाता है.

छह से आठ महीने में खाद्य पदार्थ के साथ मां का दूध पीने वाले बच्चे 38.8%

छह महीने की उम्र के बाद शिशु को तरल पदार्थ और हल्का ठोस आहार देने की सलाह दी जाती है. इस दौरान भी बच्चों को मां का दूध पिलाना होता है. राज्य में 38.8 फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं जो छह से आठ महीने की उम्र में तरल पदार्थ और हल्का ठोस आहार के साथ-साथ मां का दूध पीते हैं. हालांकि, एनएफएचएस-चार (वर्ष 2020-21) में यह आंकड़ा 47.2 फीसदी था. वहीं, शहरी क्षेत्र में छह से आठ साल के 33.5 फीसदी बच्चे तरल पदार्थ के साथ-साथ मां का दूध लेते हैं. हालांकि, ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 39.9 फीसदी है.

::: क्यों जरूरी है स्तनपान

– स्तनपान करने से शिशु को सभी जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं.

– मां के दूध में कुछ ऐसे एंजाइम भी होते हैं, जो नवजात के पाचन को बेहतर बनाता है.

– मां के दूध से बच्चों का बौधिक और मानसिक विकास तेजी से होता है. इम्यून सिस्टम मजबूत होता है.

तेजी से बढ़ाता है रोग प्रतिरोधक क्षमता

मां का दूध बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) को बढ़ाता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता बच्चों को कई संक्रामक बीमारियों से बचाता है. नवजात में दस्त और निमोनिया जैसी बीमारी का खतरा कम होता है. वहीं, बच्चों का पाचनतंत्र भी मजबूत होता है.

कम होता है मोटापा और डायबिटीज का खतरा

वैसे बच्चे जो जन्म के समय से ही मां का दूध पीते हैं उनको मोटापा, अस्थमा, डायबिटीज और एलर्जी जैसी बीमारियों का खतरा कम होता है. मोटापा का शिकार वैसे बच्चे होते हैं जो डब्बा बंद पाउडर का दूध पीते हैं. डब्बा बंद पाउडर दूध से डायबिटीज का खतरा रहता है.

दूध पिलाने से कई गंभीर बीमारी से बचती हैं माताएं

जो मां अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं तो उसको कई गंभीर बीमारी होने का खतरा कम हो जाता है. रिम्स के स्त्री और प्रसूति विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ अर्चना कुमारी ने बताया कि स्तनपान कराने वाली महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर होने का खतरा कम हो जाता है. शहरी क्षेत्र की महिलाएं स्तनपान कराने को लेकर जागरूक नहीं रहती है, जिसके लिए जागरूकता जरूरी है.

इस तरह से बढ़ सकता है मां का दूध

रिम्स की डायटिशियन कुमारी मिनाक्षी ने बताया कि गर्भावस्था से ज्यादा पोषण की जरूरत प्रसव के बाद महिला को होती है. गर्भधारण के समय 30000 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है. लेकिन, स्तनपान के दौरान प्रतिदिन महिला को 2000 से 3000 कैलोरी की आवश्यकता पड़ती है. दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए महिला को मसूर की दाल, दूध, हरी साग-सब्जी और मौसमी फल का उपयोग करना चाहिए. चना दाल, उरद का दाल, लाल मिर्च, ज्यादा मसाला का उपयोग नहीं करना चाहिए. वहीं, लहसून और अदरक का इस्तेमाल कम करना चाहिए.

झारखंड में मिल्क बैंक की योजना

झारखंड में प्रायलट प्रोजेक्ट के तहत मिल्क बैंक की योजना रांची, बोकारो, दुमका और हजारीबाग में चल रही है. अभी इस प्रोजेक्ट का प्रारूप बनाया जा रहा है. इसकी सफलता के बाद इस योजना को राज्य के अन्य जिलों में लागू की जायेगी.

दो साल तक बच्चों को मां का दूध जरूरी

मां का दूध शिशु के जन्म से लेकर दो साल तक पिलाना चाहिए. वैसे छह माह तक सिर्फ मां का दूध ही बच्चों के लिए लाभकारी होता है, लेकिन छह से आठ महीना तक जब बच्चे घर का तरल पदार्थ लेते हैं उस दौरान भी मां का दूध देना गुणकारी होता है. अधिकांश घरों में बच्चे जब तरल पदार्थ लेने लगते हैं तो महिलाएं दूध पिलाना छोड़ देती है, जो जरूरी नहीं है.

प्रसव के तुरंत बाद मां का दूध होता है गुणकारी

मां के दूध में वसा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, खनिज और पानी का मिश्रण होता है, जो शिशु को आवश्यक ऊर्जा और पोषण प्रदान करता है. इसलिए ही प्रसव के तुरंत बाद मां का दूध तुरंत बच्चे को पिलाने की सलाह दी जाती है.

विशेषज्ञों की सलाह…

जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान शुरू करें.

पहले छह महीने तक केवल मां का दूध दें, न पानी, न शहद, न कोई और दूध.

स्तनपान के दौरान मां को संतुलित आहार लेना चाहिए.

कामकाजी महिलाएं ब्रेस्ट पंप का सहारा लेकर दूध निकालकर सुरक्षित रख सकती हैं.

स्तनपान से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए चिकित्सक या परामर्शदाता से सलाह लें.

भारत में हर साल 10 लाख बच्चों की जान बचायी जा सकती है यदि सभी बच्चों को छह महीने तक केवल मां का दूध मिले.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मां के दूध में 87% पानी और बाकी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, विटामिन और एंटीबॉडी होते हैं. यह बच्चे को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी विकसित करता है. खासकर शुरुआती छह महीने तक मां का दूध किसी भी बाहरी भोजन से बेहतर होता है.

डॉ अमित मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ

स्तनपान कराने से महिलाओं को कई गंभीर बीमारी होने का खतरा कम हो जाता है. ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर जैसी गंभीर बीमारी का खतरा कम हो जाता है. बच्चे मां का दूध जन्म के समय ही पीते हैं उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है.

डॉ अर्चना कुमारी, विभागाध्यक्ष स्त्री एवं प्रसूति विभाग, रिम्सB

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