शचिंद्र दाश/धीरज सिंह
सिनेमा के बढ़ते क्रेज के बावजूद थिएटर आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाये हुए है. आधुनिकता के इस दौर में भी रंगमंच के चाहने वालों की संख्या कम नहीं हुई है. सरायकेला-खरसावां में रंगमंच का इतिहास वर्षों पुराना है और आज भी यहां ओड़िया नाटक देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है. कई नाट्य संस्थाएं हर साल ओड़िया नाटकों का प्रदर्शन कर अपनी कला-संस्कृति को संरक्षित करने में जुटी हैं. उत्कल युवा एकता मंच, मां अन्नपूर्णा नाट्य अनुष्ठान, गणपति ओपेरा, महावीर संघ ओपेरा और मां काली ओपेरा जैसी संस्थाएं इस परंपरा को जीवंत बनाए हुए हैं. हालांकि, सरकारी सहयोग के अभाव में कुछ नाट्य संस्थाएं बंद भी हो चुकी हैं. कलाकारों का मानना है कि यदि सरकार से अनुदान मिले, तो रंगमंच में फिर से रौनक लौट सकती हैमहावीर संघ ओपेरा : 1965 से रंगमंच की धरोहर
खरसावां के कुम्हारसाही बस्ती में पिछले 60 वर्षों से हर साल ओड़िया नाटकों का मंचन किया जा रहा है. 1965 में स्थापित महावीर संघ ओपेरा दीपावली पर नाटक प्रस्तुत कर रहा है. इस संस्था से जुड़े तीन दर्जन से अधिक कलाकार अब तक दो दर्जन से अधिक स्थानों पर अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं. संस्था के निदेशक कामाख्या प्रसाद षाड़ंगी के अनुसार, पहले पौराणिक कथाओं पर आधारित नाटकों का प्रचलन था, लेकिन अब सामाजिक विषयों पर आधारित नाटक अधिक मंचित किये जा रहे हैं.बुढ़ीतोपा के कलाकार रंगमंच को बचाने में जुटे
खरसावां के सुदूरवर्ती गांव बुढ़ीतोपा के कलाकार ‘मां काली ओपेरा’ के बैनर तले 60 के दशक से रंगमंच पर ओड़िया नाटकों का मंचन कर रहे हैं. कलाकार अजय प्रधान के अनुसार, ये लोग सदियों पुरानी रंगमंच कला को बचाने में जुटे हुए हैं. उनका मानना है कि यदि सरकार से आर्थिक मदद मिले, तो रंगमंच के सुनहरे दिन वापस आ सकते हैं. स्थानीय कलाकारों ने अब तक कई स्थानों पर नाट्य प्रदर्शनी कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है.उत्कल युवा एकता मंच से जुड़े 100 से अधिक नाट्य कलाकार
सरायकेला का उत्कल युवा एकता मंच पिछले पांच वर्षों से लगातार ओड़िया नाटकों का मंचन कर रहा है. संस्था के निर्देशक सुदीप नंदा और देवदत्त मोहंती के मार्गदर्शन में 100 से अधिक कलाकार इस मंच से जुड़े हुए हैं. इस संस्था ने अबतक पांच नाटकों का निर्देशन किया है, जिन्हें दर्शकों से भरपूर सराहना मिली है.गणपति ओपेरा : 1976 से उड़िया नाटकों का मंचन
सरायकेला नगर का प्रतिष्ठित नाट्य अनुष्ठान ‘गणपति ओपेरा’ पिछले 49 वर्षों से ओड़िया नाटक प्रस्तुत कर रहा है. संस्था से 50 से अधिक कलाकार जुड़े हुए हैं. वर्तमान में इसका निर्देशन वरुण कुमार साहू कर रहे हैं, जो 16 वर्ष की उम्र से ही नाट्य कला से जुड़े हुए हैं.महिला की भूमिका निभाने वाले इकलौते कलाकार
गणपति ओपेरा के मणिप्रसाद ज्योतिषी आज भी महिला पात्रों की भूमिका निभाते हैं. पहले जब महिला कलाकार नहीं होती थीं, तब पुरुष ही महिला पात्रों को निभाते थे. हालांकि, अब महिलाएं भी रंगमंच का हिस्सा बन रही हैं, लेकिन मणिप्रसाद की कला आज भी दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाए हुए है.रंगमंच का ऐतिहासिक महत्व
भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना है. माना जाता है कि नाट्यकला की शुरुआत भारत में ही हुई थी. 1961 से हर साल 27 मार्च को विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. इसका उद्देश्य थिएटर के महत्व को बढ़ावा देना है.कलाकारों की राय
रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है, जिसे बढ़ावा देने की जरूरत है. -केपी षाड़ंगी, निर्देशक, महावीर संघ ओपेराओड़िया नाटक के माध्यम से भाषा और संस्कृति को संरक्षित किया जा रहा है. -देवदत्त मोहंती, निर्देशक, उत्कल युवा एकता मंच
सरायकेला-खरसावां में रंगमंच की परंपरा को बचाने के लिए युवाओं को आगे आना होगा. – सुशांत षाड़ंगी, वरिष्ठ कलाकार, महावीर संघ ओपेराउत्कल युवा एकता मंच नाट्य कला को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है. -रुपेश कुमार साहू, सचिव, उत्कल युवा एकता मंच
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है