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Seraikela Kharsawan News : कल्कि अवतार में प्रकट हुए भगवान जगन्नाथ व बलभद्र

दक्षिणामुख संस्कार के साथ शुरू हुई बाहुड़ा रथयात्रा की तैयारी, जयघोष और शंखध्वनि के बीच श्रीमंदिर लौटने को तैयार रथ ‘नंदीघोष’

सरायकेला. सरायकेला के गुंडिचा मंदिर में शुक्रवार को भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने कल्कि अवतार में भक्तों को दर्शन दिये. इस अद्भुत स्वरूप के दर्शन को लेकर भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी. भगवान जगन्नाथ को काले घोड़े पर और भगवान बलभद्र को सफेद घोड़े पर सवार दिखाया गया, दोनों के हाथों में तलवार थी, मानो वे युद्ध भूमि की ओर प्रस्थान कर रहे हों. इस विशेष वेश-भूषा में दोनों देवों का स्वरूप अत्यंत आकर्षक रहा. झारखंड में केवल सरायकेला यही एक स्थान है, जहां रथयात्रा के दौरान भगवान के विभिन्न स्वरूपों में दर्शन की परंपरा है. गुरु सुशांत कुमार महापात्र के निर्देशन में पार्थ सारथी दास, उज्ज्वल सिंह, सुमित महापात्र, अनुभव सत्पथी, रूपेश महापात्र, अमित महापात्र, विक्की सत्पथी, शुभम कर, मुकेश साहू और गौतम मुखर्जी ने भगवान के कल्कि अवतार की वेश-भूषा सजायी. प्रभु के इस स्वरूप के दर्शन के लिए श्रद्धालु सुबह से ही मंदिर में पहुंचने लगे थे.

1970 में शुरू हुई थी वेश-भूषा की परंपरा :

सरायकेला के गुंडिचा मंदिर (मौसीबाड़ी) में रथयात्रा के दौरान प्रभु जगन्नाथ की विशेष वेश-भूषा की परंपरा यहां की प्रमुख विशेषता है. इस परंपरा को देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. कहा जाता है कि इस अनूठी परंपरा की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी. उस समय गुरु प्रसन्न कुमार महापात्र, डोमन जेना और सुशांत महापात्र जैसे कलाकार प्रभु की वेश सज्जा करते थे.

भाई-बहन संग आज गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लौटेंगे प्रभु जगन्नाथ

सरायकेला-खरसावां में प्रभु जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा ( घूरती या वापसी रथयात्रा ) 5 जुलाई को निकाली जायेगी. इसके लिए तैयारियां जोर-शोर से शुरू हो गयी हैं. वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्रभु जगन्नाथ के रथ ”नंदीघोष” को गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर की ओर मोड़ दिया गया, जिसे ”दक्षिणामुख” संस्कार कहा जाता है. यह एक धार्मिक परंपरा है, जो वापसी यात्रा से पहले की जाती है. शनिवार को सरायकेला, खरसावां और हरिभंजा सहित विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का समागम देखने को मिलेगा. जय जगन्नाथ के जयघोष, शंखध्वनि तथा हुल-हुली और उलुध्वनि के बीच प्रभु जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मौसीबाड़ी (गुंडिचा मंदिर) से श्रीमंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे. सैकड़ों श्रद्धालु रथ को खींचकर प्रभु को श्रीमंदिर तक पहुंचायेंगे.

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