खरसावां.
चितालागी अमावस्या पर गुरुवार को खरसावां के हरिभंजा स्थित जगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना की गयी. स्थानीय भाषा में इसे ‘चितोऊ अमावस्या’ भी कहते हैं. पुरोहितों ने विधि-विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ को चंदन का टीका लगाया. प्रभु के माथे पर सुनहरा निशान लगाया, जिसे ‘चिट्टा’ के रूप में जाना जाता है. धार्मिक मान्यता है कि स्नान पूर्णिमा के दिन 108 कलश पानी से स्नान के दौरान प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा का चिता खोल दिया जाता है. इसे ‘चितालागी अमावस्या’ पर लगाया जाता है.चितऊ पीठा का भोग चढाया गया
ओड़िया परंपरा के अनुसार चावल के पाउडर से तैयार चितऊ पीठा का भोग प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को चढाया गया. चितऊ पीठा का भोग मात्र चितालागी अमावस्या पर चढ़ाया जाता है. भक्तों में प्रसाद वितरण किया गया.
खेतों में गंडेइसुनी व कस्तुरी की पूजा की गयी
चितालागी अमावस्या पर किसानों ने खेतों में पूजा-अर्चना की. गंडेइसुनी (घोंघे) व कस्तुरी की पूजा की.यह पूजा अच्छी खेती के लिए की जाती है. किसान परिवार चितऊ पीठा बनाकर खेतों में गाड़ते हैं. इसमें चितऊ पीठा जीव-जंतुओं को खिलाकर संतुष्ट करने की प्रथा है. फसल को गंडेइसुनी व अन्य जंतु बर्बाद कर देते हैं. ऐसे में चितऊ पीठा को सारू के पत्र में गंडेइसुनी (घोंघे) के लिए अर्पित किया जाता है.
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