खरसावां. बनस्ते डाकिला गज, बरसकु थोरे आसिछी रज, आसिछी रज लो घेनी नुआ सज बाज… रज संक्रांति पर गाये जाने वाला ओड़िया भाषा का यह लोक गीत इन दिन कोल्हान के हर गली-मुहल्लों में गूंज रहा है. शनिवार से शुरू होने वाले रज पर्व को लेकर सरायकेला-खरसावां समेत कोल्हान में काफी उत्साह देखा जा रहा है. ओड़िया पंचाग के अनुसार, साल का पहला महत्वपूर्ण पर्व है रजस्वला संक्रांति. रज संक्रांति के नाम से जाने जाने वाला यह लोक पर्व कहीं दो तो कहीं तीन दिनों तक मनाया जाता है. ओडिया समुदाय के लोग रज पर्व को बडे़ ही उत्साह के साथ मनाते हैं. रज पर्व विशुद्ध रूप से महिलाओं को समर्पित है. रज पर्व पर महिलाओं के झूला झूलने की वर्षों पुरानी परंपरा अब भी कायम है. पेड़ों में रस्सी लगा कर झूला बनाने व झूला को विभिन्न तरह के फूलों से सजा कर झूलने की परंपरा है. कई जगह पर पारंपरिक तरीके से लकड़ी का झूला बना कर महिलाएं झुलती हैं. झूलों को फूलों से सजाया जाता है. रज पर्व को मनाते हुए लोग साल की पहली मॉनसून का स्वागत करते हैं. ताकि अच्छी खेती हो. हर वर्ष अमूमन यहीं देखा जाता है कि रज पर्व के दो-चार दिन आगे पीछे ही मॉनसून दस्तक देता है. रज पर्व के दौरान बारिश होने को शुभ संकेत माना जाता है.
गांवों में लगेगा मेला व छऊ नृत्य :
सरायकेला-खरसावां के विभिन्न गांवों में रज पर्व पर मेला व छऊ नृत्य का आयोजन किया जायेगा. खरसावां-सरायकेला में रजस्वला संक्रांति पर देहरीडीह, रामपुर, देउली, काशीपुर, गितीलोता, कुचाई के मरांगहातु व जुगीडीह, सरायकेला के मुरुप समेत आधा दर्जन से अधिक गांवों में छऊ नृत्य व मेला का भी आयोजन किया जायेगा.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है