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Birsa Munda 125th Death Anniversary|Birsa Munda News| बंदगांव (पश्चिमी सिंहभूम), अनिल तिवारी : पश्चिमी सिंहभूम जिले के बंदगांव प्रखंड का शंकरा गांव भी कुछ दिनों के लिए भगवान बिरसा मुंडा का कार्यस्थल था. इसी गांव से अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा को आखिरी बार गिरफ्तार किया था. पश्चिमी सिंहभूम जिला मुख्यालय से रांची की ओर जाने वाली मुख्य सड़क के अंतिम छोर पर है बंदगांव प्रखंड. खूंटी जिला से सटा यह प्रखंड घने जंगलों से घिरा है. नक्सल प्रभावित है. कभी यही प्रखंड अंग्रेजों के छक्के छुड़ा देने वाले बिरसा मुंडा का कार्यस्थल हुआ करता था. बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के 125 साल बाद अब यह गांव वीरान नजर आता है.
कहां है बिरसा मुंडा को पनाह देने वाला शंकरा गांव?
पश्चिमी सिंहभूम के जिला मुख्यालय चाईबासा से 65 किलोमीटर और चक्रधरपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर बंदगांव प्रखंड के टेबो पंचायत में है शंकरा गांव. एनएच-75 (ई) से पश्चिम की ओर 15 किलोमीटर जाने के बाद घने जंगलों में आपको शंकरा गांव मिलेगा. घने जंगलों के बीच बसे इस गांव के चारों ओर पहाड़ हैं. गांव में तकरीबन 350 लोग रहते हैं. सभी अनुसूचित जनजाति (एसटी) के हैं. भगवान बिरसा के द्वारा चलाये गये धर्म बिरसाइत को मानने वाले 50 प्रतिशत लोग हैं इस गांव में. गांव में कुल 40 परिवार हैं. इस गांव में 217 मतदाता हैं.

अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए बिरसा ने शंकरा गांव को चुना
बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘उलगुलान’ का ऐलान किया था. तीन-धनुष को हथियार बनाकर अंग्रेजों से लड़ा. अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी का ऐलान किया और उनकी गिरफ्तारी पर इनाम की घोषणा की, तो उनकी तलाश बहुत तेजी से होनी लगी. इस दौरान शंकरा गांव में रहकर बिरसा मुंडा अंग्रेजों की साजिश के खिलाफ रणनीति बनाने लगे. इसी गांव से 2 फरवरी 1900 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.
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साहू मुंडा के घर रहकर अंग्रेजों के खिलाफ बनाते थे रणनीति
गिरफ्तारी से पहले बिरसा मुंडा एक लकड़हारे के साथ मिलकर मुंशी का काम कर रहे थे. शंकरा के साहू मुंडा के घर पर रहते थे. साहू मुंडा के भाई जावरा मुंडा के साथ मिलकर अंग्रेजों की साजिशों को नाकाम करने में लगे रहते थे. दोनों घर के बरामदे में ही रात गुजारते थे. जावरा मुंडा की छोटी बहन कैरी मुंडा दोनों को भोजन कराती थी. भाइयों के साथ-साथ वह बिरसा का भी ख्याल रखती थी.

जब अंग्रेजों ने बिरसा से ही बिरसा मुंडा के बारे में की पूछताछ
एक बार अंग्रेजी फौज शंकरा गांव आ धमकी. जवानों ने बिरसा मुंडा से ही बिरसा के बारे में पूछताछ शुरू कर दी. बिरसा मुंडा गांव के विशालकाय इमली वृक्ष के नीचे लगे अखाड़ा में मांदर बजा रहे थे. बिरसा ने पुलिस वालों से कह दिया कि इस गांव में बिरसा नाम का कोई व्यक्ति नहीं रहता. अंग्रेज सिपाही बिरसा मुंडा को पहचानते नहीं थे. इसलिए बैरंग लौट गये.
इसके बाद भी अंग्रेजों की फौज और सिपाही बार-बार शंकरा गांव आती रही. ग्रामीणों को धमकी देती रही. कई बार लोगों के घर उजाड़ दिये गये. धान की फसलों को नष्ट कर दिया. लोगों को यातनाएं देकर बिरसा मुंडा के बारे में पूछते. मजबूरन गांव के लोग अपनी फसल को पहाड़ पर ले जाकर रखते. वहीं, ओखली पर धान की कुटाई करते थे. आज उस स्थान को सेलकुटी नाम से जाना जाता है. आज भी गांव के खतियान में वही नाम दर्ज है.

Birsa Munda 125th Death Anniversary: अंग्रेजों ने शंकरा जंगल से किया गिरफ्तार
अंग्रेजों को शक था कि बिरसा शंकरा गांव में ही है. लेकिन ग्रामीण उसकी जानकारी नहीं दे रहे है. फिर कूटनीतिक तरीका अपनाकर बिरसा की जानकारी हासिल की और शंकरा के जंगल से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद बिरसा मुंडा को बंदगांव डाक बंगला में एक रात रखने के बाद दूसरे दिन खूंटी ले जाया गया. उस समय खूंटी, रांची जिला में पड़ता था. बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी से ग्रामीण काफी मायूस हुए.

बिरसाइयत धर्म को मानने वाले हर रविवार करते हैं विशेष प्रार्थना सभा
बिरसा धर्म को मानने वाले लोग आज भी स्वयं भोजन तैयार करके ग्रहण करते हैं. दूसरों के हाथों से तैयार भोजन नहीं खाते. उस जमाने में बिरसा भगवान को लोग सीधे जोहार नहीं करते थे, बल्कि जिस स्थान पर वह बैठते या जहां ध्यान करते, लोग उस स्थान को प्रणाम करते और चूमते थे. भगवान बिरसा की एक खासियत यह थी कि वो जिस जानवर को आवाज देते, वह पास आ जाता था. कोटागाड़ा, जोंकोपाई, रोगोद, हलमद, बांडुकोचा आदि गांवों में आज भी हजारों लोग बिरसाईत धर्म को मानते हैं. प्रत्येक रविवार को इनकी प्रार्थना सभा होती है, जिसमें लोग अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं.

शंकरा गांव में नहीं मूलभूत सुविधाएं, 2013 से बंद है स्कूल
भगवान बिरसा मुंडा जिस शंकरा गांव में अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाते थे, आज वह गांव वीरान सा है. अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. यहां एक उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय था. यह विद्यालय वर्ष 2013 से बंद है. स्कूल के बंद होने की वजह यह है कि यहां के शिक्षक को नक्सली गतिविधि में शामिल होने का आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया. तब से स्कूल शिक्षकविहीन है. बच्चों की पढ़ाई नहीं हो रही है. 3 किलोमीटर दूर कोटागाड़ा में एक स्कूल है, जहां कोई जाना नहीं चाहता. दिन भर बच्चे मवेशी चराते हैं.

Birsa Munda News: शंकरा में नहीं आते सरकारी पदाधिकारी
अति नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण शंकरा गांव में कोई सरकारी अफसर या जनप्रतिनिधि नहीं आते. इसलिए गांव का विकास नहीं हो पा रहा. ग्रामीणों की मानें, तो पंचायत के मुखिया भी कभी-कभी ही गांव आते हैं. गांव में एक भी सरकारी योजना नहीं चल रही. शंकरा के लोग आज भी चुआं खोदकर पानी पीते हैं. नलकूप खराब है. गांव में लगी सोलर जलमीनार खराब है. आंगनबाड़ी भवनहीन है. सोलर आधारित बिजली की व्यवस्था 5 साल पहले की गयी थी. एक साल बाद वह भी खराब हो गयी.
पिछले 4 साल से गांव में बिजली नहीं है. स्वास्थ्य केंद्र नहीं होने के कारण बीमार पड़ने वाले लोगों को इलाज के लिए 40 किलोमीटर दूर चक्रधरपुर जाना पड़ता है. गांव में किसी को अब तक प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ नहीं मिला. बकरी शेड भी नहीं बना है. मिट्टी के घर में लोग रह रहे हैं. टेबो-शंकरा सड़क निर्माण अभी शुरू हुआ है.

विधायक सुखराम ने लगवायी बिरसा मुंडा की प्रतिमा
चक्रधरपुर के विधायक सुखराम उरांव ने गांव में बिरसा मुंडा की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करवायी है. वर्ष 2021 में यह प्रतिमा गांव में लगायी गयी थी. इसी प्रतिमा स्थल पास हर साल 2 फरवरी को बिरसा गिरफ्तारी दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन होता है. इसमें ग्रामीण मेला लगाते हैं. यहां भगवान बिरसा मुंडा की पूजा-अर्चना की जाती है.

शंकरा को आदर्श ग्राम बनायें : ग्रामीण मुंडा
शंकरा गांव के ग्रामीण मुंडा सुखराम मुंडा ने कहा है कि शंकरा एक ऐतिहासिक गांव है. इसे आदर्श ग्राम का दर्जा दिया जाना चाहिए. पेयजल, सड़क, प्रारंभिक शिक्षा, स्वास्थ्य, सामुदायिक भवन और आवास योजना का लाभ अविलंब उपलब्ध कराया जाना चाहिए. विधवा, विकलांग और बुजुर्ग बड़ी संख्या में इस गांव में हैं. उन्हें पेंशन तक नहीं मिलती. गांव में कैंप लगाकर गांव वालों की सुध ली जानी चाहिए. सबसे पहले बंद स्कूल को खोला जाये.
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