शीन अनवर, चक्रधरपुर
रमजान के महीने में एतकाफ करने से लोगों के ऊपर अल्लाह की रहमत बरसती है. ऐसा कहा जाता है कि रमजान के आखिरी 10 दिनों में कुछ लोग सब कुछ छोड़कर अल्लाह की इबादत करते हैं और दुआ मांगते हैं, तो उस समय की सारी दुआएं जल्द कबूल होती हैं. रमजान के अंतिम 10 दिन दुनिया और परिवार वालों से अलग मस्जिद में रहकर अल्लाह की इबादत करने को एतकाफ कहते हैं. पुरुष अपने मुहल्ले की मस्जिद में और महिलाएं अपने घर के किसी एक कोने में एतकाफ कर सकती हैं. इस वर्ष 21 मार्च की शाम से एतकाफ शुरू हो रहा है. एतकाफ करने वाले को अरबी में मोतकीफ कहते हैं. मस्जिद में अल्लाह के लिए नीयत के साथ ठहरना एतकाफ है. इसके लिए मुसलमानों का समझदार, अकलमंद और औरतों का पाक होना शर्त है. बालिग (व्यस्क) होना शर्त नहीं है. तमीज रखने वाला नाबालिग भी एतकाफ कर सकता है. रमजान में मुसलमान नमाज और रोजे रखकर अल्लाह से सलामती और रहमत की दुआएं मांगते हैं. ‘एतकाफ’ रमजान महीने के नफ्ली यानी स्वैच्छिक इबादतों में एक होता है. इसमें मुसलमान दुनियादारी को छोड़कर 10 दिनों के लिए पूरी तरह इबादत में मशरूफ हो जाते हैं.एतकाफ की बड़ी अहमियत है
एतकाफ का शाब्दिक अर्थ है धरना मारना. मोतकीफ (एतकाफ करने वाला) की मिसाल उस शख्स जैसा है जो अल्लाह के दर पर आ पड़ा हो. यह कह रहा हो कि या अल्लाह जब तक तू मेरी मगफिरत नहीं फरमायेगा, मैं यहां से नहीं हिलूंगा. मुहल्ले की मस्जिद में अगर एक मोतकीफ भी एतकाफ करता है, तो पूरे मुहल्ले वालों को फैज मिलता है. यदि कोई एतकाफ नहीं करता है तो पूरे मुहल्ले वाले गुनाहगार माने जाते हैं. इसलिए एतकाफ की बड़ी अहमियत है.
जब भी मस्जिद में दाखिल हों एतकाफ की नीयत कर लें
एतकाफ की तीन किस्में हैं. एतकाफ-ए-वाजिब, एतकाफ-ए-सुन्नत व एतकाफ-ए-नफिल. मोतकीफ अगर जुबान से कहें कि मैं इतने दिन के लिए एतकाफ कर रहा हूं तो वह जितने दिन कहेगा उतने दिन एतकाफ करना वाजिब हो जायेगा. एतकाफ में जरूरी है कि रमजान की बीसवीं तारीख को सूरज डूबने से पहले मस्जिद के अंदर दाखिल हो जायें और 29 या 30 का चांद देखकर ही बाहर निकलें. मोतकीफ नीयत में यह कहें कि मैं अल्लाह की रजा के लिए रमजानुल मुबारक के आखिरी अशरह के सुन्नत-ए-एतकाफ की नीयत करता हूं. नफिल एतकाफ के लिए रोजा या वक्त की कैद नहीं है. जब भी मस्जिद में दाखिल हों एतकाफ की नीयत कर लें. जब तक मस्जिद में रहेंगे सवाब मिलता रहेगा. जब मस्जिद से बाहर निकलेगा एतकाफ खत्म हो जायेगा. एतकाफ करने वालों को दो हज व दो उमरा के बराबर सवाब मिलता है. एतकाफ करने वाले मस्जिद से उन्हीं कामों के लिए बाहर निकल सकते हैं, जिसकी इजाजत है. एतकाफ करने वाले जनाजा की नमाज में भी शामिल नहीं हो सकते हैं. बीमार लोगों को देख नहीं सकते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है