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Rourkela News: लहुणीपाड़ा ब्लॉक की भुतुड़ा पंचायत में एक सप्ताह में दूसरे मरीज को खाट पर लादकर पहुंचाया गया एंबुलेंस तक

Rourkela News: सुंदरगढ़ जिले के कई गांवों तक जाने के लिए सड़क नहीं है. खाट या फिर स्ट्रेचर पर मरीज को एंबुलेंस तक पहुंचाना पड़ता है.

Rourkela News: लहुणीपाड़ा ब्लॉक की भुतुड़ा पंचायत तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. लोग जंगल, पहाड़ी और पथरीले रास्तों से लगातार जूझते रहते हैं. बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं भत्ता लेने के लिए बाटगां से भुतुड़ा पंचायत कार्यालय तक पहुंचने के लिए दो-दो दिन पहाड़ी, जंगल और पथरीले रास्तों पर जान की बाजी लगाकर पैदल चलकर पहुंचते हैं.

2020-21 में सड़क निर्माण को 5.72 करोड़ किये गये थे स्वीकृत

अब इस बरसात के मौसम में नयी तस्वीर सामने आयी है. बाटगां में शुक्रवार को एक मरीज को खटिया पर लादकर एंबुलेंस तक लाना पड़ा, क्योंकि गांव तक सड़क नहीं जाती. यह कोई नयी बात नहीं है. इसी सप्ताह एक और मरीज को स्ट्रेचर पर लादकर एंबुलेंस तक पहुंचाना पड़ा था. स्थानीय लोगों के मुताबिक, इस गांव में किसी भी बुज़ुर्ग या गर्भवती महिला के लिए डॉक्टर के पास जाना नामुमकिन होता जा रहा है. सरकार ने 2020-21 में इस गांव तक सड़क निर्माण के लिए जिला खनिज निधि से 5.72 करोड़ रुपये स्वीकृत किये थे. यह सड़क पालकुदर से बाटगां तक जानी थी, लेकिन सरकार बदलने के बाद उक्त सड़क पर काम कर रहे ठेकेदार को निलंबित कर दिया गया. जिससे यह सड़क अब एक आपदा बन गयी है. यदि गांव में कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ता है, तो ग्रामीण उसे स्ट्रेचर पर गांव से थोड़ी दूरी तक ले जाते हैं. मोटरसाइकिल से पंचायत कार्यालय पहुंचने के बाद मरीज को एंबुलेंस से 50 किलोमीटर दूर लहुणीपाड़ा स्वास्थ्य केंद्र में स्थानांतरित कर दिया जाता है.

खनन कंपनियां मालामाल, आम जनता परेशान

शाम या रात में डर और भी बढ़ जाता है, क्योंकि पूरे गांव में बिजली नहीं है. कुछ दिन पहले, ग्रामीणों ने अपने क्षेत्र के लिए एक सड़क की मांग की थी, लेकिन प्रशासन से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. इस क्षेत्र में एक कुर्मित्रा पहाड़ी और ओएमसी द्वारा संचालित एक कच्ची खदान है, लेकिन दुख की बात यह है कि गरीब आदिवासियों की शिकायतों पर किसी भी सरकारी अधिकारी या खनन अधिकारी द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर खनन कंपनियां मालामाल हो रही हैं, जबकि आम लोग परेशान हैं.

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