Agra News: देश में जब-जब धर्म और आस्था की बात होती है, तब कई मिसालें सामने आती हैं जो एकता, श्रद्धा और समर्पण को दर्शाती हैं. आगरा के दो मुस्लिम युवक साजिद खान और सनी खान ने भी एक ऐसी ही मिसाल कायम की है. दोनों ने 151 किलो गंगाजल की कांवड़ उठाकर भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति को सार्वजनिक किया है. इस कदम ने यह साबित कर दिया कि सच्ची श्रद्धा का कोई धर्म नहीं होता – उसका सिर्फ एक ही मार्ग होता है, और वह है ‘आस्था’ का.
गंगा घाट से शुरू की यात्रा, 151 किलो गंगाजल लेकर करेंगे शिव का अभिषेक
साजिद और सनी, बाह क्षेत्र के गांव कृषा के निवासी हैं. वे पहली बार कांवड़ यात्रा पर निकले हैं और बेहद उत्साहित हैं. उन्होंने बताया कि वे लंबे समय से गांव के लोगों को कांवड़ लेकर जाते हुए देखते आ रहे थे, और उनके मन में भी यह इच्छा बार-बार उमड़ती रही. इस बार उन्होंने तय किया कि वे खुद कांवड़ उठाएंगे और शिव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के सोरों क्षेत्र स्थित लहरा घाट से गंगाजल भरकर यात्रा शुरू की. उनका लक्ष्य बटेश्वर धाम है, जहां 14 जुलाई को वे भगवान शिव का जलाभिषेक करेंगे. 151 किलो की भारी कांवड़ उठाने के बावजूद उनका जोश कम नहीं हुआ. वे श्रद्धा और ऊर्जा से भरे हुए हैं.
“माता-पिता की इच्छा थी, हम पूरा कर रहे हैं उनका सपना”
दोनों युवक भावुक होकर बताते हैं कि उनके माता-पिता वर्षों से चाहते थे कि उनके बेटे भी एक बार भगवान शिव की कांवड़ यात्रा करें. जब उन्होंने इस बार अपनी इच्छा जाहिर की, तो माता-पिता की आंखों में चमक आ गई. उन्होंने पूरे दिल से साथ दिया और यात्रा की तैयारी में भी मदद की. परिवार ने उनका हौसला बढ़ाया, और फिर 10 लोगों का एक जत्था तैयार हुआ, जिसमें रिश्तेदार और दोस्त भी शामिल हुए. सभी ने गंगा घाट पर विधिपूर्वक पूजा की और मंत्रोच्चार के बीच पुरोहितों ने उन्हें आशीर्वाद देकर विदा किया. साजिद और सनी ने यह भी संकल्प लिया है कि वे यात्रा पूरी होने के बाद अपने माता-पिता की सेवा को प्राथमिकता देंगे.
“हम पहले सनातनी हैं, मुस्लिम बाद में” – आस्था की मिसाल बने साजिद-सनी
जब दोनों से यह पूछा गया कि वे मुस्लिम होते हुए भी कांवड़ यात्रा पर क्यों निकले हैं, तो साजिद बिना झिझक बोले – “हम पहले सनातनी हैं, मुस्लिम बाद में. भगवान शिव की भक्ति करना हमारे लिए गर्व की बात है. उन्होंने सबका कल्याण किया है, हम तो सिर्फ श्रद्धा व्यक्त कर रहे हैं.” इस कथन से स्पष्ट है कि धर्म की सीमाएं तब टूटती हैं, जब मन में आस्था सच्ची होती है. सनी ने भी कहा कि आस्था जाति-धर्म नहीं देखती, वह तो भावनाओं का विषय है. यह बात उनके जत्थे के अन्य सदस्य भी दोहराते हैं, और कहते हैं कि गांव में सभी धर्मों के लोग इस कार्य के लिए उन्हें सम्मान की दृष्टि से देख रहे हैं.
थकान नहीं, श्रद्धा का जोश है
इतनी भारी कांवड़ उठाने और लंबी दूरी तय करने के बावजूद दोनों युवक थके नहीं हैं. पूछने पर बोले – “जो कांवड़ उठाता है, उसके अंदर खुद-ब-खुद ताकत आ जाती है. यह शक्ति भगवान शिव देते हैं.” वे हर कुछ किलोमीटर पर छोटा ब्रेक लेते हैं, लेकिन गंगाजल से भरी कांवड़ को जमीन पर नहीं रखते. बोले कि यह मां गंगा और भगवान शिव का प्रसाद है, इसे धरती पर नहीं रखना चाहिए. उनका कहना है कि यात्रा पूरी होने पर उन्हें जिस आत्मिक शांति और संतोष की अनुभूति होगी, वह किसी भी दुनिया की थकान से बढ़कर है. इस जोश और भक्ति से उनकी पूरी यात्रा प्रेरणास्पद बन गई है.