Meat Factory Accident: अलीगढ़ की तालसपुर स्थित एचएमए एग्रो इंडस्ट्रीज लिमिटेड में दो मजदूरों की दर्दनाक मौत ने मजदूर सुरक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. रात की पाली में जब फैक्टरी के भीतर करीब 50 मजदूर सफाई कार्य में लगे थे, तब अचानक खून एकत्र करने वाले गड्ढेनुमा टैंक में गिरने से दो मजदूरों इमरान और आसिफ की मौत हो गई. हादसे के तुरंत बाद सहायता करने की बजाय ठेकेदार ने मजदूरों को रोके रखा, मोबाइल छीन लिए और मामले को छिपाने की कोशिश की. इन दो जानों की कीमत लापरवाही और जिम्मेदारों की गैर-मौजूदगी ने चुकाई.
तीन बजे हादसा, छह बजे मिली सूचना
हादसा रात करीब तीन बजे हुआ लेकिन मृतकों के परिजनों और पुलिस को इस दर्दनाक घटना की सूचना तीन घंटे बाद, यानी शाम छह बजे दी गई. इस देरी के कारण न सिर्फ समय पर मेडिकल सहायता नहीं मिल सकी, बल्कि परिजनों को भी अंतिम क्षणों में अपनों को देखने का अवसर नहीं मिला. ऐसे समय में जब हर सेकंड कीमती होता है, फैक्टरी प्रशासन और ठेकेदार की यह चुप्पी बेहद अमानवीय साबित हुई.
छीने गए मजदूरों के मोबाइल, अस्पताल में शव छोड़कर भागे लोग
जिस वक्त मजदूरों को यह हादसा हुआ, उसी समय फैक्टरी में मौजूद ठेकेदार ने सभी मजदूरों को वहीं रोके रखा और उनके मोबाइल जबरन छीन लिए. किसी को बाहर जाने या किसी को सूचना देने की अनुमति नहीं दी गई. इसके बाद दो घंटे बाद जब शवों को अस्पताल भेजा गया तो उन्हें वहां छोड़ने वाले लोग शवों को वहीं लावारिस हालत में छोड़कर भाग गए. यह रवैया न सिर्फ अमानवीय था, बल्कि इसे अपराध की श्रेणी में देखा जा सकता है.
परिजनों का आरोप: धमकी देकर बुलाया था फैक्टरी
मृतक इमरान की पत्नी खुशबू और आसिफ की पत्नी बेबी दोनों बेहद टूट चुकी हैं. खुशबू का कहना है कि इमरान को उसने रात में मना किया था, क्योंकि वह बीमार था. लेकिन ठेकेदार ने धमकी दी कि अगर वह नहीं आया तो नौकरी छिन जाएगी और आगे से कोई काम नहीं मिलेगा. इसी डर और मजबूरी में वह फैक्टरी चला गया, लेकिन फिर वापस नहीं आया. बेबी जो गर्भवती है, अपने पति की मौत से सदमे में है. दोनों महिलाओं का रो-रोकर बुरा हाल है और उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे.
सपा नेताओं ने उठाया सवाल, प्रबंधन ने दिए चार-चार लाख
घटना की खबर फैलते ही समाजवादी पार्टी के जिला महासचिव मनोज यादव, महानगर अध्यक्ष अब्दुल हमीद घोषी, और अन्य पार्षद मौके पर पहुंचे. उन्होंने मृतकों के परिजनों के साथ मिलकर फैक्टरी प्रबंधन से मुआवजे की मांग की. काफी बहस और हंगामे के बाद फैक्टरी प्रबंधन की ओर से दोनों मृतकों के परिवार को चार-चार लाख रुपये नकद सहायता, अंतिम संस्कार में मदद और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का आश्वासन दिया गया. मजबूरी में परिजनों ने यह सुलहनामा स्वीकार किया और बिना किसी कानूनी कार्रवाई के शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया.
जांच टीम पहुंची, नहीं मिला चश्मदीद या सीसीटीवी
हादसे के अगले दिन जिला प्रशासन की टीम फैक्टरी पहुंची. जांच दल में सिटी मजिस्ट्रेट, सीओ, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, फायर सर्विस और पशुपालन विभाग के अधिकारी शामिल थे. टीम ने करीब चार घंटे जांच की लेकिन न तो कोई प्रत्यक्षदर्शी मिला, न ही कोई सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध हो सका. इससे यह संदेह और गहरा गया कि क्या हादसे को छिपाने की कोशिश की गई है.
खून युक्त पानी से दम घुटा, पोस्टमार्टम में खुलासा
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ कि मजदूरों की मौत डूबने से नहीं बल्कि टैंक के खून युक्त जहरीले पानी के सांस नली और पेट में पहुंचने से हुई. शरीर में घातक जैविक तत्व जाने के कारण दोनों की सांसें रुक गईं और दर्दनाक तरीके से उनकी मृत्यु हुई. यह खुलासा यह भी दर्शाता है कि फैक्टरी में सुरक्षा के कोई उपाय नहीं थे और कर्मचारियों की जान की कोई कीमत नहीं समझी जा रही थी.
रात में कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं था, रिपोर्ट डीएम को भेजी गई
प्रशासन की जांच में यह सामने आया कि दुर्घटना के वक्त फैक्टरी में कोई प्रशिक्षित या जवाबदेह अधिकारी मौजूद नहीं था. ऐसे गंभीर कामों में अधिकारियों की अनुपस्थिति न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह जानलेवा भी हो सकता है. सिटी एडीएम अमित कुमार भट्ट ने बताया कि इस लापरवाही पर कारखाना और श्रम विभाग की संयुक्त आंतरिक जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी. फिलहाल रिपोर्ट डीएम को भेजी जा चुकी है.
एक साल से बंद फैक्टरी कोर्ट के आदेश पर शुरू हुई थी
गौरतलब है कि यह मीट फैक्टरी पिछले साल प्रदूषण के नियमों के उल्लंघन पर बंद कर दी गई थी. इसके बाद फैक्टरी ने उच्च न्यायालय से अनुमति लेकर नियमों का पालन करते हुए दोबारा संचालन शुरू किया. फैक्टरी को दोबारा चालू हुए मात्र तीन महीने हुए थे और इतने कम समय में ही यह भीषण हादसा सामने आ गया.
बिलखती पत्नियां, टूटे सपने
मृतक इमरान और आसिफ के परिवार अब बेसहारा हो गए हैं. इमरान का छोटा बच्चा अभी ठीक से बोल भी नहीं पाता और उसके सिर से पिता का साया उठ गया. वहीं गर्भवती बेबी को यह तक नहीं मालूम कि उसका बच्चा अब पिता का चेहरा कभी नहीं देख पाएगा. परिजनों का कहना है कि ठेकेदार ने सिर्फ लालच और डर का सहारा लेकर उन्हें मौत की ओर धकेला और फिर उन्हें यूं ही छोड़ दिया. फैक्टरी प्रबंधन की चुप्पी और प्रशासन की सुस्ती ने इन परिवारों को न केवल गहरा दुख दिया, बल्कि यह भी अहसास कराया कि गरीब की जान की कोई कीमत नहीं होती.