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मायावती का सरकार पर विस्फोटक हमला, रेल किराया बढ़ाकर गरीबों को लूटा जा रहा है!

Lucknow News: बसपा प्रमुख मायावती ने रेल किराया बढ़ोतरी को गरीब विरोधी बताते हुए केंद्र सरकार पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि यह फैसला व्यावसायिक है, लोकहित में नहीं. गरीब पहले से महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं, सरकार अमीरों की चिंता कर रही है.

Lucknow News: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती ने केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए रेल किराए में बढ़ोतरी के फैसले को गरीब विरोधी करार देते हुए कड़ी आलोचना की है. उन्होंने केंद्र से इस निर्णय पर पुनर्विचार करने की अपील की है. साथ ही यह भी कहा कि सरकार आम जनता की परेशानी को दरकिनार कर अमीरों के हित में काम कर रही है.

केंद्र का फैसला व्यावसायिक, जनहित में नहीं: मायावती

मंगलवार को लखनऊ स्थित बसपा मुख्यालय में मीडिया को संबोधित करते हुए मायावती ने कहा कि रेल किराए में बढ़ोतरी जनहित में नहीं है, बल्कि यह पूरी तरह से व्यावसायिक फैसला है. उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह जीएसटी की ही तरह अब रेल किराया बढ़ाकर आम जनता का शोषण कर रही है. उनका कहना था कि इस फैसले से सबसे अधिक असर उन गरीबों पर पड़ेगा जो रोजगार की तलाश में या रोजी-रोटी के लिए रेल से सफर करते हैं.

रोजगार के लिए घर छोड़ रहे लोग, रेल ही एकमात्र सहारा

मायावती ने कहा कि आज के हालात में करोड़ों लोग पर्यटन या मौज-मस्ती के लिए नहीं, बल्कि रोजगार की मजबूरी में रेल यात्रा कर रहे हैं. ऐसे में किराया बढ़ाकर सरकार उनकी मुश्किलें और बढ़ा रही है. गरीब लोग अपनी छोटी सी आमदनी में से भी रेल का किराया चुकाते हैं और इसका सीधा असर उनके जीवन पर पड़ेगा.

केंद्र को गरीबों की चिंता करनी चाहिए, न कि चंद अमीरों की

बसपा प्रमुख ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह चंद अमीरों की बजाय देश के गरीबों की चिंता करे. उन्होंने कहा कि गरीबों की अनदेखी करके कोई भी सरकार लंबे समय तक सत्ता में नहीं टिक सकती. अगर सरकार को देश की असली तस्वीर देखनी है तो उसे यह समझना होगा कि 95 करोड़ लोग आज सरकारी योजनाओं पर निर्भर हैं.

2016 में 22% थे गरीब, अब 64.3% हो गए: मायावती का आंकड़ों से हमला

मायावती ने बताया कि 2016 में देश की आबादी का केवल 22 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे था, लेकिन आज यह संख्या बढ़कर 64.3 प्रतिशत यानी लगभग 95 करोड़ हो गई है. उन्होंने यह सवाल उठाया कि जब देश में आर्थिक प्रगति का दावा किया जा रहा है, तो गरीबों की संख्या कैसे इतनी तेज़ी से बढ़ गई?

दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ियों पर बुलडोज़र क्यों?

मायावती ने दिल्ली सरकार को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि न्यायालय के आदेश की आड़ में सरकार प्रदूषण के नाम पर गरीबों की झुग्गियां उजाड़ रही है. उन्होंने सवाल उठाया कि जब झुग्गियों में रहने वालों को हटाया जाता है, तो उन्हें बसाने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की जाती?

उन्होंने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के अन्य विकल्पों पर सरकार को काम करना चाहिए. गरीबों के सिर से छत छीनना किसी भी सूरत में मानवीय नहीं कहा जा सकता. सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि संविधान सभी नागरिकों को जीने और रहने का अधिकार देता है.

बिजली संकट पर भी साधा निशाना, निजीकरण का विरोध

बसपा प्रमुख ने देश में बिजली संकट को लेकर भी केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया. उन्होंने कहा कि सरकार बिजली की समस्या का समाधान नहीं कर पा रही है और इसके बजाय निजीकरण को बढ़ावा दे रही है. दिल्ली, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली का निजीकरण जनता के हित में नहीं है.

उन्होंने यह भी सलाह दी कि सरकार बिजली संकट का समाधान करने के लिए सार्वजनिक विकल्पों पर विचार करे, न कि निजी कंपनियों के हवाले सारी व्यवस्था सौंप दे.

नीतिगत खामियों के चलते बिगड़ रहे हालात

मायावती ने कहा कि देश की मौजूदा नीतियां जनविरोधी हैं और उनके कारण ही महंगाई, बेरोजगारी, बिजली संकट, और आवास की समस्या जैसी चुनौतियां खड़ी हो रही हैं. उन्होंने केंद्र सरकार से मांग की कि वह अपनी नीतियों की समीक्षा करे और गरीबों, मजदूरों व मध्यम वर्ग के हित में निर्णय ले.

गरीबों की आवाज़ बनकर उभरीं मायावती

मायावती का यह बयान साफ संकेत देता है कि आगामी चुनावी माहौल में बसपा गरीब, मजदूर और निम्न आय वर्ग के लोगों की आवाज़ बनना चाहती है. रेल किराया, महंगाई और झुग्गियों की समस्या जैसे मुद्दों को उठाकर उन्होंने यह दर्शाया है कि उनकी पार्टी जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर सक्रिय है.

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