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बदलाव और विकास के मामले में बुरे दौर से गुजर रहा है हावड़ा

राज्य में लोकसभा चुनाव के चार चरण में 18 सीटों पर मतदान प्रक्रिया पूरा हो चुका है. अभी बाकी तीन चरणों में 24 सीटों पर मतदान अभी बाकी है.

कुंदन झा, हावड़ा

राज्य में लोकसभा चुनाव के चार चरण में 18 सीटों पर मतदान प्रक्रिया पूरा हो चुका है. अभी बाकी तीन चरणों में 24 सीटों पर मतदान अभी बाकी है. राज्य में पांचवें चरण का मतदान 20 मई अर्थात सोमवार को होने जा रहा है और इस दिन राज्य के तीन जिलों के सात लोकसभा सीटों पर मतदान होना है. इसमें हुगली जिले के आरामबाग, श्रीरामपुर व हुगली और उत्तर 24 परगना जिले के बैरक पुर व बनगांव सीट पर वोट पड़ेंगे. इसके अलावा हावड़ा जिले में हावड़ा व उलुबेरिया लोकसभा सीट पर भी मतदान होना है.

अगर बात हावड़ा की करें, तो यह देश के पूर्वी क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण शहर है. इसका इतिहास 500 करीब वर्ष पुराना है. कहते हैं कि कोलकाता से भी पुराना है. हावड़ा सदर संसदीय क्षेत्र में स्थित हावड़ा रेलवे स्टेशन न सिर्फ बंगाल, बल्कि देश के अहम रेलवे स्टेशनों में से एक है. यही कारण है कि इसे पूर्वी भारत का प्रवेश द्वार कहा जाता है. एक जमाने में हावड़ा शहर को शेफील्ड के नाम से जाना जाता था, लेकिन कभी औद्योगिक विकास और जरी उद्योग के लिए देश भर में मशहूर हावड़ा अब बुरे दौर से गुजर रहा है. यहां के अधिकतर कल-कारखाने बंद हो चुके हैं. जरी उद्योग का भी यही हाल है. यहां का पांचला जरी उद्योग का हब था, लेकिन पिछले 10 वर्षों में यहां के जरी कारीगर गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान की दिशा में पलायन कर चुके हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों सांकराइल में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि हावड़ा एक समय में औद्योगिक हब था. उन्होंने तब यहां की स्थानीय सरकार ने पर हमले बोलते कहा कि इसने ही इसे तबाह कर दिया.

1998 में पहली बार तृणमूल ने जीती थी हावड़ा सीट

हावड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत बाली, उत्तर हावड़ा, मध्य हावड़ा, शिवपुर, दक्षिण हावड़ा, सांकराइल और पांचला विधानसभा सीटें हैं. वर्ष 1998 में इस लोकसभा सीट से पहली बार तृणमूल कांग्रेस को जीत मिली थी. यह वह दौर था, जब राज्य में वाममोर्चा की सरकार थी और कांग्रेस से नाता तोड़ कर तृणमूल का अलग गठन हुआ था. पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस सीट से कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के पूर्व चेयरमैन डॉ विक्रम सरकार को उम्मीदवार बनाया था. माकपा उम्मीदवार के साथ कांटे के इस मुकाबले में डॉ सरकार ने जीत हासिल की, लेकिन महज एक साल बाद ही केंद्र की सरकार गिर जाने की वजह से वर्ष 1999 में फिर से चुनाव हुआ, जब यह सीट वाम मोर्चा की झोली में चली गयी. हावड़ा के तत्कालीन मेयर स्वदेश चक्रवर्ती यहां से जीत कर पहली बार संसद पहुंचे.

स्वदेश चक्रवर्ती वर्ष 2009 तक सांसद बने रहे. तब तक राज्य में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख विपक्षी पार्टी बनकर तैयार हो चुकी थी. 15वीं लोकसभा चुनाव का बिगुल बजा. इस बार इस सीट से अंबिका बनर्जी को मैदान में उतारा गया और उन्होंने जीत का परचम लहराया. वह पांच वर्षों तक सांसद रहे, लेकिन वर्ष 2013 में उनका निधन हो गया. वह कैंसर से पीड़ित थे. इसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूर्व भारतीय फुटबॉलर प्रसून बनर्जी को इस सीट से टिकट दिया. खेल की मैदान से राजनीति की दुनिया में आने वाले श्री बनर्जी ने भारी मतों से पहली बार जीत हासिल की और उनके जीत का सिलसिला लगातार जारी रहा और वह इस सीट से हैट्रिक कर चुके हैं. चौथी बार वह इस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

साढ़े पांच वर्षों से नहीं हुआ है हावड़ा निगम चुनाव

लोकसभा चुनाव समय पर हो रहा है, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि साढ़े पांच साल से अधिक का समय बीत गया और हावड़ा नगर निगम का चुनाव नहीं हुआ है. वर्ष 2018, 10 दिसंबर को बोर्ड की मियाद खत्म हुई थी. वर्ष 2019 में चुनाव होने की बात थी, लेकिन राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच चली खींचतान को लेकर चुनाव टलता गया. सीएम ने निगम का कामकाज संभालने के लिए प्रशासनिक बोर्ड का गठन कर दिया.

हावड़ा संसदीय क्षेत्र से तीन उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला

हावड़ा संसदीय क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस ने जहां प्रसून बनर्जी पर ही विश्वास जताया है, वहीं भाजपा और माकपा ने नये चेहरों को मैदान में उतार दिया. विधानसभा चुनाव के ठीक पहले तृणमूल का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले हावड़ा नगर निगम के पूर्व मेयर डॉ रथीन चक्रवर्ती इस सीट से भाजपा के और कांग्रेस समर्थित माकपा ने हाइकोर्ट के वकील सब्यसाची चटर्जी को प्रत्याशी बनाया है. तीनों प्रत्याशी अपनी जीत हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

सड़क, पेयजल और स्वास्थ्य सेवा है चुनावी मुद्दा

कोलकाता शहर से सटे होने के बावजूद हावड़ा शहर की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. वर्ष 2011 में सरकार बदली. लोगों को उम्मीद थी कि अब हावड़ा की स्थिति में सुधार होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पेयजल, सड़कों की बदहाली, जल-निकासी और स्वास्थ्य सेवा की स्थिति जस की तस बनी हुई है. वहीं, वर्ष 2013 में हावड़ा नगर निगम में पहली बार तृणमूल कांग्रेस के बोर्ड का गठन हुआ, लेकिन अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में शहरवासियों की उम्मीदों पर इस बोर्ड ने पानी फेर दिया. गर्मी के मौसम में पेयजल की किल्लत अभी भी बरकरार है. बारिश में जल-जमाव की समस्या का निदान नहीं हुआ है. अवैध निर्माण में कोई रोक-टोक नहीं लगा, बल्कि तृणमूल कांग्रेस की बोर्ड ने अवैध निर्माण करने वाले प्रमोटरों से जुर्माना लेकर अवैध निर्माण को वैध बना दिया. स्वास्थ्य सेवा का यही हाल है. हावड़ा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले जिला अस्पताल, टीएल जायसवाल, दक्षिण हावड़ा अस्पताल सहित अन्य सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव अभी भी बनी हुई है. अस्पताल में बेडों की संख्या में कोई खास इजाफा नहीं हुआ है.

क्या कहते हैं प्रत्याशी

तृणमूल सांसद का हावड़ा से कोई लेना-देना नहीं है. वह सिर्फ कार्यक्रम में फोटो खिंचवाने और चुनाव के पहले लोगों से लोगों से वोट मांगने कोलकाता से हावड़ा आते हैं. मैं यहां का स्थानीय हूं. मेरा जन्म स्थान हावड़ा है. हावड़ा के लोगों से जुड़ा हुआ हूं और यहां की समस्याओं को जानता हूं. जीत हासिल करने के बाद इस शहर की पहचान को वापस लाने की पूरी कोशिश करूंगा.

डॉ रथीन चक्रवर्ती, भाजपा प्रत्याशी

हावड़ा की जनता ने मुझे तीन बार विजयी बनाकर संसद भवन भेजा है. उन्होंने इसलिए मुझ पर विश्वास जताया है कि मैं हमेशा लोगों के बीच रहता हूं. फोटो खिंचवाने का मुझे शौक नहीं है. मैं अर्जुन पुरस्कार विजेता रहा हूं. लोग मुझे जानते हैं. चौथी बार भी मुझे जनता का आर्शीवाद मिलेगा और चौथी बार सांसद बनूंगा. भाजपा प्रत्याशी डॉ चक्रवर्ती ने बतौर मेयर रहते हुए हावड़ा नगर निगम को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया.

प्रसून बनर्जी, तृणमूल प्रत्याशी

इस चुनाव में हमलोगों यह उम्मीद कर रहे हैं कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस को वोट देने वाले अब वाममोर्चा को वोट देंगे. इसका कारण यह है कि दोनों दलों ने लोगों को ठगा है और बेवकूफ बनाया है. दोनों दलों को लेकर जनता में बेहद नाराजगी है. इसलिए इस बार बेहतर परिणाम की उम्मीद है. जनता फिर से वाममोर्चा पर भरोसा जतायेगी.

सब्यसाची चटर्जी, माकपा प्रत्याशी

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