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Animal Movie Review: बदले की इस कहानी में रणबीर कपूर का शानदार परफॉर्मेंस, पढ़ें पूरा रिव्यू यहां

फ़िल्म की कहानी रणविजय सिंह (रणबीर कपूर) हैं, जिसके जीवन का एक ही लक्ष्य है. अपने पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) से वेलीडेशन पाना जो उसे कभी नहीं मिला है. उसके पिता भारत के सबसे अमीर आदमी हैं.

फ़िल्म –  एनिमल

निर्माता- टी सीरीज

निर्देशक-संदीप वांगा रेड्डी

कलाकार- रणबीर कपूर, अनिल कपूर, रश्मिका मन्दाना,बॉबी देओल

प्लेटफार्म- सिनेमाघर

रेटिंग-तीन

कबीर सिंह फ़ेम निर्देशक संदीप वांगा रेड्डी की आज रिलीज़ हुई फ़िल्म एनिमल भी जुनून की कहानी है, लेकिन अपनी प्रेमिका के लिए नहीं बल्कि यह एक बेटे का अपने पिता के लिए जुनून को दर्शाती है. जिसे पर्दे पर ज़बरदस्त खून, हिंसा और शोर के साथ दिखाया गया है. फ़िल्म का स्टाइलिश ट्रीटमेंट और रणबीर कपूर का शानदार अभिनय इस हिंसक मसाला को शुरू से अंत तक बांधे रखते हैं, लेकिन उनके किरदार का अल्फ़ा मेल यानी पुरुषवादी व्यक्तित्व इस फ़िल्म की कहानी में कई ख़ामियां भी जोड़ गया है ,जिस वजह से यह फ़िल्म हर वर्ग के लिए नहीं रह जाती है.

फ़िल्म की कहानी

फ़िल्म की कहानी रणविजय सिंह (रणबीर कपूर) हैं, जिसके जीवन का एक ही लक्ष्य है. अपने पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) से वेलीडेशन पाना जो उसे कभी नहीं मिला है. उसके पिता भारत के सबसे अमीर आदमी हैं इसलिए वह बहुत बिजी होने के साथ -साथ बहुत दुश्मनों से भी घिरे हैं. दुश्मन उसके अपने भी है, पिता पर जानलेवा हमला भी हो जाता है. ऐसे में  बेटा रणविजय अपने पिता की जान के लिए एनिमल बन जाता है. जिसके लिये किसी की भी जान लेना गाजर मूली काटने से भी आसान है. फ़िल्म की आगे की कहानी इसी खूनी को एक्स्प्लोर करती है.

फ़िल्म की खूबियां और खामियां

बुनियादी तौर पर अमीर पिता-पुत्र की पुरानी कहानी जैसी ही है, जैसे ९० के दशक में होता था. पिता पुत्र का कड़वाहट से भरा रिश्ता है. दुश्मनों से खतरा और बदला भी कहानी की पैकेजिंग में है. बस उसे स्टाइलिश तरीके से एनिमल में प्रस्तुत किया गया है. फ़िल्म का पहला भाग दमदार है. साउथ के निर्देशक की इस फ़िल्म में पंजाब और महाराष्ट्र की भी चमक दिखती है. ख़ामियों की बात करें तो सेकेंड हाफ में  कहानी स्लो हो गई है. इंटरवल में जिस पावरफुल एक्शन सीक्वेंस के साथ ख़त्म हुआ था. उस लेवल का एक्शन सेकेंड हाफ में मिसिंग है. तीन घंटे बीस मिनट की इस फ़िल्म की लंबाई को कम किया जा सकता था. डिमरी का ट्रैक ग़ैर ज़रूरी सा था. कहीं ना कहीं वह रणविजय के किरदार को कमज़ोर भी बनाता है. संदीप  वांगा  की पिछली फ़िल्म कबीर सिंह की तरह इसमें भी पितृसत्ता की धमक है. महिला पात्र इस बार भी कमज़ोर रह गये हैं. फ़िल्म में जमकर हिंसा दिखायी गई है लेकिन क़ानून का नाम तक नहीं लिया गया है. यह बात भी अखरती है ।गीत संगीत कहानी के साथ न्याय करता है. सबसे अच्छी बात है कि यह कहानी में बाधा नहीं बनते हैं बल्कि उसको गति देते हैं.

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रणबीर कपूर की यादगार परफॉरमेंस

यह फ़िल्म रणबीर कपूर की फ़िल्म है. उन्होंने फ़िल्म की कमजोर कहानी को अपने दमदार अभिनय से संभाला है. इस मसाला की वह सबसे बड़ी यूएसपी है. रोमांस और इमोशन  में उनको हम पहले भी देख चुके हैं लेकिन इस तरह का एक्शन करते हुए वह पहली बार नज़र आए है और. अनिल कपूर ने एक बार फिर से अभिनय के अपने अनुभव को बारीकी के साथ अपने किरदार में जोड़ा है. फ़िल्म में बॉबी देओल को कम स्क्रीन टाइम मिला है. यह बात अखरती भी है ,लेकिन उन्होंने कम स्क्रीन टाइम  में भी अपनी छाप छोड़ी है. इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. फ़िल्म में उनकी फिटनेस और फुर्ती प्रभावित करती है. रश्मिका  का किरदार कमज़ोर है ,लेकिन उन्होंने अभिनय अच्छा किया है. बाक़ी के किरदार भी अपनी अपनी भूमिकाओं में न्याय करते हैं.

Urmila Kori
Urmila Kori
I am an entertainment lifestyle journalist working for Prabhat Khabar for the last 12 years. Covering from live events to film press shows to taking interviews of celebrities and many more has been my forte. I am also doing a lot of feature-based stories on the industry on the basis of expert opinions from the insiders of the industry.

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