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चांदी की रोल्स रॉयस से चलते थे भरतपुर के महाराजा, शादी में रजवाड़ों को देते थे उधार

इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में भारत के राजा-रजवाड़ों की कारों को लेकर विस्तार से चर्चा की है. पटियाला महाराज ने जब फ्रांस से पहली मोटर कार डी डियानो बूतों को मंगाया, तो भारत के राजा-रजवाड़ों में लग्जरी मोटर कार मंगाने की होड़ मच गई.

Rolls Royce Car: अगर आप यह सोचते हैं कि आज 21वीं सदी में ही लोग ठसक के साथ लग्जरी कारों का इस्तेमाल करते हैं, तो आपका ऐसा सोचना गलत साबित हो सकता है. इसका कारण यह है कि भारत में लग्जरी कारों का इतिहास काफी पुराना है. 15 अगस्त 1947 को जब हमारा देश आजाद हुआ था, तब देश में करीब 550 से अधिक देसी रियासतें थीं. इन रियासतों पर राजा, महाराजा, नवाब और निजाम की हुकूमत चलती थी. इनके शौक भी बड़े अजब-गजब थे. ये सवारी के तौर पर हाथी-घोड़े, पालकी और बग्घी का इस्तेमाल तो करते ही थे, शानो-शौकत दिखाने के लिए ये विदेश से लग्जरी कार भी मंगाते थे. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत में 18वीं सदी के अंतिम दशक में ही मोटर कारों ने दस्तक दे दी थी. पटियाला महाराज ने वर्ष 1892 में फ्रांस से भारत की पहली मोटर कार डी डियान बूतों मंगाई थी, जिसका नंबर 0 था. लेकिन, कारों के शौकीन के मामले में भरतपुर के महाराज का नाम सबसे टॉप पर आता है. उनके पास चांदी की बॉडी वाली रोल्स रॉयस कार थी. इस कार के बारे में इतिहासकार क्या कहते हैं, आइए जानते हैं.

पटियाला महाराज के पास थी भारत की पहली मोटर कार

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इतिहासकार डोमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने अपनी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में भारत के राजा-रजवाड़ों की कारों को लेकर विस्तार से चर्चा की है. इन दोनों इतिहासकारों ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि पटियाला महाराज के पास भारत की पहली मोटर कार डी डियान बतों थी, जिसका रजिस्ट्रेशन नंबर ‘0’ था. सबसे बड़ी बात यह है कि पटियाला महाराज इस कार से कहीं आते-जाते, तो इसे देखने वालों की कतार लग जाती थी.

भरतपुर महाराज के पास थी चांदी की बॉडी वाली रोल्स रॉयस कार

पटियाला महाराज ने जब फ्रांस से पहली मोटर कार डी डियानो बूतों को मंगाया, तो भारत के राजा-रजवाड़ों में लग्जरी मोटर कार मंगाने की होड़ मच गई. इन लग्जरी कारों में ब्रिटेन की रोल्स रॉयस कार का राज था. ये राजा-रजवाड़े ब्रिटेन से रोल्स रॉयस लग्जरी कार मंगाते और उसे अपने हिसाब से री-डिजाइन करवाते. भरतपुर के राजा महाराजा सवाई किशन सिंह ने भी ब्रिटेन से रोल्स रॉयस कार मंगाई थी, जिसे री-डिजाइन करवाकर उन्होंने चांदी की बॉडी बनवाई थी. उस कार को देखकर लॉर्ड माउंटबेटन भी हैरान रह गए थे.

रजवाड़ा दोस्तों को कार उधार देते थे भरतपुर महाराज

इतिहासकार डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने महाराजा सवाई किशन सिंह की रॉल्स-रॉयस का विस्तार से जिक्र करते हुए लिखा है कि भरतपुर महाराज की कार उस वक्त की सबसे आधुनिक कारों में से एक थी. इसकी बॉडी चांदी से बनी हुई थी और छत भी खुलने वाली थी. सबसे बड़ी बात यह है कि भरतपुर महाराज इस कार इस्तेमाल सफर के साथ ही अपने रजवाड़ा साथियों को शादी-विवाह जैसे मौकों अपनी कार उधार भी दिया करते थे.

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भरतपुर महाराज की कार देखकर दंग रह गए थे माउंटबेटन

डॉमिनिक लापियर और लैरी कॉलिन्स ने लिखा है कि भरतपुर के महाराजा सवाई किशन सिंह ने ऐसी ही एक दूसरी रोल्स रॉयस को शिकार खेलने के लिए तैयार कराई थी. साल 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स और उनके नौजवान साथी एडीसी लॉर्ड लुई माउंटबेटन भरत महाराज के साथ काले चीतल का शिकार करने गए थे. उस कार को देखकर माउंटबेटन भी हैरान रह गए थे. माउंटबेटन ने अपनी डायरी में इस कार के बारे में लिखा है कि वह मोटर कार खुले जंगली इलाकों में गड्ढे और बड़े-बड़े पत्थरों पर समुद्री तूफानी लहरों पर किसी नाव की तरह कूदती-फांदती चल रही थी.’

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भरतपुर महाराज के गैरेज में दो दर्जन से अधिक थीं रोल्स रॉयस कारें

डीरिवाज एंड आयव्स मैग्जीन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 40-50 एचपी इंजन वाली सिल्वर घोस्ट कार को सर हेनरी रॉयस ने डेवलप किया था. इसके बाद वर्ष 1922 में इसी सिल्वर घोस्ट कार की तर्ज पर 20 एचपी पावर वाली एक कार को लॉन्च किया था, जिसमें इनलाइन 6-सिलेंडर इंजन दिया गया था. यह 3127 सीसी से काफी छोटा था, फिर भी सिंगल ब्लॉक के फीचर्स में काफी अधिक आधुनिक था. मैग्जीन में लिखा गया है कि भरतपुर का शाही परिवार रोल्स रॉयस के शौकीनों में से एक था. शाही गैरेज में दो दर्जन से अधिक रोल्स-रॉयस कारें थीं, जिनमें से पांच 20-25 सीसी वाली कारें शामिल थीं. इनमें से एक कार को बाघ का शिकार करने के लिए खास तौर से डिजाइन कराया गया था. भरतपुर के महाराजा सवाई किशन सिंह को शिकार का विशेष शौक था.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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