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गढ़वा के दो दिव्यांग भाइयों पर बिजली विभाग ने भेजा 41 हजार रुपये का बिल, कैसे होगा जमा, सता रही चिंता

गढ़वा के दो दिव्यांग भाई राजेश और विकास को दिन-रात का पता नहीं, पर बिजली विभाग ने 41 हजार रुपये का बिल भेज दिया. इतनी रकम का बिल आने से दोनों दिव्यांग भाई काफी परेशान हो गये. कहा कि विभाग को कई बार कनेक्शन काटने को कहा, पर कनेक्शन नहीं काटकर बिल थमा दिया.

Jharkhand News: जन्म से दो दिव्यांग भाइयों के लिए दिन और रात कोई मायने नहीं रखता क्योंकि इनदोनों भाइयों की आंख की रोशनी नहीं है. इसके बावजूद बिजली विभाग की ओर से उन्हें 41 हजार रुपये का बिजली बिल थमा दिया गया है. अब दोनों भाई इस बात को लेकर काफी परेशान हैं कि आखिर वे यह रकम जमा कहां से करेंगे. यह मामला है गढ़वा शहर के पीपराकलाखुर्द मुहल्ले में रहनेवाले राजेश और विकास की.

41 हजार रुपये का बिल जाने से परेशान हैं दिव्यांग भाई

पीपराकलाखुर्द निवासी राजेश की उम्र 42 साल तथा छोटे भाई विकास की उम्र 39 साल है. उन्होंने बताया कि उनके पिता दिनेश दूबे जब जीवित थे, तब उन्होंने बिजली का कनेक्शन (कंज्यूमर नंबर 9122188973) लिया था. जो आज तक चला आ रहा है. उनके पिता की मौत आठ साल पहले हो गयी है जबकि मां की मौत करीब 10 साल पहले हो गयी थी. कहा कि पिता ने अपने समय में एक टीवी लिया था और घर में बल्ब भी लगाया था, लेकिन वे न तो रात-दिन में कभी बल्ब जला पाते हैं और न ही कभी टीवी चलाते हैं. पिता की मौत के बाद वे दोनों भाई पूरी तरह से दिव्यांगता पेंशन एवं सरकारी राशन पर ही जिंदा हैं. उनका कोई सहारा नहीं है. ऐसे में वे कहां से इतने पैसे लाएंगे और कैसे जमा करेंगे़

बिजली विभाग से कनेक्शन काटने की मिन्नतें की थी, पर किसी ने नहीं सुना

उन्होंने बताया कि वे एक-दो बार बिजली विभाग भी पड़ोसी के सहयोग से गये थे और सरकारी बाबू की मिन्नतें भी की थी कि उनका कनेक्शन काट दिया जाये या बिजली बिल माफ कर दिया जाये, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है. उलटे बिजली विभाग ने 41 हजार रुपये का बिल थमा दिया.

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पड़ोसी और विवाहित बहन करती है मदद

उन्होंने बताया कि उनकी एक बहन भी है, लेकिन वह विवाह के बाद अपने घर चली गयी है. कभी-कभी वह अपने भाईयों की देखरेख करने के लिए आ जाती है. इसके अलावा पड़ोस के लोग उनको खाना बनाने आदि में सहयोग करते हैं. अधिकांश समय बना-बनाया खाना ही मिल जाया करता है. इसी से पिछले सात साल से उनका गुजर-बसर चल रहा है. छोटे भाई विकास ने बताया कि उनकी एक गुमटी नहर चौक पर है जिसमें वे खैनी बेचते हैं, लेकिन वहां वे हर दिन नहीं जा पाते हैं. वे तभी जाते हैं, जब कोई उन्हें वहां तक पहुंचा देता है और गुमटी खोलकर बैठा देता है. इसके बाद घर आने के लिए भी उन्हें किसी ग्राहक या आसपास के लोगों से सहयोग मांगना पड़ता है. दोनों भाइयों ने जिला प्रशासन एवं सामाजिक संगठनों से सहयोग मांगा है.

रिपोर्ट : पीयूष तिवारी, गढ़वा.

Samir Ranjan
Samir Ranjan
Senior Journalist with more than 20 years of reporting and desk work experience in print, tv and digital media

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