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झारखंड : किसान कम अवधि वाले धान की सीधी करें बुआई, बेहतर होगा उत्पादन, बीएयू की अपील

कोल्हान में लगातार दूसरे साल मानसून की बेरुखी से किसान परेशान हैं. खेतों में पानी नहीं रहने के कारण धान की फसल प्रभावित हो रही है. इसको देखते हुए बीएयू के कुलपति व कृषि वैज्ञानिकों ने अपील पत्र जारी किया है. इसमें बताया गया है कि किसान कम अवधि वाले धान की सीधी बुआई करें. बेहतर उत्पादन होगा.

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति सह मशहूर धान विशेषज्ञ डॉ ओंकार नाथ सिंह और कृषि वैज्ञानिकों ने लगातार दूसरे साल मानसून की बेरुखी पर किसानों को सलाह देते हुए अपील पत्र जारी किया है. इसमें कहा गया है कि लंबी अवधि वाले धान की खेती का समय अब खत्म हो चुका है. खासकर एमटीयू 7029 (सुवर्णा) की खेती किसान अब ना करें. इसकी खेती ऊपरी जमीन पर होती है. मध्यम और निचली जमीन पर भी अब कम अवधि (90 से 110 दिन) वाली किस्मों का चारा तैयार कर रोपाई करने के बजाय सीधी बुआई करें. इससे बेहतर उत्पादन हो सकता है. बुआई मतलब धान के बीज को सीधे लाइन से लगा दें. चारा तैयार कर रोपाई करने का समय निकल रहा है.

सूखा रोधी धान किस्मों की खेती करने की अपील

कुलपति ने कहा है कि वर्षा की चिंताजनक स्थिति में किसान ऊपरी (टांड़) एवं मध्यम भूमि (दोन-3) में कम अवधि (100-110 दिनों) वाली सूखा रोधी धान किस्मों जैसे बिरसा विकास धान-109, बिरसा विकास धान-110, बिरसा विकास धान-111, वंदना, अंजलि, ललाट, नरेंद्र-97 एवं आईआर-64 (डीआरटी-1) की सीधी बुआई करें. यह तकनीक कम पानी वाले खेतों में बिना कीचड़ और बिना बिचड़ा के ही धान की खेती में उपयोगी साबित होगी और उपज भी रोपाई विधि के समान ही होगी. मजदूरों की कमी एवं वर्षा की असमानता की स्थिति में पंजाब एवं हरियाणा जैसे राज्यों में भी एरोबिक विधि से धान की खेती प्रचलित हो रही है.

लहलहा रही 23 दिन पहले एरोबिक विधि से लगायी गयी फसल

अपील पत्र में कहा गया है कि बीएयू के तीन प्रायोगिक शोध प्रक्षेत्रों में एरोबिक विधि से 23 दिन पहले लगायी गयी धान की फसल लहलहा रही है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, फसल प्रदर्शन भी काफी बेहतर है. इन शोध प्रक्षेत्रों में इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट (आईआरआरआई), हैदराबाद से प्राप्त देशभर की 150 से अधिक उन्नत धान किस्मों का परीक्षण किया जा रहा है.

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एरोबिक विधि से खेती में जल जमाव की जरूरत नहीं

परियोजना अन्वेषक (आईआरआरआई) डॉ कृष्णा प्रसाद बताते हैं कि धान की सीधी बुआई की एरोबिक विधि में जरूरत के मुताबिक सिंचाई और खेतों में जल जमाव नहीं रखा जाता है. जबकि, दूसरी विधियों में खेतों में पानी बांध कर रखा जा सकता है. इससे खर-पतवार नियंत्रण में आसानी होती है. नमी होने पर खेत की जुताई कर अनुशंसित धान बीज की बुआई सीड एंड फर्टिलाइजर सीड ड्रील से करनी चाहिए. सीड ड्रील नहीं होने पर छिटकवां विधि से बुआई की जा सकती है. एक एकड़ में 10 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है. खाद की मात्रा का प्रयोग 50:25:25 किग्रा (नेत्रजन:स्फूर:पोटास) प्रति एकड़ की दर से किया जाता है. खर-पतवार नियंत्रण पर विशेष ध्यान देना होता है. इसलिए दो से तीन बार निराई, गुड़ाई या बुआई के दो-तीन दिनों के बाद खर-पतवार नाशक दवा प्रेटिलाक्लोर (4 मिली प्रति लीटर पानी में) अथवा पेंडीमिथेलीन दवा (एक लीटर प्रति 120 लीटर पानी में घोल कर) का दो-तीन बार छिड़काव करना चाहिए.

कम अवधि वाली धान की किस्में

90 से 95 दिन अवधि वाले धान की किस्में : बिरसा विकास धान-109, बिरसा विकास धान-110, बिरसा विकास धान-111, वंदना.

115 से 125 दिन अवधि वाले धान की किस्में : आइआर-36, आइआर-64, ललाट, नवीन, बिरसा विकास धान-203, बिरसा विकास धान-130.

140 से 150 दिन अवधि वाले धान की किस्में : एमटीयू-7029 (सुवर्णा), बीपीटी-5204, राजश्री, संभा मंसूर, पानी धान.

नहर सूखी, किसानों को अब भी बारिश का इंतजार

कृषि वैज्ञानिक कहते हैं धान की खेती रोपाई विधि से करने के लिए खेत में कम से कम 10 इंच पानी रहना चाहिए, जो नहीं है. खेत सूख चुके हैं. जुलाई आधा बीत गयी और नहर भी सूखी है. किसान सुवर्णरेखा परियोजना से लगातार मुख्य नहर में पानी छोड़ने की मांग कर रहे हैं. पर, चांडिल डैम से अब तक पानी नहीं छोड़ा गया है. वहां विस्थापितों का आंदोलन चल रहा है. डैम में पानी का लेबल कम है. बारिश नहीं होने से डैम में ज्यादा पानी स्टोर नहीं हो रहा. जिस कारण किसानों की मांग के 27 दिन बाद भी बायीं नहर में पानी नहीं छोड़ने से किसान हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. ऊपर से बारिश भी दगा दे रही है.

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दारीसाई से नि:शुल्क अरहर और उरद का बीज और जैविक खाद का हो रहा वितरण

मानसून की बेरुखी को देखते हुए दारीसाई कृषि विज्ञान केंद्र से धान की बजाय वैकल्पिक खेती के लिए दाल बीज का वितरण नि:शुल्क किया जा रहा है. अब तक 50 किसानों में उरद के तीन-तीन किलो बीज वितरित किये गये हैं. साथ में केचुआ और जैविक खाद भी नि:शुल्क दी जा रही है. एक बीघा में एक किलो बीज लगता है. ऐसे में किसान तीन किलो बीज तीन बीघा जमीन में लगा सकते हैं. उरद का दो क्विटल बीज आया था, जो बंट रहा है. वहीं, अरहर का छह क्विंटल बीज मिला है, जो 75 में से 50 किसानों में अब तक बंट चुका है. आईसीएआर के क्लस्टर फ्रंट लाइन डेमोंस्ट्रेशन योजना के तहत किसानों को दलहन की खेती के लिए बीज नि:शुल्क दिया जा रहा है.

अब रोपाई की जगह सीधी बुआई करें किसान : डॉ आरती वीणा एक्का

केबीके के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ आरती वीणा एक्का का कहना है कि ऊपरी जमीन पर धान की खेती का समय अब समाप्त हो चुका है. निचली और मध्यम भूमि में संभावना बची है. वह भी रोपाई के बजाय सीधी बुआई का विकल्प है. किसान अगर ऐसा करेंगे, तो धान के उत्पादन में कमी नहीं आयेगी. किसान इस बार रोपाई की जगह सीधी बुआई विधि अपना कर देंखे. कम पानी में बेहतर खेती होगी. ऊपरी जमीन पर धान की बजाय दलहन, सब्जी और मोटे अनाज की खेती करें. धान की खेती करेंगे, तो सिर्फ पुआल होगा.

अब धान की रोपाई करने पर सिर्फ मिलेगा पुआल : गोदरा मार्डी

वहीं, दारीसाई के कृषि वैज्ञानिक गोदरा मार्डी का कहना है कि बीएयू की अपील को किसान अपनाएं और रोपाई की जगह सीधी बुआई करें. ऊपरी जमीन पर धान की खेती का समय 15 जुलाई तक ही होता है. इसके बाद आप रोपाई करेंगे, तो धान नहीं पुआल होगा. अभी जो बारिश की स्थिति है, उसमें निचली और मध्यम जमीन पर कम अवधि वाले धान की किस्मों को अपनायें और वह भी रोपाई की जगह सीधी बुआइ करें, तो बेहतर उत्पादन होगा. अन्यथा हाथ से समय निकल जायेगा, तो उत्पादन में भारी गिरावट आयेगी.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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