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Jharkhand Foundation Day : जमींदोज होने को है पलामू किला, कहीं इतिहास में दफन न हो जाए, देखें तस्वीरें

15 नवंबर को झारखंड 22 साल का हो जायेगा. इस क्रम में जानते हैं झारखंड के पलामू की शान पलामू किला को. लापरवाही से ये जमींदोज होने को है. करीब 350 वर्ष पहले निर्मित इस किले का अस्तित्व खतरे में है. इसके बाद भी कोई पहल नहीं की जा रही है.

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Jharkhand Foundation Day: झारखंड के पलामू प्रमंडल की आन-बान और शान माने जाने वाले चेरो राजवंश की धरोहर पलामू किला जमींदोज होने को है. करीब 350 वर्ष पहले निर्मित इस किले का अस्तित्व खतरे में है. हैरानी की बात है कि पलामू किला के जीर्णोद्धार के लिए अब तक कोई पहल नहीं की गयी है. इंतजार में साल दर साल गुजरता गया, लेकिन पलामू किले के संरक्षण को लेकर पहल नहीं की गयी.

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कई बार तो ऐसा लगा मानो अब काम एकदम शुरू हो जायेगा और पलामू किले का अस्तित्व मिटने से बच जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. कुछ दिनों तक पलामू किले के जीर्णोद्धार की बातें चर्चा में रहीं और फिर उस ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. पलामू किले के जीर्णोद्धार के लिए पर्यटन विभाग के द्वारा सहमति मिल गयी है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम के द्वारा भी सर्वे करा लिया गया है.

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विधायक रामचंद्र सिंह ने पलामू किले की बदहाली व जीर्ण-शीर्ण स्थिति से आहत होकर कई बार इस मामले को विधानसभा सभा में भी उठाया है. पिछले वर्ष भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के क्षेत्र प्रबंधक डॉ एस के भगत के नेतृत्व में जब टीम ने दौरा किया था तो ऐसी उम्मीद जग गयी थी कि अब पलामू किला के जीर्णोद्धार शुरू होने में देर नहीं है, लेकिन देखते ही देखते दो वर्ष बीत गये, लेकिन इस बार भी काम शुरू नहीं किया गया. दो वर्ष के दौरान जगह-जगह पर किला का महत्वपूर्ण हिस्सा टूट-टूट कर गिरता जा रहा है. किले की वर्तमान स्थिति यह है कि चारों ओर से यह जंगल-झाड़ियों से घिर गया है. यहां आने पर लगता ही नहीं है कि जंगल में किला है या किला में जंगल.

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बेतला नेशनल पार्क के मुख्य गेट से करीब पांच किलोमीटर दूर घने जंगलों व पहाड़ियों के बीच कल-कल बहती औरंगा नदी के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज पलामू किला अपनी खूबसूरती व कारीगरी की अद्भुत मिसाल रहा है. किले के दो भाग हैं. पुराना किला नदी के किनारे तो नया किला पहाड़ी पर स्थित है. पलामू टाइगर रिजर्व के बेतला नेशनल पार्क के अधीन होने के कारण पलामू किला पूरी तरह से वन विभाग के कब्जे में है. मरम्मत नहीं होने के कारण यह खंडहर में तब्दील होता गया. इसके कई महत्वपूर्ण हिस्से जमींदोज हो चुके हैं . पुरातात्विक विभाग के आकलन के अनुसार 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पूरी तरह से जमींदोज हो चुका है.

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पर्यटन के लिहाज से पलामू किला काफी महत्वपूर्ण है. पलामू प्रमंडल ही नहीं बल्कि देश-विदेश के कोने-कोने से पर्यटक जब बेतला नेशनल पार्क का भ्रमण करने आते हैं तो पलामू किला को देखना नहीं भूलते हैं. पलामू किले की भव्यता उस समय के राजाओं के नाम शौकत का बखान करता है. पुराने पलामू किला का विशाल गेट, नये किला का नागपुरी गेट, राजा का शयन कक्ष, क्रीड़ा स्थल, सभा स्थल, परकोटा, चरखी जहां से 20 किलोमीटर का नजारा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है. पर्यटकों को काफी भाता है. पलामू किले की जर्जर स्थिति को देखते हुए तत्कालीन विधायक रामचंद्र सिंह के प्रयास से पुरातात्विक विभाग के द्वारा पलामू जिले का जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया था. लातेहार के तत्कालीन उपायुक्त केके सोन ने भी काफी रूचि दिखाई थी, लेकिन वन विभाग के द्वारा एनओसी नहीं मिलने के कारण जीर्णोद्धार का कार्य रुक गया था. बाद में यह मामला अदालत तक पहुंचा. इसके बाद अदालत ने पलामू किले के जीर्णोद्धार की स्वीकृति दी.

रिपोर्ट : संतोष कुमार, बेतला, लातेहार

Guru Swarup Mishra
Guru Swarup Mishrahttps://www.prabhatkhabar.com/
मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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