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Jharkhand Foundation Day: आदिवासी संस्कृति से जुड़ा है जामताड़ा के कंचनबेड़ा का रास मेला, जानें इतिहास

15 नवंबर, 2022 को झारखंड का स्थापना दिवस है. इस मौके पर आपको आदिवासी संस्कृति के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व की चीजों से रूबरू करा रहे हैं. इसी कड़ी में इस बार जामताड़ा जिला अंतर्गत कंचनबेड़ा गांव का रास मेला का जिक्र कर रहे हैं. महाजनी प्रथा के खिलाफ शिबू सोरेन ने इस गांव को आंदोलन का कर्मभूमि बनाये थे.

Jharkhand Foundation Day: जामताड़ा के कंचनबेड़ा का रास मेला आदिवासी संस्कृति से जुड़ा है. इसका आयोजन राज्य के ऐतिहासिक महत्व से जुड़ा है. दो दिवासीय इस मेला का आयोजन आगामी 12 नवंबर को हो रहा है. इस मेले की शुरुआत वर्ष 1974 में झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पहल पर हुई थी.

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महाजनों के खिलाफ कंचनबेड़ा गांव से गुरुजी ने फूंका था बिगुल

बताया जाता है कि कंचनबेड़ा गांव से गुरुजी ने महाजनी प्रथा काे खत्म करने के लिए आंदोलन का कर्मभूमि चुना था. यहीं से चिरूडीह में हुई आंदोलन का रूप रेखा तैयार कर महाजनों के खिलाफ गुरुजी ने बिगुल फूंकने का कार्य किया था. उनके राजनीतिक जीवन की रूप रेखा भी यहीं से शुरू होकर ऊंचाई तक जाने में सफलता मिली थी. उस दौरान गुरुजी को कंचनबेड़़ा सहित आसपास के आदिवासियों ने भरपूर सहयोग किया था.

कंचनबेड़ा के रास मेला में नेताओं को होगा जुटान

पंचायत समिति सदस्य छोटे लाल मरांडी बताते हैं कि इस मेले का आयोजन जमींदारों के खिलाफ था. बताया कि गुरुजी का मानना था जब जमींदारों के खिलाफ पूरा आदिवासी समाज आंदोलन के रूप में अपना जमीन वापस करा रहा, तो जमींदारों के यहां लगने वाले रास मेला में आदिवासी (होड़) लोग नहीं जाएंगे. जामताड़ा राज परिवार द्वारा कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाले मेला के दो दिन बाद कंचनबेड़ा में ही रास मेला शुरू कर दिया. मेला में प्रत्येक साल गुरुजी आते रहे. हांलाकि, कई वर्षों से गुरुजी की तबीयत खराब रहने और ज्यादा उम्र हो जाने के कारण मेला में नहीं पहुंच रहे हैं. फिर भी उनके मार्गदर्शन पर झामुमो के नेताओं का जुटान जरूर होता है.

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मेला को लेकर गांव के सभी घरों की साफ-सफाई शुरू, सभी के घरों में आते हैं मेहमान

कंचनबेड़ा में मेला को लेकर सभी आदिवासियों के घरों में रंगाई-पुताई, साफ- सफाई का शुरू हो गई है. बताया जाता है कि यह मेला एक पर्व-त्योहार से कम नहीं है क्योंकि मेला में सभी घरों में रिश्तेदार, मित्र मेला देखने पहुंचते हैं और दो दिनों तक मेला का लुत्फ उठाते हैं. कंचनबेड़ा में जहां रासमेला की शुरुआत गुरुजी ने किया था वहां सिद्धो- कान्हू की प्रतिमा स्थापित है. आदिवासी समाज मेला के दिन उनकी पूजा अर्चना भी करते हैं. मेला का एक बड़ा हिस्सा कंचनबेड़ा से सटे बागधरा गांव के मैदान में भी देखने को मिलता है. उस मैदान में आदिवासी जत्रा सहित कई कार्यक्रम का आयोजन होता है.

रिपोर्ट : उमेश कुमार, जामताड़ा.

Samir Ranjan
Samir Ranjan
Senior Journalist with more than 20 years of reporting and desk work experience in print, tv and digital media

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